गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 16
सिद्धाश्रम की महिमा के प्रसंग में श्रीराधा और गोपांगनाओं के साथ श्रीकृष्ण और उनकी सोलह हजार रानियों का समागम नारदजी कहते हैं- महामते विदेहराज ! अब सिद्धाश्रम का माहात्म्य सुनो, जिसका स्मरण करने मात्र से समस्त पाप छूट जाते हैं। जिसके स्पर्शमात्र से साक्षात श्रीहरि से कभी वियोग नहीं होता, उसी तीर्थ को पुराणवेता पुरुष ‘सद्धाश्रम’ कहते हैं। जिसके दर्शन से सालोक्य, स्पर्श से सामीप्य, जिसमें स्नान करने से सारुप्य और जहाँ निवास करन से सायुज्य मोक्ष की प्राप्ति है, उसे ही ‘सिद्धाश्रम’ जानो। एक समय चद्ररानना सखी के मुख से सिद्धाश्रम तीर्थ का महात्मय सुनकर श्रीकृष्ण के वियोग से व्याकुल हुई श्रीराधा ने उसमें नहाने का विचार किया। वैशाख मास में सूर्य ग्रहण के पर्व पर सिद्धाश्रम तीर्थ की यात्रा के लिये कदल-वन से उठकर श्रीराधा ने गोपांगनाओं के सौ यूथ और समस्त गोपगणों के साथ वहाँ जाने का मन-ही-मन निश्चय किया। श्रीदामा के शाप के कारण होने वाले श्रीकृष्ण वियोग के सौ वर्ष बीत चुके थे। श्रीराधिका शिविका में आरुढ़ हुई। उन पर छत्र-चंवर डुलाये जाने लगे। इस प्रकार वे सती श्रीराधा आनर्त देश के महातीर्थ सिद्धाश्रम को गयीं। नरेश्वर ! वहीं साक्षात भगवान श्रीकृष्ण अपनी सोलह हजार रानियों के साथ यादवगणों से घिरे हुए तीर्थयात्रा के लिये आये। करोड़ों बलिष्ठ गोपाल हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये श्रीराधिका की आज्ञा के अनुसार सिद्धाश्रम की चारों ओर से रक्षा कर रहे थे। गोपियों के सौ यूथ भी बडे़ शक्तिशाली थे। वे तथा अन्य गोपांगनाएं हाथों में बेंत की छड़ी लिये सिद्धाश्रम में विधिपूर्वक स्नान करती हुई श्रीराधा की सेवा में तत्पर थीं। द्वारकावासी स्नान की इच्छा से वहाँ आकर खडे़ थे। शस्त्र और वेत्र धारण करने वाले गोपों ने उन्हें मार-मारकर दूर हटा दिया। इसी समय भगवान श्रीकृष्ण की रानियों ने सिद्धाश्रम में प्रवेश किया। उन रानियों भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘देवकीनन्दन ! आप सर्वज्ञ हैं, अत: हमें बताइये, यह कौन स्त्री स्नान कर रही है, जिसका गौरव मानकर समस्त यादव-पुंगव यहाँ भयभीत से खडे़ हैं। अहो ! यह किसकी प्रिया है, इसका क्या नाम है और यह कहाँ की रहने वाली हैं ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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