गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 1
श्री बलभद्र जी के अवतार का कारण राजा बहुलाश्व ने कहा- ब्रह्मन ! आपके श्रीमुख से मैंने अमृत की उपेक्षा भी परम मधुर, मंगलमय, परम अद्भुत विश्वजितखण्ड का श्रवण किया। महात्मा श्रीकृष्ण परिपूर्णतम भगवान हैं, उनकी सोलह हजार पत्नियों में से प्रत्येक के दस-दस पुत्र हुए। मुनिवर ! उनके फिर करोड़ों पुत्र और पौत्र उत्पन्न हुए। पृथ्वी के रजकण गिने जा सकते हैं, किंतु कोई विद्वान कवि भी श्रीकृष्ण के वंशजों की गणना करने में समर्थ नहीं है। महात्मा बलरामजी की रेवती पत्नी थीं। उनके एक भी पुत्र नहीं हुआ। कृपापूर्वक इसका रहस्य बताइये। श्री नारद जी कहने लगे- तुम्हारा प्रश्न बहुत सुन्दर है। भगवान अच्युत के बड़े भाई भगवान संकर्षण कामपाल हैं। उन बलरामजी की कथा मैं तुम्हारे सामने भली-भाँति वर्णन करूँगा। दुर्योधन के गुरु प्राडविपाक नामक मुनि योगियों के और मुनियों के अधीश्वर थे। वे एक दिन हस्तिनापुर पधारे। दुर्योधन ने महान आदर के साथ उनका विविध उपचारों के द्वारा सम्यक प्रकार से पूजन किया। फिर वे महामूल्यवान सिंहासन पर विराजित हुए। दुर्योधन उनकी वन्दना और प्रदक्षिणा करके, हाथ जोड़कर उनके सामने बैठ गया। फिर अपने मन के संदेह को स्मरण करके उन से कहा- ‘भगवान संकर्षण साक्षात बलभद्रजी का इस भूमण्डल में किस कारण से और किनकी प्रार्थना से शुभागमन हुआ उन्होंने मेरे नगर को किन की प्रार्थना से शुभागमन हुआ उन्होंने मेरे नगर को उलटाकर टेढ़ा कर दिया था। वे मेरे गुरु हैं। मुझको उन्होंने ही गदा युद्ध सिखलाया था। आप उनके प्रभाव का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। प्राडविपाक मुनि ने कहा- कुरुसत्तम युवराज ! यादवश्रेष्ठ बलभद्रजी का प्रभाव सुनो। उसके सुनने से पापों का सम्पूर्णतया विनाश हो जाता है। इसी प्रकार द्वापर के अन्त की बात हैं, राजाओं के रूप में करोड़ों-करोड़ों दैत्य सेनाओं ने उत्पन्न होकर पृथ्वी को भयानक भार से दबा दिया। तब पृथ्वी ने गौ का रूप धारण करके स्वयम्भू ब्रह्मजी की शरण ली। देवश्रेष्ठ ब्रह्मजी ने सम्पूर्ण देवताओं के और शंकरजी के साथ श्रीवैकुण्ठनाथ को आगे किया और भगवान वामनदेव के बायें पैर के अंगूठे के नख से कटे हुए ऊर्ध्व ब्रह्माण्डकटाह के छिद्र के द्वारा वे बाहर निकले। वहाँ ब्रह्मजी देवताओं सहित ब्रह्मद्रव (श्रीगंगाजी) के समीप उपस्थित हुए और उसमें करोड़ों-करोड़ों ब्रह्माण्डों को लुढ़कते देखा। तदनन्तर वे विरजा नदी के तट पर पहुँचे। इसके बाद देवताओं के साथ ब्रह्मा ने अन्नत कोटि सूर्यों की ज्योतियों के समान तेजोमण्डल के दर्शन किये। उन्होंने ध्यान और प्रणाम किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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