गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 6
मन्दिर निर्माण तथा विग्रह प्रतिष्ठा एवं पूजा की विधि राजा उग्रसेन ने पूछा- मुने ! गृहस्थ कर्म-ग्रह से ग्रस्त रहता हैं। ऐसी कौन-सी विधि है, जिसके द्वारा यह कर्मासक्त गृहस्थ महात्मा श्रीकृष्ण की सेवा कर सके उसे कहने की कृपा कीजिये। (साथ ही यह भी बताइये कि) जिसके जीवन में भक्ति का अंकुर की नहीं है अथवा है तो बढ़ता नहीं, ऐसे व्यक्ति स्वयं श्रीहरि किस प्रकार प्रसन्न हो सकते हैं। श्रीव्यासजी बोले- यदि भक्ति का अंकुर न हो तो सत्पुरुषों संग करना चाहिये। सत्संग से वह अंकुर उत्पन्न हो सकता है और वेग से बढ़ भी जाता है। राजन् ! भगवान श्रीकृष्ण के सेवन की विधि, जिसके प्रभाव से यह गृहस्थ भी शीघ्र भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त कर सकता है और जो अत्यन्त सुलभ है, वह तुम्हें मैं बतलाता हूँ। जिनकी आचार्य के सत्कुल में उत्पति हुई हो तथा जो भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में तत्पर हों, उनको गुरु बनाकर मनुष्य सिद्धि पाता है। मनुष्य को चाहिये कि वह ऐसे गुरु से महात्मा श्रीकृष्ण की सेवा-विधि सीखे। जो भगवान विष्णु की दीक्षा से रहित है, उसका सब कुछ निष्फल हो जाता है। गुरुहीन मानव का दर्शन करने पर पुरुष का पुण्य नष्ट हो जाता है। सनातन भगवान श्रीहरि का मन्दिर उत्तरमुख बनवाना चाहिये। उसमें ऊँचा आसन स्थापित करके उसके ऊपर कलश से सुशोभित पीठ स्थापित करे। उसमें तीन सीढ़ी बनाये, जिनके नाम सत्, चित् एवं आनन्द रखे। आसन को मूल्यवान वस्त्र से ढक कर उस पर रुई की गद्दी बिछा दे। उसके आसपास तकिये लगाकर उन्हें स्वर्ण के तारों से निर्मित वस्त्र से ढक दे। दीवालों पर भाँति-भाँति के चित्र अंकित करे और भीतर पर्दा लगा दे। सब ओर मण्डप बनाये तथा तोरण-बंदनवार, झरोखे, जल के फुहारे तथा जालियों से मन्दिर को खूब सजाया जाय। मन्दिर के आंगन में चांदी के सुन्दर सभामण्डल बनाये जाय। वहाँ आंगन के बीच तुलसीजी का मनोहर चबूतरा हो। मन्दिर के बाहरी द्वार पर दो हाथी बनवाने चाहिये। राजन् ! वैसे ही बनावटी दो सिंह भी बैठा दे। मन्दिर का शिखर सोने का हो। शिखर पर उसके नीचे चक्र बनवा दो। मन्दिर के द्वार पर अगल-बगल श्रीहरि के मंगलमय नाम लिखने चाहिये। दीपाल पर एक और गदा, पद्व शंख और शागर्ड धनुष अंकित कराये। बायीं चित्रकारी बनवाये। मन्दिर के पिछले भाग में शतचन्द्र नामक ढाल, नन्दक नाम वाली तलवार, हल और मुसल प्रयत्नपूर्वक अंकित कराये। सिंहासन की पीठ पर गोपियों तथा गौओं को, उसकी पीढ़ी पर गोपालों को और किवाड़ पर ‘जय’ एवं ‘विजय’ लिखे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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