गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 24
यादव सेना और यक्ष सेना का घोर युद्ध श्रीनारदजी कहते हैं- राजन! अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा से वहाँ अन्धकार छा जाने पर महाबली मणिग्रीव ने बाणों द्वारा वैरीवाहिनी का उसी प्रकार विध्वंस आरम्भ किया, जैसे कोई कटुवचनों द्वारा मित्रता का नाश करे। मणिग्रीव के बाण-समूहों से क्षत विक्षत हो, हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिक आंधी के उखाडे़ हुए वृक्षों की भाँति धराशायी होने लगे। उस समय श्रीकृष्ण और सत्यभामा के बलवान पुत्र चन्द्रभानु ने पांच बाण मारकर मणिग्रीव के कोदण्ड को खण्डित कर किया तथा दस बाणों से उसके रथ का छेदन करके बलवान चन्द्रभानु घन के समान गर्जना करने लगे। यह देख मणिग्रीव ने भी चन्द्रभानु पर अपनी शक्ति चलायी। मैथिल ! वह शक्ति सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करती हुई बड़ी भारी उल्का के समान गिरी, परंतु चन्द्रभानु ने खेल सा करते हुए उसे बांयें हाथ से पकड़ लिया। उन्होंने उसी शक्ति के समारांगण में महाबली मणिग्रीव को घायल कर किया। तत्पश्चात महाबली चन्द्रभानु उस रणभूमि में पुन: गर्जना करने लगे। उस प्रहार से मणिग्रीव मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। तब नलकूबर की प्रेरणा से असुरों ने बाणों का जाल-सा बिछाकर चन्द्रभानु को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे बादल वर्षाकाल के सूर्य को ढक देते हैं । तब श्रीकृष्णपुत्र दीप्तिमान खड्ग हाथ में लेकर बडे़ वेग से यक्षों की सेना में इस प्रकार घुस गये मानो सूर्य ने कुहासे के भीतर प्रवेश किया हो। उनके खड्ग प्रहार से कितने ही यक्षों के दो-दो टुकड़े हो गये कितने ही मस्तक, पैर, कंधे, बाहें, हाथ, कान और ओठ छिन्न-भिन्न हो जाने के कारण युद्ध में पृथ्वी पर गिर पडे़। किरीट, कुण्डल और शिरस्त्राणों सहित उनके कटे हुए बीभत्स मस्तक रक्त की धारा बहा रहे थे। और उनसे ढकी हुई रणभूमि महामारी सी जान पड़ती थी। मरने से बचे हुए घायल यक्ष भय से विह्वल होकर भाग गये। मिथिलेश्वर ! उस समय यक्ष-सैनिकों में हाहाकार मच गया ।तब कवचधारी नलकूबर धनुष की टंकार करते हुए बहुत ऊँची पताका वाले रथ पर आरुढ़ हो वहाँ आ पहुँचे और ‘डरो मत’- यों कहकर अपने सैनिकों को अभयदान देने लगे। नलकूबर ने पांच बाणों से कृतवर्मा पर, दस बाणों से अर्जुन पर और बीस बाणों से दीप्तिमान पर प्रहार किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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