गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 8
इस प्रकार बलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा अनेक मल्लों के मारे जाने पर शेष मल्ल भय से व्याकुल हो प्राण बचाने की इच्छा से भाग खडे़ हुए, तदनन्तर श्रीदामा आदि अपने मित्र गोपों को खींचकर माधव ने उनके साथ समस्त सज्जनों के सामने मल्लयुद्ध का खेल आरम्भ किया। किरीट और कुण्डलधारी बलराम तथा श्रीकृष्ण को ग्वाल-बालों के साथ रंगभूमि में विहार करते देख समस्त पुरवासी विस्मय से चकित हो उठे। कंस के सिवा अन्य सब लोगों के मुँह से 'जय हो ! जय हो !' की बोली निकलने लगी। सब ओर से साधुवाद सुनायी देने लगा और नगारे बज उठे। अपनी पराजय देख कंस अत्यन्त क्रोध से भर गया और बाजे बंद करने की आज्ञा देकर फड़कते हुए अधरों से बोला। कंस ने कहा- वसुदेव के दोनों पुत्र खोटी बुद्धि और खोटे विचार वाले हैं। इन दोनों को हठात और शीघ्र मेरे नगर से निकाल दो। व्रजवासियों का सारा धन हर लो और दुर्बुद्धि नन्द को सहसा कैद कर लो। आज मेरे दुर्बुद्धि पिता शूरपुत्र उग्रसेन का भी मस्तक तुरंत काट लो, काट लो। पृथ्वी पर जहाँ-कहीं भी और यहाँ भी जो-जो वृष्णिवंशी यादव मिल जायँ, उन सबको देवताओं के अंश से उत्पन्न समझकर मार डालों। नारदजी कहते हैं- जब कंस इस प्रकार बढ़-बढ़कर बातें बना रहा था, उस समय यदुनन्दन श्रीकृष्ण सहसा क्रोध से भर गये और उछलकर उसके मंच के उपर चढ़ गये। अपनी मुर्तिमान मृत्यु को आता देख कंस तुरंत उठकर खड़ा हो गया और उस मदमत्त नरेश ने श्रीकृष्ण को डाँट बताते हुए ढाल-तलवार हाथ में ले ली। श्रीकृष्ण ने ढाल-तलवार लिये हुए कंस को सहसा दोनों हाथों से उसी प्रकार पकड़ लिया, जैसे पक्षिराज गरूड़ ने अपनी चोंच के दो भागों द्वारा किसी विषधर सर्प को दबा लिया हो। कंस के हाथ से तलवार छूटकर गिर गयी। ढाल भी दूर जा पड़ी। वह बलवान वीर बल लगाकर श्रीकृष्ण की भुजाओं के बन्धन से उसी प्रकार निकल गया, जैसे पुण्डरीक नाग गरुड़ की चोंच से छूट निकला हो। वे दोनों बलवान वीर उस मंच पर वेग से एक-दूसरे को रौंदते हुए उसी प्रकार सुशोभित हुए, जैसे पर्वत के शिखर पर दो सिंह परस्पर जूझते हुए शोभा पा रहे हों। कंस बलपूर्वक उछलकर सौ हाथ उपर आकाश में चला गया। फिर श्रीकृष्ण ने भी उछलकर उसे इस प्रकार पकड़ लिया, मानों एक बाज पक्षी ने दूसरे बाज पक्षी को आकाश में धर दबोचा हो। उस प्रचण्ड दैत्यपुंगव कंस को भुजदण्डों से पकड़कर तीनों लोकों का बल धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने चारों ओर घुमाना आरम्भ किया। फिर रोष से भरकर उन्होंने कंस को आकाश से उस मंच पर ही दे मारा। मंच के स्तम्भ-दण्ड उसी प्रकार टूट गय, जैसे बिजली गिरने से वृक्ष टूट जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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