गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 19
यादवों और निशाचरों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और भीषण की मूर्च्छा तथा चेतना एवं रणभूमि में बक का आगमन श्रीगर्गजी कहते हैं– राजन ! तदनन्तर रुक्मवती कुमार अनिरुद्ध कुबेर के समान विमान द्वारा विशाल सेना के साथ उपलंका गए। नरेश्वर ! वहाँ जाकर यादवों सहित अनिरुद्ध ने विषधर सर्प के समान विषाक्त बाणों द्वारा उस नगरी का और वहाँ के वन उपवनों का विध्वंस आरंभ कर दिया। वहाँ के क्रीड़ा स्थानों, द्वारों, भवनों, अट्टालिकाओं, छज्जों तथा गोपुरों पर उस विमान के अग्रभाग से अस्त्र–शस्त्रों की वर्षा होने लगी। मुसल, शक्ति, परिघ, बाण और शिलाएँ भी निरंतर पड़ने लगीं। राजन् ! वहाँ प्रचण्ड वायु चलने लगी और संपूर्ण दिशाएँ धूल से आच्छादित हो गईं। इस प्रकार यादवों द्वारा की गई अस्त्र वर्षा से अत्यंत पीड़ित हुई भीषण की वह नगरी कहीं भी कल्याण (परित्राण) नहीं पा रही थी। इसकी वहीं दशा हो गई थी, जैसे पूर्वकाल में शाल्वदेशीय योद्धाओं के आक्रमण से द्वारकापुरी की हुई थी। नृपश्रेष्ठ ! उस समय उस नगरी में हाहाकार मच गया। भीषण आदि असुर भय से विह्वल हो गए। सारी नगरी को पीड़ित देख राक्षस राज भीषण डरो मत– इस प्रकार अभयदान दे राक्षसों के साथ बाहर निकला। फिर तो उसकी पुरी में निशाचरों के साथ यादवों का घोर युद्ध होने लगा। ठीक उसी प्रकार, जैसे पहले लंका में वानरों और राक्षसों में युद्ध हुआ था। वृष्णिवंशी योद्धाओं के बाण समूहों में कंधे कट जाने के कारण राक्षस आंधी के उखाड़े हुए वृक्षों की भाँति समुद्र में गिरने लगे। कुछ निशाचर औंधे मुंह उस पुरी में ही धराशायी हो गए। राजन् ! कोई उतान होकर गिरे और कोई तत्काल पञ्चत्व को प्राप्त हो गए। वहाँ उन राक्षसों के रक्त से एक भयंकर दूषित नदी प्रकट हो गई, जो महावैतरणी की भाँति दुष्पार थी। वहाँ यादवों का बल देख कर भीषण को बड़ा विस्मय हुआ। उसने टेढ़ी आँखों से यादवों की ओर देख कर कहा– तुम लोगों ने निर्बलों की भाँति आकाश में खड़े होकर युद्ध किया है। तुम लोग व्यर्थ वीरता का अभिमान करते हो, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है। तुम लोगों के शरीर में यदि शक्ति हो तो सुनो– पृथ्वी पर उतर आओ और मेरे साथ युद्ध करो। उसकी यह बात सुन कर करुणा मय प्रद्युम्न कुमार भूतल पर विमान उतार कर उस महान असुर से बोले। अनिरुद्ध ने कहा– महान असुर ! बहुत विचार करने के क्या होगा ? तुम महासमर में भय छोड़ कर शीघ्र मेरे साथ युद्ध करो। उनकी यह बात सुनकर भयंकर पराक्रमी भीषण ने अपने धनुष से पाँच नाराच बाण अनिरुद्ध के ऊपर चलाए। अनिरुद्ध ने उन्हें देखकर अपने बाणों द्वारा उन नाराचों के दो–दो टुकड़े कर दिए और खेल–खेल में ही एक बाण से उसके धनुष को काट दिया। भीषण ने भी दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई और सर्पाकार सौ बाणों द्वारा प्रद्युम्न कुमार को घायल कर दिया। उनका रथ खंडित हो गया, सारथि मारा गया, सब घोड़े भी काल के गाल में चले गए और अनिरुद्ध मूर्च्छित हो गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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