गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 13
बलभद्र सहस्त्रनाम दुर्योधन ने कहा- महामुने प्राडविपाकजी ! भगवान बलभद्र के सहस्त्र नाम को, जो देवताओं के लिये भी गोपनीय अज्ञात हैं, मुझ से कहिये। प्राडविपाक मुनि बोले- साधु, साधु ! महाराज ! तुम्हारा यश सर्वथा निर्मल है। तुमने जिसके लिये प्रश्न किया है, वह परम देवदुर्लभ सहस्त्र नाम गर्गजी के द्वारा कथित है। उन दिव्य सहस्त्र नामों का वर्णन मैं तुम्हारे सामने कर रहा हूँ। गर्गाचार्यजी ने यमुनाजी के मंगलमय तट पर यह सहस्रनाम गोपियों को प्रदान किया था। ‘ॐ अस्य श्री बलभद्रसहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य गर्गाचार्यऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, संकर्षण: परमात्मा देवता, बलभद्र इति बीजम्, रेवतीरमण इति शक्ति:, अनन्त इति कीलकम्, बलभद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:। (इस बलभद्रसहस्त्रनामस्तोत्ररुपी मन्त्र के गर्गाचार्य ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, परमात्मा संकर्षण देवता है, बलभद्र बीज है, श्री बलभद्र की प्रीति के लिये इसका विनियोग है) इसको पढ़कर सहस्त्र नाम पाठ के लिये विनियोग का जल छोड़ दे। तत्पश्चात् इस प्रकार ध्यान करे– तुहिनगिरिमनोज्ञं नीलमेघाम्बराढयं हलमुसलविशांल कामपालं समीडे।। जिनका निर्मल किरीट दमक रहा है, जो करधनी तथा कंकणों से अलंकृत हैं, चंचल अलकावली से जिनके कपोल सुशोभित हैं, जिनका मुखकमल कुण्डलों से देदीप्यमान है, जो हिमाचल गिरि के समान मनोहर उज्ज्वल हैं तथा नीलाम्बर धारण किये हुए हैं। विशाल हल-मुसल धारण करने वाले उन भगवान कामपाल बलभद्रजी का मैं स्तवन करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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