गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 18
इस प्रकार यमुना का पटल जानो। अब पद्धति बताऊँगा। जब तक पुरश्चरण पुरा न हो जाये, तब तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मौनावलम्बनपूर्वक द्विज को जप करना चाहिये। पुरश्चरणकाल में जौ का आटा खाय, पृथ्वी पर शयन करें, पत्तल पर भोजन करे और मन को वश में रखे। राजन ! आचार्य को चाहिये कि काम, क्रोध,लोभ, मोह तथा द्वेष को त्यागकर परम भक्तिभाव से जप में प्रवृत रहे। ब्राह्म मुहूर्त में उठकर कालिन्दो देवी का ध्यान करे और अरुणोदय की बेला में नदी में स्नान करे। मध्याह्नकाल में और दोनों संध्याओं के समय संध्या-वन्दन अवश्य किया करे। राजन ! जब अनुष्ठान समाप्त हो, तब यमुना के तट पर जाकर पुत्रों सहित दस लाख महात्मा ब्राह्ममणों का गन्धपुष्प से पूजन करके उन्हे उत्तम भोजन दे। तदनन्तर वस्त्र, आभूषण और सुवर्णमय चमकीले पात्र तथा उत्तम दक्षिणाएँ दे। इससे निश्चय ही सिद्धि होती है। महामते ! नरेश ! इस प्रकार मैंने तुमसे यमुनाजी के जप और पूजन की पद्धति बतायी है। तुम सारा नियम पूर्ण करो। बताओ ! अब और क्या सुनना चाहते हो? इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत मांधाता और सौभरि के संवाद में ‘पटल और पद्धति का वर्णन’ नामक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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