गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 19
श्रीकृष्ण का उद्धव के साथ व्रज में प्रत्यागमन और यमुना-तट पर गौओं का उनके रथ को चारों ओर से घेर लेना, गोपों के साथ उनकी भेंट, नन्दगाँव से नन्दरायजी एवं यशोदा-का गोपों एवं गोपियों को लेकर गाजे-बाजे के साथ उनकी अगवानी के लिये निकलना तथा सबके साथ श्रीकृष्ण का नन्द नगर में प्रवेश श्रीनारदजी कहते हैं– राजन् ! इस प्रकार भक्त का वचन सुनकर भक्त वत्सल अच्युत ने अपने कहे हुए वचन को याद करके व्रज में जाने का विचार किया। समस्त कार्यभारों पर दृष्टि रखने के लिये बलदेवजी को मथुरा ही छोड़कर चंचल घोड़ों से जुते हुए किंकिणीजालमण्डित सुवर्ण जटित सूर्यतुल्य तेजस्वी रथ पर उद्धव के साथ आरूढ़ हो भगवान श्रीकृष्ण भक्तों को दर्शन देने के लिये नन्दगाँव को गये। गोवर्धन, गोकुल और वृन्दावन को देखते हुए श्रीकृष्ण यमुना के मनेाहर तट पर पहुँचे। व्रजेश्वर श्रीकृष्ण को देखते ही कोटि-कोटि गौएँ चारों ओर से दौड़ती हुई उनके पास आ गयीं। उन सबके स्तनों से स्नेह के कारण दूध झर रहा था। वे कान और पूँछ उठाकर रँभा रही थीं। उनके साथ बछडे़ भी थे। मुख में घास के ग्रास लिये खड़ी हुई गौएँ नेत्रों से आनन्द के आँसू बहा रही थीं। उनकी व्यथा-वेदना दूर हो गयी थी। राजन् ! जैसे बादल रथ, अरूण और अश्वों सहित शरत्काल के सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार उद्धव के देखते-देखते गौओं ने उस रथ को सब ओर से घेर लिया। गोपाल श्रीहरि उन सब गौओं को अलग-अलग नाम बोलकर अपने श्रीहस्त से उनके अंगों को सहलाते हुए बडे़ हर्ष को प्राप्त हुए। गौओं के समुदाय को उनके समीप गया देख श्रीदामा आदि व्रज-बालक विस्मित हो परस्पर कहने लगे। गोप बोले– सखाओं ! उस वायु के समान वेगशाली तथा कांस्यपत्र (झाँझ) की ध्वनि के समान शब्द करने वाले, कलश और ध्वज सहित रथ को, जिसमें सैकड़ों अश्व जुते हैं तथा जो शत सूर्यों के समान शोभाशाली है, गौओं ने कैसे घेर लिया है ? गौओं के इस हर्ष से यह सूचित होता है कि इस रथ पर दूसरा कोई नहीं, साक्षात व्रजराजनन्दन ही आ रहे हैं, क्योंकि हमारे दाहिने अंग भी फड़क रहे हैं और नीलकण्ठ पक्षी हमारे ऊपर उठकर बंदनवार का-सा विस्तार करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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