गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 15
यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन; नन्द और यशोदा के पूर्व-पुण्य का परिचय; गर्गाचार्य का नन्द-भवन में जाकर बलराम और श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार करना तथा वृषभानु के यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्ण के नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्य का ज्ञान कराना श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! एक दिन साँवले-सलोने बालक श्रीकृष्ण सोने के रत्नजटित पालने पर सोये हुए थे। उनके मुख पर लोगों के मन को मोहने वाले मन्द हास्य की छटा छा रही थी। दृष्टिजनित पीड़ा के निवारण के लिये नन्द नन्दन के ललाट पर काजल का डिठौना शोभा पा रहा था। कमल के समान सुन्दर नेत्रों में काजल लगा था। अपने उस सुन्दर लाला को मैया यशोदा ने गोद में ले लिया। वे बालमुकुन्द पैर का अँगूठा चूस रहे थे। उनका स्वभाव चपल था। नील, नूतन, कोमल एवं घुँघराले केशबन्धों से उनकी अंगच्छटा अद्भुत जान पड़ती थी। वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स चिह्न, बघनखा तथा चमकीला अर्धचन्द्र (नामक आभूषण) शोभा दे रहे थे। अपार दयामयी गोपी श्री यशोदा अपने उस लाला को लाड़ लड़ाती हुई बड़े आनन्द का अनुभव कर रही थी। राजन! बालक श्रीकृष्ण दूध पी चुके थे। उन्हें जँभाई आ रही थी। माता की दृष्टि उधर पड़ी तो उनके मुख में पृथिव्यादि पाँच तत्त्वों सहित सम्पूर्ण विराट (ब्रह्माण्ड) तथा इन्द्रप्रभृति श्रेष्ठ देवता दृष्टिगोचर हुए। तब श्री यशोदा के मन में त्रास छा गया। अत: उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं। महाराज ! परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ हैं। उनकी ही माया से सम्पूर्ण संसार सत्तावान बना है। उसी माया के प्रभाव से यशोदा जी की स्मृति टिक न सकी। फिर अपने बालक श्रीकृष्ण पर उनका वात्सल्यपूर्ण दयाभाव उत्पन्न हो गया। अहो ! श्री नन्दरानी के तप का वर्णन कहाँ तक करूँ !! श्री बहुलाश्व ने पूछा- मुनिवर ! नन्दजी ने यशोदा के साथ कौन-सा महान तप किया था, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र उनके यहाँ पुत्र रूप में प्रकट हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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