गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 16
उद्धव द्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनों को आश्वासन श्रीनारदजी कहते है– राजन् ! श्रीराधा ने पत्र लेकर उसे अपने मस्तक पर रखा, फिर नेत्रों और छाती से लगाया। तदनन्तर उसे पढ़कर श्रीकृष्ण के चरणाविन्दों का स्मरण करके, अत्यन्त प्रेमातुर हो नेत्रों से अश्रुधारा बहाती हुई वे उद्धव के सामने ही मूर्च्छा की पराकाष्ठा को पहुँच गयीं। तब सखियों ने उनके ऊपर केसर, अगुरु और चन्दन से मिश्रित जल तथा पुष्प रस छिड़क कर चँवर डुलाना आरम्भ किया। इससे पुन: उनकी चैतना लौटी। कमललोचना श्रीराधा को वियोग-दु:ख के सागर में डूबी हुई देख उद्धव तथा गोपियाँ नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहाने लगीं। राजन् ! उन सबके आँसूओं के प्रवाह से तत्काल वृन्दावन में कल्हार- पुष्पों से सुशोभित लीला-सरोवर प्रकट हो गया। नरेश्वर ! जो मुनष्य उस सरोवर का दर्शन, उसके जल का पान तथा उसमें भलीभाँति स्नान करके इस कथा को सुनता है, वह कर्मों के बन्धन से मुक्त हो श्रीकृष्ण को प्राप्त कर लेता है। तदनन्तर उद्धव के मुख से श्रीकृष्ण के पुनरागमन समाचार सुनकर वे सब गोपांग्नाएँ महात्मा गोविन्द का सम्पूर्ण कुशलमंगल पूछने लगीं। श्रीराधा बोंली- उद्धव ! वह समय कब आयेगा, जब मैं घन के समान श्यामकान्ति वाले आनन्दप्रद श्रीव्रजराजनन्दन का दर्शन करूँगी ? जैसे मयूरी मेघमाला के और चकोरी चन्द्रमा के दर्शन के लिये अत्यन्त उत्कण्ठित रहती है, उसी प्रकार मैं भी उनका दर्शन पाने के लिये उत्सुक हूँ। किस कुसमय में मेरा उनसे वियोग हुआ, जिससे इस पृथ्वी पर एक-एक क्षण मेरे लिये एक कल्प के समान हो गया है ! गोविन्द के युगलचरणों के बिना यह विरह की रात इतनी बडी हो गयी है कि ब्रह्माजी की आयु के द्विपरार्ध काल को भी तिरस्कृत कर रही है। उद्धव ! क्या कभी श्यामसुन्दर इस व्रज के मार्ग पर भी पदार्पण करेंगे ? आप मुझे शीघ्र बताइये, वे वहाँ कौन-सा कार्य कर है ? आज तक बडे़ प्रयास से मैंने इन प्राणों को धारण किया है। उनके झूठे वादे से आतुर हुए ये प्राण हठात निकले जा रहे हैं। आज तुम्हे देखकर क्षणभर के लिये मेरा हृदय शीतल हुआ है। तुम्हारे आने से आज मैं उसी तरह प्रसन्न हुई हूँ, जैसे पूर्वकाल में पवनपुत्र हनुमान के लंका में आने से जनकनन्दिनी सीता प्रसन्न हुई थीं। मन्त्रियों में श्रेष्ठ उद्धव ! जो आशा देकर अपने छोह-मोहरूपी धन को त्यागकर और अपनी ही कही हुई बात को भुलाकर मथुरा चले गये, उनके लिखे हुए इस पत्र को वाक्यांश को भी मैं सत्य नहीं मानती। तुम स्वयं उनको यहाँ ले आओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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