गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 36
दीप्तिमान द्वारा महानाभ का वध नारदजी कहते हैं- राजन् ! कालनाभ दैत्य के गिर जाने पर दैत्य सेना में बड़ा भारी कोलाहल मचा। तब महानाभ नामक दैत्य ऊँट पर चढ़कर समरांगण में आया। वह मायावी दैत्यराज मुँह से आग उगलने लगा। उस आग से दसों दिशाएँ प्रज्वलित हो उठीं और धरती के वृक्ष जलने लगे। महाराज् ! वीरों के कवच, पगड़ी, कटिबन्ध और अँगरखा आदि मूँज के फूल (भुआड़ी) तथा रुई के समान जल उठे। राजन् ! समुद्र तटवर्ती नगरों के बने हुए पीले, लाल, सफेद, काले, चितकबरे और सूक्ष्म झूलों तथा हेम-रत्न खचित कशमीरी कालीनों सहित बहुत से हाथी उस समरांगण में दावा नलसे दग्ध होने वाली वृक्षों सहित पर्वतों की भाँति जल रहे थे। मस्तक पर धारण कराये गये रत्नों, चामरों, हारों और सुनहरे साजबाजों के साथ जलते हुए घोड़े उस युद्धभूमि में दावाग्नि से दग्ध होने वाले हरिणों की भाँति उछलते और चौकड़ी भरते थे। अपनी सेना को भय से व्याकुल देख श्रीकृष्ण कुमार दीप्तिमान ने उस मायामयी आग को बुझाने के लिये पार्जन्यास्त्र का संधान किया। फिर तो उस बाण से प्रलयकाल के मेघों की भाँति नील जलधर प्रकट हुए और भयंकर गर्जना करते हुए जल की धाराएं बरसाने लगे। महाराज ! उस धारा सम्पात से भूतल पर पावस ऋतु प्रकट हो गयी। नर कोकिल, मादा कोकिल, मोर और सारस आदि पक्षी अपनी मधुर बोलियाँ बोलने लगे। मेंढक भी टर-टर करने लगे। इन्द्र गोप (वीर बहूटी) नामक लाल रंग के झुंड के झुंड कीट जहाँ-तहाँ शोभित होने लगे। मैथिलेन्द्र इन्द्र धनुष और विद्युन्माला से आकाश उदीप्त दिखायी देने लगा। महानाभ ने दीप्ति मान् के ऊपर बड़े रोष से अपना तीखा त्रिशुल चलाया। सर्प की भाँति अपनी और आते हुए उस त्रिशुल को रोहिणी पुत्र दीप्तिमान ने युद्धभूमि में तलवार से उसी प्रकार काट डाला, जैसे गरुड़ ने अपनी चोंच से किसी नाग के दो टुकड़े कर दिये हों। महानाभ का वाहन उद्भट ऊँट उन्हें दाँत से काटने के लिये आगे बढ़ा। तब दीप्तिमान ने समरांगण में उसके ऊपर अपनी तलवार से चोट की। खड्ग से उसकी गर्दन कट गयी और वह टूक हो पृथ्वी पर गिर पड़ा। महानाभ के देखते-देखते उस ऊंट के प्राण पखेरु उड़ गये। तब दैत्य महानाभ बड़े वेग से हाथी पर जा चढ़ा और हाथ मे शूल लेकर व्योममण्डल को अपनी गर्जना से गुंजाता हुआ फिर युद्ध के लिये आ गया। श्रीकृष्णनन्दन दीप्तिमान चंचल और काले रंग के सिंधी घोड़े पर चढ़कर विधुत के समान कान्तिमान खड्ग से अद्भुत शोभा पाने लगे। उन्होंने घोड़े के पेट में एड़ लगायी और वह भूतल से उछलकर हाथी के कुम्भस्थल पर इस प्रकार जा चढ़ा मानो कोई सिंह पर्वत के शिखर पर बड़े वेग से चढ़ गया हो। फिर श्रीकृष्ण कुमार दीप्तिमान ने तीखी धार वाले खड्ग से महानाभ के मस्तक को सहसा धड़ से अलग कर दिया। वाणवर्षा करती हुई उस दुरात्मा की सेना का दीप्तिमान ने अपनी तलवार से उसी तरह संहार कर डाला, जैसे सिंह हाथियों के झुंड को रौंद डालता है। कुछ दैत्य खड्ग से मारे गये, शेष रणभूमि से पलायन कर गये। किंनर और गन्धर्व गाने लगे तथा अप्सराओं के समुदाय नृत्य करने लगे। ऋषियों, मुनियों और देवताओं ने श्रीहरि के पुत्र का स्तवन किया। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘महानाभ का वध’ नामक छत्तीसवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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