गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 15
बर्हिष्मतीपुरी आदि की वनिताओं का गोपीरूप में प्राकट्य तथा भगवान के साथ उनका रासविलास, मांधाता और सौभरि के संवाद में यमुना-पञ्चांग की प्रस्तावना श्रीनारदजी कहते हैं– राजन् ! व्रज में शोणपुर के स्वामी नन्द बडे़ धनी थे। मिथिलेश्वर ! उनके पाँच हजार पत्नियाँ थीं। उनके गर्भ से समुद्रसम्भवा लक्ष्मीजी वे सखियाँ उत्पन्न हुईं, जिन्हे मत्स्यावतारधारी भगवान से वैसा वर प्राप्त हुआ था। नरेश्वर ! इनके सिवा और भी, विचित्र औषधियाँ, जो पृथ्वी के दोहन से प्रकट हुई थीं, वहाँ गोपीरूप में उत्पन्न हुई। बर्हिष्मतीपुरी की वे नारियाँ भी, जिन्हें महाराज पृथु का वर प्राप्त था, जातिस्मरा गोपियों के रूप में व्रज में उत्पन्न हुई थीं तथा नर-नारायण के वरदान से अप्सराएँ भी गोपीरूप में प्रकट हुई थीं। सुतलवासिनी दैत्यनारियाँ वामन केवर से तथा नागराजों की कन्याएँ भगवान शेष के उत्तम वर से व्रज में उत्पन्न हुईं। दुर्वासा मुनि ने उन सबको अद्भुत 'कृष्णा-पंचांग' दिया था, जिसमें यमुना जी की पूजा करके उनहोंने श्रीपति का वररूप में वरण किया। एक दिन की बात है- मनोहर वृन्दावन में दिव्य यमुना तट पर, जहाँ नर-कोकिलों से सुशोभित हरे-भरे वृक्ष-समुदाय शोभा दे रहे थे, भ्रमरों के गुंजारव के साथ कोकिलों और सारसों की मीठी बोली गूँज रही थी, वासन्ती लताओं से आवृत तथा शीतल-मन्द-सुगन्ध वायु से परिसेवित मधुमास में, गोपांगनाओं के साथ, मदनमोहन श्यामसुन्दर श्रीहरि कल्पवृक्षों की श्रेणी से मनोरम प्रतीत होने वाले कदम्ब वृक्ष के नीचे एकान्त-स्थान में झूला झूलने का उत्सव आरम्भ किया। वहाँ यमुना-जल की उत्ताल तरंगो का कोलाहल फैला हुआ था। वे प्रेमविहृला गोपांगनाएँ श्रीहरि के साथ झूला झूलने की क्रीड़ा कर रही थीं। जैसे रति के साथ रति-पति कामदेव शोभा पाते हैं, उसी प्रकार करोड़ों चन्द्रों से भी अधिक कान्तिमती कीर्तिकुमारी श्रीराधा के साथ वृन्दावन में श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण सुशोभित हो रहे थे। इस प्रकार जो साक्षात परिपूर्णतम नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को प्राप्त हुई थीं, उन समस्त गोपांगनाओं के तप का क्या वर्णन हो सकता है? नागराजों की समस्त सुन्दरी कन्याएँ, जो गोपीरूप में उत्पन्न हुई थी, मनोहर चैत्र मास में यमुना के तट पर श्रीबलभद्र हरि की सेवा में उपस्थित थीं। राजन् ! इस प्रकार मैंने तुमसे गोपियों के शुभ चरित्र का वर्णन किया, जो परम पवित्र तथा समस्त पापों को हर लेने वाला है। अब पुन: क्या सुनना चाहते हो ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |