गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 18
यमुना जी के जप और पूजन के लिये पटल और पद्धति का वर्णन मांधाता बोले- मुनिश्रेष्ठ ! यमुनाजी के कामपूरक पवित्र पटल तथा पद्धति का जैसा स्वरूप है, वह मुझे बताइये, क्योंकि आप साक्षात ज्ञान की निधि हैं। सौभरि ने कहा- महामते ! अब मैं यमुनाजी के पटल तथा पद्धति का भी वर्णन करता हूँ जिसका अनुष्ठान, श्रवण अथवा जप करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। पहले प्रणव (ऊँ) का उच्चारण करके फिर मायाबीज (ह्रीं) का उच्चारण करे। तत्पश्चात लक्ष्मीबीज (श्रीं) को रखकर उसके बाद कामबीज (क्लीं) का विधिवत प्रयोग करे। इसके अनन्तर ‘कालिन्दी‘ शब्द का चतुर्थ्यन्त (कालिन्द्यै) रखे। फिर ‘देवी’ शब्द के चतुर्थ्यन्तरूप (देव्यै) का प्रयोग करके अन्त में ‘नम:’ पद जोड़ दे। (इस प्रकार ‘ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम:’ या मन्त्र बनेगा) इस मंत्र का मनुष्य विधिवत जप करे। इस ग्यारह अक्षर वाले मंत्र का ग्यारह लाख जप करने से इस पृथ्वी पर सिद्धि प्राप्त हो सकती है। मनुष्यों द्वारा जिन-जिन काम्य पदार्थों के लिये प्रार्थना की जाती है, वे सब स्वत: सुलभ हो जाते हैं । सुन्दर सिंहासन पर षोडशदल कमल अंकित करके उसकी कर्णिका में श्रीकृष्ण सहित कालिन्दी का न्यास (स्थापन) करे। कमल के सोलह दलों में अलग-अलग विधिपूर्वक नाम ले-लेकर मानवश्रेष्ठ साधक क्रमश: गंगा, विरजा, कृष्णा, चन्द्रभाग, सरस्वती, गोमती, कौशिकी, वेणी, सिंधु, गोदावरी, वेदस्मृति, वेत्रवती, शतद्रू, सरयू, ऋषिकुल्या तथा ककुद्यिनी का पूजन करे। पूर्वादि चार दिशाओं में क्रमश: वृन्दावन, गोवर्धन, वृन्दा तथा तुलसी का उनके नामोच्चारणपूर्वक क्रमश: पूजन करे। तत्पश्चात ‘ऊँ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा।’ इस मन्त्र से आवाहन आदि सोलह उपचारों को एकाग्रचित्त हो अर्पित करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |