गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 22
यज्ञ के घोड़े का अवन्तीपुरी में जाना और वहाँ अवन्ती नरेश की ओर से सेना सहित यादवों का पूर्ण सत्कार होना श्रीगर्गजी कहते हैं– महाराज ! यदुकुल तिलक वीरवर अनिरुद्ध का वह घोड़ा अनेक जनपदों का अवलोकन करता हुआ राजपुर जनपद में जा पहुँचा। मार्ग में सफरा (शिप्रा) नदी का दर्शन करके वह अवन्तिका (उज्जयिनी) के उपवन में जा खड़ा हुआ। उसी समय श्रीकृष्ण के गुरु महात्मा विप्रवर सान्दीपनि स्नान करने के लिए घर से चल कर वहाँ आए। उन्होंने तुलसी की माला पहन रखी थी। कंधे पर धौत वस्त्र रख छोड़ा था और मुख से श्रीकृष्ण नाम का जप कर रहे थे। उन्होंने वहाँ पानी पीते हुए श्वेत एवं श्याम कर्ण घोड़े को, जिसके भाल देश में पत्र बंधा हुआ था, देखा देख कर पूछा– किस नृपेश्वर ने इस यज्ञ के घोड़े को छोड़ा है। नरेश्वर ! वहाँ राजकुमार बिन्दु को स्नान करते देख उन्हें घोड़े के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए जाकर प्रेरित किया। महाराज ! तब राजाधिदेवी के वीर पुत्र बिन्दु ने अन्य बहुत से वीरों के साथ जाकर सहसा उस घोड़े को पकड़ा और उसका भली-भाँति निरीक्षण करके लौट कर गुरु सान्दीपनि को प्रणाण कर उसके विषय में बताया। तत्पश्चात् गुरु के आदेश से प्रसन्न हो राजकुमार घोड़ा लेकर आए और हर्षपूर्वक गुरुजी को दिखलाने लगे। सान्दीपनि ने भाल पत्र पढ़कर प्रसन्नतापूर्वक राजा को बताया। सान्दीपनि बोले- राजन ! इसे राजा उग्रसेन का घोड़ा समझो। प्रद्युम्न कुमार अनिरुद्ध इसकी रक्षा में आए हैं। यह अश्व अपने इच्छानुसार घूमता हुआ यहाँ तक आ गया है। अब अनिरुद्ध भी यहाँ आएँगे। उनके साथ और भी बहुत से युद्धशाली यादव वीर पधारेंगे। घोड़े का निरीक्षण करते हुए तुम्हारी बहन मित्रबिन्दा के पुत्र भी आएंगे। तुम्हें यहाँ श्रीकृष्णचंद्र के सभी पुत्रों का आदर सत्कार करना चाहिए। मेरे कहने से तुम युद्ध का विचार छोड़कर घोड़ा उन्हें लौटा देना। गुरु का यह कथन सुनकर धनुर्धर शूरवीर राजकुमार चुप रह गया। उसका मन घोड़े को पकड़ ले जाने का था। उसी समय यादव सेना का कोलाहल सुनाई पड़ा, जो समस्त लोकों के मान का मर्दन करने वाला था। दुन्दुभियों का महानाद, धनुषों की टंकार, हाथियों की चीत्कार, घोड़ों की हिनहिनाहट, रथों का झणत्कार, वीरों की गर्जना तथा शतघ्नियों का महानाद– इन सबका तुमल शब्द समस्त लोकों के ले भयदायक था। उसे सुनकर राजकुमार बिंदु को बड़ा विस्मय हुआ। इतने में ही रथियों, हाथियों और घोड़ों के साथ भोज, वृष्णि, अंधक, मधु, शूरसेन तथा दशार्हवंश के समस्त यादव वहाँ आ पहुँचे। वे सेना की धूलि से आकाश को व्याप्त तथा पैरों की धमक से पृथ्वी को कंपित करते हुए आए और सब के सब पूछने लगे– यज्ञ का घोड़ा कौन ले गया, कहा गया ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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