गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 5
भिन्न-भिन्न स्थानों तथा विभिन्न वर्गों की स्त्रियों के गोपी होने के कारण एवं अवतार-व्यवस्था का वर्णन भगवान श्रीहरि कहते हैं- वैकुण्ठ में विराजने वाली रमादेवी की सहचरियाँ, श्वेतद्वीप की सखियाँ, भगवान अजित (विष्णु) के चरणों के आश्रित ऊर्ध्व वैकुण्ठ में निवास करने वाली देवियाँ तथा श्रीलोकाचल पर्वत पर रहने वाली, समुद्र से प्रकटित श्रीलक्ष्मी की सखियाँ- ये सभी भगवान कमलापति के वरदान से व्रज में गोपियाँ होंगी। पूर्वकृत विविध पुण्यों के प्रभाव से कोई दिव्य, कोई अदिव्य और कोई सत्त्व, रज, तम-तीनों गुणों से युक्त देवियाँ व्रजमण्डपल में गोपियाँ होगीं। रुचि के यहाँ पुत्ररूप से अवतीर्ण, द्युलोकपति रुचिर विग्रह भगवान यज्ञ को देखकर देवांगनाएँ प्रेमरस में निमग्न हो गयीं। तदनंतर वे देवलजी के उपदेश से हिमालय पर्वत पर जाकर परम भक्तिभाव से तपस्या करने लगीं। ब्रह्मन ! वे सब मेरे व्रज में जाकर गोपियाँ होंगी। भगवान धनवंतरि जब इस भूतल पर अंतर्धान हुए, उस समय सम्पूर्ण ओषधियाँ अत्यंत दु:ख में डूब गयीं और भारतवर्ष में अपने को निष्फल मानने लगीं। फिर सबने सुन्दर स्त्री का वेष धारण करके तपस्या आरम्भ की। चार युग व्यतीत होने पर भगवान श्रीहरि उन पर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले- ‘तुम सब वर माँगो।’ यह सुनकर स्त्रियों ने उस महान वन में जब आँखें खोलीं, तब उन श्रीहरि का दर्शन करके वे सब की सब मोहित हो गयीं और बोलीं- ‘आप हमारे पतितुल्य आराध्यदेव होने की कृपा करें’। भगवान श्रीहरि बोले- ओषधि स्वरूपा स्त्रियों ! द्वापर के अंत में तुम सभी लतारूप से वृन्दावन में रहोगी और वहाँ रास में मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। श्रीभगवान कहते हैं- ब्रह्मन ! भक्तिभाव से परिपूर्ण वे बड़भागी वरांगनाएँ वृन्दावन में ‘लता-गोपी होंगी। इसी प्रकार जालन्धर नगर की स्त्रियाँ वृन्दापति भगवान श्रीहरि का दर्शन करके मन ही मन संकल्प करने लगीं- ‘ये साक्षात श्रीहरि हम सबके स्वामी हों।’ उस समय उनके लिये आकाशवाणी हुई-‘तुम सब शीघ्र ही रमापति की अराधना करो; फिर वृन्दा की ही भाँति तुम भी वृन्दावन में भगवान की प्रिया गोपी होओगी।’ मत्स्यावतार के समय मत्स्य विग्रह श्रीहरि को देखकर समुद्र की कन्याएँ मुग्ध हो गयी थीं। श्रीमत्स्य भगवान के वरदान से वे भी व्रज में गोपियाँ होंगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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