गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 14
उद्धव का श्रीकृष्ण-सखाओं को आश्वासन, नन्द और यशोदा से बातचीत तथा उनकी प्रेम-लक्षणा-भक्ति से चकित होकर उद्धव का उन्हें श्रीकृष्ण के चरित्र सुनाना उद्धव बोले– व्रजवासियों ! मैं श्रीकृष्ण का दास हूँ– उनका प्रेमपात्र तथा एकान्त सेवक हूँ। श्रीहरि ने बड़ी उतावली के साथ आप लोगों का कुशल-मंगल जानने के लिये मुझे यहाँ भेजा है। यहाँ से मथुरापुरी को लौटकर श्रीहरि से आप लोगों की विरह वेदना निवेदित करके अपने नेत्रों के जल से उनके चरण पखारकर उन्हें प्रसन्न करूँगा और उन्हें साथ लेकर शीघ्र ही आप लोगों के समीप आउँगा– यह मेरी प्रतिज्ञा है, यह कभी झूठी नहीं होगी। गोपालगण ! आप लोग प्रसन्न हों, शोक न करें। आप इस व्रज में शीघ्र श्रीवल्लभ श्रीहरि का दर्शन करेंगे । नारदजी कहते हैं– राजन् ! इस प्रकार ग्वालों को आश्वासन दे, रथ पर बैठे हुए यदुनन्दन उद्धव श्रीदामा आदि गोपों के साथ हर्ष से भरकर नन्द गाँव प्रविष्ट हुए। उस समय सूर्य समुद्र में डूब चुके थे। उद्धव का आगमन सुनकर परम बुद्धिमान नन्दराज ने शीघ्र आकर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक हृदय से लगाया और बड़े हर्ष से उनका पूजन स्वागत सत्कार किया। जब उद्धवजी भोजन करके शान्त भाव से शय्या पर आसीन हुए, तब नन्दराज ने भी शय्या पर स्थित हो गद्गद वाणी में कहा । नन्द बोले– महामते उद्धव ! क्या मेरे मित्र वसुदेव मथुरापुरी में अपने पुत्रों के साथ सकुशल हैं ? सखे ! कंस के मर जाने पर यादव शिरोमणियों को इस भूतल पर पर सुख सुविधा की प्राप्ति हुई है। क्या कभी बलराम सहित माधव अपनी माता यशोदा को भी याद करते हैं ? यहाँ के ग्वाल, गोवर्धन पर्वत, गौओं के समुदाय और व्रज, वृन्दावन, यमुना-पुलिन अथवा यमुना नदी का भी कभी स्मरण करते हैं ? हा दैव ! अब मैं किस समय बिम्ब फल के समान लाल ओठ वाले अपने पुत्र कमल-नयन श्यामसुन्दर को बलराम और ग्वाल-बालों के साथ बार-बार घर के आँगन और चबूतरों पर लोटते देखूँगा ? कुंज, निकुंज, महानदी यमुना, गिरिराज गोवर्धन, यह वृन्दावन तथा दूसरे-दूसरे वन, गृह, लता, वृक्ष और गौओं के समुदाय तथा इनके साथ ही यह सारा संसार मुकुन्द के बिना विषतुल्य प्रतीत हो रहा है। कमलदल के समान विशाल नेत्र वाले श्रीकृष्ण के बिना मेरे जीवन, शयन और भोजन को भी धिक्कार है। इस भूतल पर चन्द्रमा बिछुडे़ हुए चकोर की भाँति मैं उनके आगमन की बहुत अधिक आशा से ही जीवन धारण कर रहा हूँ। महामते ! मैं श्रीकृष्ण और बलराम को परात्पर परमेश्वर ही मानता हूँ। देवताओं के अत्यन्त प्रार्थना करने पर वे पूर्णतम भगवान भूमि का भार उतारने के लिये स्वेच्छा अवतीर्ण हुए हैं और अब संतों की रक्षा में तत्पर हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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