गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 8
ब्रह्माजी के द्वारा श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी विश्वात्मा स्वरूप का दर्शन श्री नारद जी कहते हैं- श्रीकृष्ण गोवत्सों को न पाकर यमुना किनारे आये, परंतु वहाँ गोप-बालक भी नहीं दिखायी दिये। बछड़ों और वत्सपालों-दोनों को ढूँढ़ते समय उनके मन में आया कि ‘यह तो ब्रह्माजी का कार्य है। तदनन्तर अखिल विश्वविधायक श्रीकृष्ण ने गायों और गोपियों को आनन्द देने के लिये लीला से ही अपने-आपको दो भागों में विभक्त कर लिया। वे स्वयं एक भाग में रहे तथा दूसरे भाग से समस्त बछड़े और गोप-बालकों की सृष्टि की। उन लोगों के जैसे शरीर, हाथ, पैर आदि थे’ जैसी लाठी, सींगा आदि थे; जैसे स्वभाव और गुण थे’ जैसे आभूषण और वस्त्रादि थे; भगवान श्रीहरि ने अपने श्रीविग्रह से ठीक वैसी ही सृष्टि उत्पन्न करके यह प्रत्यक्ष दिखला दिया कि यह अखिल विश्व विष्णुमय है। श्रीकृष्ण ने खेल में ही आत्मस्वरूप गोप-बालकों के द्वारा आत्मस्वरूप गो-वत्सों को चराया और सूर्यास्त होने पर उनके साथ नन्दालय में पधारे। वे बछड़ों को उनके अपने-अपने गोष्ठों में अलग-अलग ले गये और स्वयं उन-उन गोप-बालकों के वेष में अन्यान्य दिनों की भाँति उनके घरों में प्रवेश किया। गोपियाँ वंशी ध्वनि सुनकर आदर के साथ शीघ्रता से उठीं और अपने बालकों को प्यार से दूध पिलाने लगीं। गायें भी अपने-अपने बछड़ों को निकट आया देखकर रँभाती हुई उनको चाटने और दूध पिलाने लगीं। अहा! गोपियाँ और गायें श्रीहरि की माता बन गयीं। गोप-बालक एवं गोवत्स स्नेहाधिक्य के कारण पहले की अपेक्षा चौगुने अधिक बढ़ने लगे। गोपियाँ अपने बालकों की उबटन-स्नानादि के द्वारा स्नेहमयी सेवा करके तब श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये आयीं । इसके बाद अनेक बालकों का विवाह हो गया। अब श्रीकृष्णस्वरूप अपने पति उन बालकों के साथ करोड़ों गोप वधुएँ प्रीति करने लगीं। इस प्रकार वत्स पालन के बहाने अपनी आत्मा की अपनी ही आत्मा द्वारा रक्षा करते हुए श्रीहरि को एक वर्ष बीत गया। एक दिन बलराम जी गोचारण करते हुए वन में पहुँचे। उस समय तक ब्रह्माजी द्वारा वत्सों एवं वत्सपालों का हरण हुए एक वर्ष पूर्ण होने में केवल पाँच-छ: रात्रियाँ शेष रही थीं। उस वन में स्थित पहाड़ी की चोटी पर गायें चर रही थीं। दूर से बछड़ों को घास चरते देखकर वे उनके निकट आ गयीं और उनको चाटने तथा अपना अमृत-तुल्य दूध पिलाने लगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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