गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 10
यादव-सेना का कोंकण, कुटक, त्रिगर्त, केरल, तैलंग, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि देशों पर विजय प्राप्त कर करुष देश में जाना तथा वहाँ दन्तवक्र का घोर युद्ध नारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! तदनन्तर मनुतीर्थ में स्नान करके प्रद्युम्न बारंबार दुन्दुभि बजवाते हुए यादव सेना के साथ कोंकण देश में गये। कोंकण देश का राजा मेधावी गदायुद्ध में अत्यन्त कुशल था। वह मल्लयुद्ध के द्वारा विपक्षी के बल की परीक्षा करने के लिये अकेला ही आया। उसने सेना सहित प्रद्युम्न से कहा- ‘यादवेश्वर ! मुझे गदा युद्ध प्रदान करो। प्रभो ! मेरे बल का नाश करो’। प्रद्युम्न बोले- हे मल्ल ! इस भूतल पर एक-से-एक बढ़कर बलवान वीर है; अत: तुम अपने बल पर घमंड न करो। भगवान विष्णु की माया बड़ी दुर्गम है। हम लोग बहुत-से वीर यहाँ एकत्र हैं और तुम अकेले ही हमसे युद्ध करने के लिये आये हो। महामल्ल ! यह अधर्म दिखायी देता है, अत: इस समय लौट जाओ। मल्ल बोला- जब आप लोग बलशाली वीर होकर भी युद्ध नहीं कर रहे हैं, तो मेरे पैरों के नीचे होकर निकल जाइये तभी अब यहाँ से लौटूँगा। श्रीनारदजी कहते हैं- मैथिल ! उस मल्ल के यों कहने पर समस्त यादव-पुंगव वीर क्रोध से भर गये। तब उसके देखते- देखते बलदेवजी के छोटे भाई बलवान वीर गदा लेकर सामने खड़े हो गये। फिर वह भी सबके सम्मुख गदा उठाकर खड़ा हो गया। उस महाबली मल्ल ने गद के ऊपर एक बड़ी भारी गदा फेंकी। गद ने उसकी गदा को हाथ में थाम लिया और अपनी गदा उके ऊपर दे मारी। गद की गदा से आहत होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ा और मुख से रक्तवमन करने लगा। अब उसने युद्ध की इच्छा त्याग दी। तदनन्तर कोंकण वासी मेधावी ने श्रीहरि के पुत्र प्रद्युम्न को प्रणाम करके कहा- मैंने आप लोगों की परीक्षा के लिये यह कार्य किया था। आप तो साक्षात भगवान ही हैं। कहाँ आप और कहाँ मुझ जैसा प्राकृत मनुष्य ! मेरा अपराध क्षमा कीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ’। श्रीनारदजी कहते हैं– राजन्! ज्यों कहकर, भेंट देकर और श्रीहरि के पुत्र को नमस्कार करके कोंकण देश का राजा क्षत्रिय-शिरोमणी मेधावी अपनी पुरी को चला गया। कुटक देश का स्वामी मौलि शिकार खेलने के लिये नगर से बाहर निकला था। उसे जाम्बवती कुमार महाबाहु साम्बने जा पकड़ा। उससे भेंट लेकर प्रद्युम्न दण्डकारण्य को गये। वहाँ मुनियों के आश्रम देखते हुए सेना सहित श्रीकृष्ण कुमार क्रमश: निर्विध्या, मयोष्णी तथा तापी नदी में स्नान करके महाक्षेत्र शूर्पारक में गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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