गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 11
कुब्जा और कुवलयापीड के पूर्वजन्मगत वृतान्त का वर्णन नारदजी ने कहा– राजन् ! करोड़ों कामदेवों के समान सुनदर श्रीरामचन्द्रजी जब पंचवटी में रहते थे, उस समय शूर्पणखा नामक राक्षसी उन्हें देखकर अत्यन्त मोहित हो गयी। ‘श्रीरघुनाथजी एक पत्नी व्रत के पालन में तत्पर हैं, अत: इनके मन में दूसरे किसी स्त्री प्रति मोह नहीं है’– यह विचार कर रावण की बहिन क्रोध से सीता को खा जाने के लिये दौड़ी। उस समय श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने रूष्ट होकर तीखी धार-वाली तलवार से तत्काल उसकी नाक और कान काट लिये। नाक कट जाने पर उसने लंका में जाकर रावण को यह सब समाचार बता दिया और स्वयं अत्यन्त खिन्नचित होकर वह पुष्कर-तीर्थ में चली गयी। वहाँ जल में खड़ी हो भगवान शंकर का ध्यान तथा श्रीराम को पति रूप में पाने की कामना करती हुई शूर्पणखा ने दस हजार वर्षों तक तपस्या की। इससे प्रसन्न हो देवाधिदेव भगवान उमापति पुष्कर-तीर्थ में आकर बोले– ‘तुम वर माँगों’। शूर्पणखा ने कहा– परम देवदेव ! आप समस्त कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं, अत: मुझे यह वर दीजिये कि सत्पुरुषों के प्रिय श्रीरामचन्द्रजी मेरे पति हों। शिव ने कहा– राक्षसी ! सुनो। यह वर तुम्हारे लिये अभी सफल नहीं होगा। द्वापर के अन्त में मथुरापुरी में तुम्हारी यह कामना पूरी होगी, इसमें संशय नहीं है। नारदजी ने कहते हैं– राजन् ! महामते ! वही इच्छानुसार रूप धारण करने वाली शूर्पणखा नामक राक्षसी श्रीमथुरापुरी में ‘कुब्जा’ नाम से प्रसिद्ध हुई थी। महादेवजी वर से ही वह श्रीकृष्ण की प्रिया हुई। यह प्रसंग मैंने तुम्हे बताया। अब और क्या सुनना चाहते हो ?। बहुलाश्व बोले– नारदजी ! यह कुवलयापीड पूर्वजन्म में कौन था ? कैसे हाथी की योनि को प्राप्त हुआ ? और किस पुण्य से भगवान श्रीकृष्ण में लीन हुआ ?। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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