गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 2
ऋषिरूपा गोपियों का उपाख्यान- वंगदेश के मंगल-गोप की कन्याओं का नन्दराज के व्रज में आगमन तथा यमुनाजी के तट पर रास मण्डल में प्रवेश श्रीनारदजी कहते हैं- मैथिल ! अब तुम ऋषिरूपा गोपियों की कथा सुनो। वह सब पापों को हर लेने वाली, परम पावन तथा श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति-भाव की वृद्धि करने वाली है। वंगदेश में मंगल नाम से प्रसिद्ध एक महामनस्वी गोप था, जो लक्ष्मीवान, शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न तथा नौ लाख गौओं का स्वामी था। मिथिलेश्वर ! उसके पाँच हजार पत्नियां थीं। किसी समय दैव योग से उसका सार धन नष्ट हो गया। चोरों ने उसकी गौओं का अपहरण कर लिया। कुछ गौओं को उस देश के राजा ने बलपूर्वक अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रकार दीनता प्राप्त होने पर मंगल-गोप बहुत दु:खी हो गया। उन्हीं दिनों श्रीरामचन्द्र जी के वरदान से स्त्रीभाव को प्राप्त हुए दण्डकारण्य के निवासी ऋषि उसकी कन्याएँ हो गये। उस कन्या-समुह को देखकर दु:खी गोप मंगल ओर भी दु:ख में डूब गया और आधि-व्याधि से व्याकुल रहने लगो। उसने मन-ही-मन इस प्रकार कहा ।।1-6।। मंगल बोला- क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? कौन मेरा दु:ख दूर करेगा ? इस समय मेरे पास न तो लक्ष्मी है, न ऐश्वर्य है, न कुटुम्बीजन हैं और न कोई बल ही है। हाय ! धन के बिना इन कन्याओं का विवाह कैसे होगा ? जहाँ भोजन में भी संदेह हो, वहाँ धन की कैसी आशा ? दीनता तो थी ही। काकतालीय न्याय से कन्याएँ भी इस घर में आ गयीं। इसलिये किसी धनवान और बलवान राजा को ये कन्याएँ अर्पित करूँगा, तभी इन कन्याओं को सुख मिलेगा। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! इस प्रकार उन कन्याओं की कोई परवाह न करके उसने अपनी ही बुद्धि से ऐसा निश्चय कर लिया ओर उसी पर डटा रहा। उन्हीं दिनों मथुरा मण्डल से एक गोप उसके यहाँ आया। वह तीर्थ यात्री था। उसका नाम था जय।वह बुद्धिमानों में श्रेष्ठ और वृद्ध था। उसके मुख से मंगल ने नन्दराज के अदभुत वैभव का वर्णन सुना। दीनता से पीड़ित मंगल बहुत सोच-विचार कर अपनी चारू-लोचना कन्याओं को नन्दराज के व्रजमण्डल में भेज दिया। नन्दराज के घर में जाकर वे रत्नमय भूषणों से विभूषित कन्याएँ उनके गोष्ठ में गौओं का गोबर उठाने का काम करने लगीं। वहाँ सुन्दर श्रीकृष्ण को देखकर उन कन्याओं को अपने पूर्वजन्म की बातों का स्मरण हो आया और वे श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये नित्य यमुना जी की सेवा पूजा करने लगीं। तदनन्तर एक दिन श्यामल अंगोवाली विशाल लोचना यमुनाजी उन सबको दर्शन दे, वर-प्रदान करने के लिये उद्यत हुईं। उन गोपकन्याओं यह वर माँगा कि 'व्रजेश्वर नन्दराज के पुत्र श्रीकृष्ण हमारे पति हों।' तब 'तथास्तु' कहकर यमुना वहीं अन्तर्धान हो गयीं। वे सब कन्याएँ वृन्दावन में कार्तिक-पूर्णिमा की रात को रासमण्डल में पहुँची। वहाँ श्रीहरि ने उनके साथ उसी तरह विहार किया,जैसे देवांगनाओं के साथ देवराज इन्द्र किया करते हैं। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘ऋषिरूपा गोपियों का उपाख्यान’ नामक दूसरा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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