गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 4
श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का संदेश; ब्राह्मण सहित श्रीकृष्ण कुण्डिनपुर में आगमन; कन्या और वर के अपने-अपने घरों में मंगलाचार; शिशुपाल के साथ आयी हुई बारात को विदर्भराज का ठहरने के लिये स्थान देना श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! अब श्रीकृष्ण देव के विवाह का वृत्तान्त सुनो, जो सब पापों को हर लेने वाला, पुण्यजनक तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चतुर्वर्गमय फल प्रदान करने वाला है। विदर्भ देश में भीष्मक नाम से प्रसिद्ध एक प्रतापी राजा राज्य करते थे, जो कुण्डिनपुर के स्वामी, श्रीसम्पन्न तथा सम्पूर्ण धर्मवेताओं में सबसे श्रेष्ठ थे। उनके रुक्मिणी नामक एक पुत्री हुई, जो लक्ष्मीजी का अंश थी। वह इतनी अधिक सुन्दरी थी कि उसके सामने करोड़ों चन्द्रमा फीके लगे। वह सदुणरूपी आभूषणों से विभूषित थी। पहले की बात है, एक दिन मेरे मुँह से श्रीहरि के अलौकिक गुणों का वर्णन सुनकर वह राजकुमारी परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को अपने अनुरूप पति मानने लगी। इसी तरह मेरे मुख से रुक्मिणी के रूप और गुणों का प्रीतिवर्धक वर्णन सुनकर श्रीहरि ने उसे अपनी योग्य पत्नी समझा और उसके साथ विवाह करने का मन-मन संकल्प किया। श्रीकृष्ण के भाव को जानने वाले सर्वधर्मज्ञ राजा भीष्मक ने भी अपनी उस कन्या को उन्हीं के हाथ में देने का निश्चय किया था; किंतु़ युवराज रुक्मी ने यत्नपूर्वक पिता को रोका और श्रीकृष्ण के शत्रु महावीर शिशुपाल को रुक्मिणी के योग्य वर माना। मिथिलेश्वर ! इससे भीष्मकुमारी रुक्मिणी के चित में बड़ा खेद हुआ और उसने एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर महात्मा श्रीकृष्ण के पास भेजा। ब्राह्मण देवता जब दिव्य द्वारकापुरी में पहुँचे, तब श्रीकृष्ण ने उनकी आवभगत की। उन्होंने वहीं भोजन किया और श्रीकृष्ण के मन्दिर में ही आसन लगाकर विश्राम किया। फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने उनसे सारा कुशल- समाचार पूछा। उनकी आज्ञा पाकर ब्राह्मण ने उन्हें सब बातें बतायीं। (वे रुक्मिणी का पत्र सुनाते हुए बोले ) “स्वस्ति श्री 5 नित्यानन्द–महासागर श्रीमद्दिव्यगुण परिपूर्ण वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ! जोग लिखी कुण्डिनपुर से रुक्मिणी का कोटिश: प्रणाम स्वीकृत हो। यहाँ कुशल है, वहाँ भी कुशल चाहिये। आगे आपका पत्र आया और श्रीनारदजी की वाणी से भी यह ज्ञात हुआ कि आप प्रकृति से परे परमेश्वर हैं। यद्यपि सर्वज्ञ होने के नाते आप सब कुछ जानते हैं, तथापि मैं गुप्त बात आपको बता रही हूँ। महामते ! आप मुझे वीर का भाग (अपना अंश) जानें और स्वीकार करें। यदि चेदिराज शिशुपाल ने मेरा हाथ पकड़ लिया तो यह समझना चाहिये कि सिंह के लिये नियत बलिका भग कोई मृग (कुत्ता, बिल्ली आदि ) उठा ले गया। यदि आप ऐसा सोचते हों कि ‘तुम तो कुण्डिनपुर के दुर्गम निवास करती हों तुम्हें किस प्रकार ब्याहाकर लाऊँगा, तो इसके विषय में भी सुन लीजिये। हरे ! यहाँ की कुल प्रथा के अनुसार विवाह के एक दिन पूर्व राजकुमारी कुलदेवी के मन्दिर को जाती है। यह यात्रा बड़ी धूम-धाम से की जाती है। अत: मैं जहाँ कुलदेवी का मन्दिर है, वहाँ पर आऊँगी। प्रभो ! वहीं आप मुझे अपने साथ ले लें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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