गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 45
रागिनियों तथा राग-पुत्रों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का स्तवन और उनका द्वारकापुरी के लिये प्रस्थान श्रीनारदजी कहते है- राजन ! तदनन्तर भैरव आदि रागगण भगवान श्रीहरि के सामने उपस्थित हुए और रूप के अनुरूप उनके प्रत्येक अवयव का दर्शन करके अत्यन्त हर्षित हुए। श्रीहरि के विग्रह में जिस जिस अंग पर उनकी दृष्टि पड़ती थी, वहीं वहीं वह ठहर जाती थी। लवणीय विशेष का अनुभव करके वह वहाँ से हटने में समर्थ नहीं होती थी। भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के उस अत्यन्त अद्भुत रूप का दर्शन करके वे भी पृथक-पृथक उसका गुणगान करने लगे। भैरव बोला- श्रीहरि के दोनों घुटनों का चिन्तन करो, जिन्हें सदा अंक में लेकर कमला अपने कमलोपम करों से उनकी सेवा करती हैं। मेघमल्लार ने कहा- सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण की दोनों जांघें, मानो कदली खण्ड हैं, सोने के खंभे हैं, तेज से पूर्ण हैं, अनुपम शोभा से सम्पन्न हैं तथा पीताम्बर से ढकी हुई हैं। उन दोनों वन्दनीय ऊरु युगल का मैं ध्यान करता हूँ। दीपक राग ने कहा- भगवान के कटिभाग से नीचे जो सम्पूर्ण चरण हैं, वे समस्त सुखों को देने वाले हैं तथा सुवर्ण की सी कान्ति धारण करते हैं, उन सुप्रसिद्ध चरणों का भजन करो। मालकोश बोला- भगवान श्रीहरि की जो कमर है, वह केश के समान अत्यन्त पतली है और वह मनुष्यों की दृष्टि का मान हर लेती है, अर्थात उस कटि को देखने में दृष्टि समर्थ नहीं हो पाती; वह मन्द-मन्द समीर के चलने पर भी अत्यन्त कम्पित होने या लचकने लगती है। इस प्रकार वह सब के चित्त को हर लेने वाली है। मैं विनम्र मस्तक से उसकी वन्दना करता हूँ। श्रीराग बोला- राधिकावल्लभ का जो नाभि सरोवर है, उसका मैं अपने हृदय में प्रतिदिन ध्यान करता हूँ। वह पुष्करकुण्ड के समान शोभा पाता है। त्रिवलीपुर लहरों से उसकी मनोहरता बढ़ गयी है और वहाँ की रोमावली ने कामदेव के क्रीडा-कानन को तिरस्कृत कर दिया हैं। हिन्दोल राग ने कहा- उदर में जो त्रिवली की पंक्ति है, वह क्या अक्षरों की पंक्ति (वर्णमाला) है अथवा पीपल के पत्ते पर मोहन-माला दिखायी देती है क्या कमल दल पर कोई श्याम रेखा है या उदर में यह रोमावलि फैली है। भैरवराग की रागिनियाँ बोलीं- श्रीकृष्णहरि का जो पीताम्बर है, वह दीप्तिमान इन्द्र धनुष तो नहीं है सोने के तारों की शिल्पकला द्वारा वह मनोहर ढंग से टंका हुआ है। उसका ही भजन करो, वह मनुष्यों का दु:ख हर लेने वाला है। भैरव के पुत्रों ने कहा- भगवान ! आपकी चारों भुजाएँ चारों समुद्रों के समान सम्पूर्ण विश्व को परिपूर्ण करने वाली हैं, चार पदार्थों के समान आनन्ददायिनी हैं, लोकरुपी चंदोवा के वितान में दण्ड का काम देती हैं तथा भूमि को धारण करने में दिग्गजों के समान प्रतीत होती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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