गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 14
भृगुकुल-भूषण परशुरामजी ने अपने योगबल से इन सब पदार्थों के पर्वत जैसे ढेर लगा दिये। सारी सेना भोजन कर चुकी, तब भी वहाँ वे खाद्य पदार्थों के पर्वत हाथ भर भी छोटे नहीं हुए। परशुरामजी का यह वैभव देखकर सब लोग अत्यन्त आश्चर्य चकित हो गये। राजन् ! यादवों सहित श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न ने उस समय परशुरामजी को नमस्कार करके सबके सामने इस प्रकार पूछा । प्रद्युम्न बोले- भगवन्! अपने हम सब लोगों को अत्यन्त उत्तम भोजन प्रदान किया। प्रभो ! सारी समृद्धियां और सिद्धियां आपके चरणों में लोटती हैं। अब मैं यह जानना चाहता हूँ कि समस्त हरि भक्तों में श्रीहरि का प्रिय भक्त कौन है ? विप्रेन्द ! यह मुझे बताइये क्योंकि आप परावरवेत्ताओं में सबसे श्रेष्ठ है। परशुरामजी ने कहा- प्रभो ! आप क्या नहीं जानते, तो भी साधारण लोगों की भाँति पूछते हैं। लोगों को शिक्षा देने के लिये ही आप इस तरह सत्संग करते हुए भूतल पर विचरते हैं। जो अकिंचन है जिसके पास कोई संग्रह परिग्रह नहीं है, जो केवल श्रीहरि के चरणारविन्दों के पराग पर ही लुब्ध है, श्रीहरि की सुन्दर कथा के श्रवण कीर्तन में ही तत्पर रहता है तथा जिसका चित्त भगवान के रूप सिन्धु की लहरों में ही डूबा रहता है, वही श्रीकृष्णचन्द्र का प्रिय भक्त कहा गया है। परमेश्वर ! जिस महापुरुष ने अपने मन और इन्द्रियों को वश में कर रखा है, जो समस्त जंगम प्राणियों के प्रति स्नेह एवं दया का भाव रखता है, जो शान्त, सहनशील, अत्यन्त कारुणिक सबका सुहृद एवं सत्पुरुष है, वही भगवान श्रीकृष्णचन्द्र का प्रिय भक्त कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |