गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 25
प्रद्युम्न का एक युक्ति के द्वारा गणेशजी को रणभूमि से हटाकर गुह्यक सेना पर विजय प्राप्त करना और कुबेर का उनके लिये बहुत-सी भेंट-सामग्री देकर उनकी स्तुति करना; फिर प्राग्ज्योतिषपुर में भेंट लेकर प्रद्युम्न का विरोधी वानर द्विविद को किष्किन्धा में फेंक देना श्री नारदजी कहते हैं- राजन् ! तब भगवान अनिरुद्ध प्रचण्ड मार्जार का रूप धारण किया। वे गणेशजी से अलक्षित ही रहे। वैष्णवी माया के प्रभाव से गणेशजी उन्हें पहचान न सके। वह प्रचण्ड मार्जार विकट फुत्कार करता हुआ चूहे के सामने कूद पड़ा। राजन्। वह मुंह फाड़-फाड़कर निरन्तर उसे देखने और तीखे नखों से विशेष चोट पहुँचाने लगा। चूहा उस बिलाव को देखते ही भय से विह्वल हो गया और तुरंत कांपता हुआ रणभूमि से भाग चला। क्रोध से भरा हुआ मार्जार स्थूल रूप धारण करके उसका पीछा करने लगा। गणेशजी बारंबार उस चूहे को युद्ध भूमि की ओर लौटाने का प्रयत्न करने लगे; किंतु प्रचण्ड मार्जार से पीड़ित चूहा युद्ध भूमि की ओर नहीं लौटा, नहीं लौटा। मैथिल ! वह सात द्वीपों, सात समुद्रों, दिशाओं और विदिशाओं तथा ऊपर के सातों लोकों में भागता फिरा; किंतु उसे कहीं भी शान्ति नहीं मिली। राजन ! गणेशजी को पीठ पर लिये वह चूहा जहाँ-जहाँ गया, वहाँ-वहाँ प्रचण्ड पराक्रमी मार्जार भी उसका पीछा करता रहा। इस प्रकार चूहे सहित गणेश जी जब सुदूर दिशाओं में चले गये और अपने पक्ष के सभी प्रमथगण विस्मित हो गये, तब पुष्पक विमान पर बैठे हुए कुबेर ने अपनी गुह्मक-सम्बन्धिनी माया फैलायी। अपना दिव्य धनुष लेकर, महेशवर को नमस्कार करके उन्होंने मन्त्र सहित कवच धारण किया और बाण-समूहों का संधान किया। उसी समय आकाश में प्रलय-कालिक मेघ छा गये। बिजलियों की गड़गड़ाहट और महा भयंकर मेघों की घटा से अन्धकार फैल गया। हाथी के समान मोटे-मोटे जल बिन्दु और ओले गिरने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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