गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 14
जब महानन्द वश में हो जाय, तब उल्का का क्या प्रयोजन है। साधों ! जगत तभी तक टिका रहता है, जब तक तत्व का ज्ञान नहीं होता। परब्रह्म परमात्मा के ज्ञात या प्राप्त हो जाने पर जगत का क्या प्रयोजन है। जैसे मुख का प्रतिबिम्ब दर्पण में दिखायी देता है, परंतु वास्तविक शरीर उससे भिन्न है, उसी प्रकार प्रधान अर्थात प्रकृति में प्रतिबिम्ब चैतन्य जीव है, परंतु ज्ञान के आलोक में वह परात्पर परमात्मा सिद्ध होता है। जैसे सूर्योंदय होने पर सारी वस्तुएं नेत्र से दिखायी देती हैं। उसी प्रकार ज्ञानोदय होने पर ब्रह्मतत्व का साक्षात्कार होता है। फिर जीव कहीं नहीं दृष्टिगोचर होता है। नारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार उपेदश सुनकर यादवराज प्रद्युम्न ने उनको नमस्कार किया और सेना के साथ वे द्रविड़ देश में वैकुण्ठाचल के पास गये। द्रविड़ देश के स्वामी धर्मतत्वज्ञ राजर्षि सत्यवाक ने बड़ी भक्ति से प्रद्युम्न का आदर-सत्कार किया। फिर श्रीशैल का दर्शन करके वहाँ के अद्भुत शिवालय तथा स्कन्दस्वामी का दर्शन प्राप्त कर वे पम्पा-सरोवर गये। तदनन्तर श्रीद्वारकानाथ प्रद्युम्न गोदावरी ओर भीमरथी आदि भगवत तीर्थों का दर्शन करते हुए महेन्द्राचल पर गये। उस पर्वत पर क्षत्रियों का अन्त करने वाले भृगवंशी परशुरामजी विराजमान थे। उन्हें नमस्कार और उनकी परिक्रमा करके श्रीकृष्णनन्दन वहाँ खडे़ हो राजेंद्र ! परशुरामजी ने उन्हें आशीर्वाद देकर यादवों की चतुरंगिणी सेना का योगशक्ति से सत्कार किया। दाल, भात, चटनी, दही में भिगोयी हुई भाजी की पकोड़ियां, सिखरन, अवलेह (सिरका या अचार), पालक का साग, इक्षुभिक्षि (राब और चीनी का बना हुआ भोज्य पदार्थ विशेष), शक्कर के मेल से बना हुआ त्रिकोणाकार मिष्टान्न (गुझिया, समोसा आदि), बड़ा, मधुशीर्षक (मधुपर्क या घेवर आदि मिष्टान्न-विशेष) फेणिका (फेनी), उपरिष्ट (पुडीया पूआ आदि), छिद्रयुक्त शतपत्र (एक प्रकार की मिठाई), चक्राभचिह्निका (चक्राकार चिह्नवाली मिठाई, इमिरती आदि), सुधाकुण्डलिका (जलेबी), घृतपूर (घी की बनी हुई पूडी), वायुपूर (मालपूआ), चन्द्रकला, दधिस्थूली (दही में भीगकर फूली हुई बड़ी), कपूर से वासित खांड की बनी मिठाई , गोधूमपरिखा (खाजा), इनके साथ सुन्दर-सुन्दर फल, उत्तम दधि, मोदक शाक-सौधान (विविध शाकों के समुदाय), मण्ड (दूध की मलाई या झाग), खीर, दही, गाय का घी, ताजा मक्खन, मण्डूरी (सपग का रसा), कुम्हड़ा, पापड़, शक्ति का (शक्तिवर्धक पेय, द्राक्षासव आदि) लस्सी, सुवीराम्ल, (खट्टी कॉजी), सुधारस (शहद या मीठा शर्बत) उत्तमोत्तम फल, मिश्री, नाना प्रकार के फल, मोहनभाग (हलुआ), नमकीन पदार्थ, कसैले, मीठे, तीखे, कड़वे और खट्टे अनेक प्रकारके भोज्य पदार्थों इन सबको छप्पन भोग कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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