गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 15
उड्डीश-डामर देश के राजा, वंगदश के अधिपति वीर धन्वा तथा असम के नरेश पुण्ड्र पर यादव-सेना की विजय उड्डीश-डामर (उड़ीसा) देश के राजा महाबली बृहदबाहु ने प्रद्युम्न को भेंट नहीं दी। वह अपने बल के अभिमान से मत्त रहता था। प्रद्युम्न ने जाम्बवती-कुमार वीरवर साम्ब को उसे वश में करने के लिये भेजा। साम्ब सूर्यतुल्य तेजस्वी रथ पर आरुढ़ हो, धनुष हाथ में ले अकेले ही गये। नरेश्वर उन्होंने बाण-समूहों से डामर नगर को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे मेघ तुषार राशि से किसी पर्वत को चारों से ढक देता है। इस प्रकार धर्षित एवं पराजित हेकर डामराधीश ने तत्काल हाथ जोड़ लिये और महात्मा प्रद्युम्न को नमस्कार करके भेंट अर्पित की । तत्पश्चात् वंगदश के अधिपति मदमत्त एवं वीर राज वीरधन्वा एक अक्षौहिणी सेना के साथ युद्ध के लिये यादव-सेना के सम्मुख आये। वे बडे़ बलवान थे। यादवों की ओर से श्रीहरि के पुत्र चन्द्रभानु ने प्रद्युम्न को देखते-देखते वीरधन्वा की उस सेना को बाणों द्वारा उसी प्रकार विदीर्ण कर दिया, जैसे कोई कटु वचनों द्वारा मित्रता का भेदन कर दे। उनके बाणों से विदीर्ण हुए हाथियों के मस्तक से चमकते हुए मोती भूमि पर इस प्रकार गिरने लगे, मानो रात में आकाश से तारे बिखर रहे हो अनेक रथी वीर धराशायी हो गये। हाथी-घोड़े और पैदल सैनिक उनके बाणों से मस्तक कट जाने कारण कुम्हडे़ के टुकड़ों– जैसे इधर-उधर गिरे दिखायी देते थे। क्षणभर में वीरधन्वा की रक्त की नदी के रूप में परिणत हो गयी, जो मनस्वी वीरों का हर्ष बढ़ाती और डरपोकों को भयभीत करती थी । कटे हुए मस्तक और धड़ किरीट, कुण्डल, केयूर, कंगन और अस्त्र-शस्त्रों सहित दौड़ रहे थे। उनके कारण वहाँ की भूमि महामारी सी प्रतीत होती थी। कूष्माण्ड, उन्माद, वेताल, भैरव तथा ब्रह्मराक्षस बडे़ वेग से आकर शंकरजी के गले की मुंडमाला बनाने के लिये वहाँ पर गिरे हुए मस्तकों को उठा लेते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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