गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 23
अम्बिका वन में अजगर से नन्दराज की रक्षा तथा सुदर्शन-नामक विद्याधर का उद्धार सुदर्शन बोला- प्रभो! मेरा नाम सुदर्शन है, मैं विद्याधरों का मुखिया हूँ। मुझे अपने बल का बड़ा घमंड था और मैंने अष्टावक्र मुनि को देखकर उनकी हँसी उडायी थी। तब उन्होंने मुझे शाप दे दिया- 'दुर्मते! तू सर्प हो जा।' माधव! उनके उस शाप से आज मैं आपकी कृपा से मुक्त हुआ हूँ। आपके चरण-कमलों के मकरन्द एवं पराग के कणों का स्पर्श पाकर मैं सहसा दिव्य पदवी को प्राप्त हो गया। जो भूतल का भूरि-भार-हरण करने के लिये यहाँ अवतीर्ण हुए हैं, उन भगवान भुवनेश्वर को बारंबार नमस्कार है। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन्! इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार करके वह विद्याधर सब प्रकार से उपद्रवों से रहित वैष्णवलोक को चला गया। उस समय श्रीकृष्ण को परमेश्वर जानकर नन्द आदि गोप बड़े विस्मित हुए। फिर वे शीघ्र अम्बिका वन से व्रज मण्डल को चले गये। इस प्रकार मैंने तुमसे श्रीकृष्ण के शुभ चरित्र का वर्णन किया, जो पुण्यप्रद तथा सर्वपापहारी है। अब और क्या सुनना चाहते हो ?। बहुलाश्व बोले- अहो! श्रीकृष्णचन्द्र का चरित्र अत्यन्त अद्भुत है, उसे सुनकर मेरा मन पुन: उसे सुनना चाहता है। देवर्षिसत्तम! व्रजेश्वर परमात्मा श्रीहरि ने व्रज-मण्डल में आगे चलकर कौन-सी लीला की ?। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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