गर्ग संहिता पृ. 825

गर्ग संहिता

अश्‍वमेध खण्‍ड : अध्याय 59

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कृष्ण सहस्रनाम

क्र.सं. नाम वर्णन
1. हरिगृही भक्तों के पाप-ताप का हरण करने वाले
2. देवकीनन्दन अपने आविर्भाव से माता देवकी एवं यशोदा को आनंद प्रदान करने वाले
3. कंसहन्‍ता कंस का वध करने वाले
4. परात्मा परमात्म
5. पीताम्बर: पीतवस्त्रधारी
6. पूर्णदेव: परिपूर्ण देवता श्रीकृष्‍ण
7. रमेश: रमावल्लभ
8. कृष्‍ण: सबको अपनी ओर आकर्षित करने वाले
9. परेश: सर्वोत्कृष्‍ट ब्रह्मा आदि देवताओं के भी नियन्‍ता
10. पुराण: पुरातन पुरुष या अनादिसिद्ध
11. सुरेश: देवताओं पर भी शासन करने वाले
12. अच्युत: अपनी महिमा या मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले
13. वासुदेव: वसुदेवनंदन अथवा सबके अन्‍त:करण में निवास करने वाले देवता, चार व्‍यूहों में से प्रथम व्‍यूहरूप
14. देव: प्रकाशस्वरूप परम देवता
15. धराभारतहर्ता पृथ्‍वी का भार हरण करने वाले
16. कृती कृतकृत्‍य अथवा पुण्‍यात्मा
17. राधिकेश: राधाप्राणवल्लभ
18. पर: सर्वोत्कृष्‍ट
19. भूवर पृथ्‍वी के स्‍वामी
20. दिव्यगोलोक-नाथ: दिव्‍यधाम गोलोक के स्‍वामी
21. सुदाम्नस्‍तथा राधिकाशापहेतु: सुदामा तथा राधिका के पारस्‍परिक शाप में कारण
22. घृणी दयालु
23. मानिनी-मानद: मानिनी को मान देने वाले
24. दिव्यलोक: दिव्यधाम स्‍वरूप
25. लसद्गोपवेश: सुन्‍दर गोपवेषधारी
26. अज: अजन्‍मा
27. राधिकात्मा राधिका के आत्मा अथवा राधिका हैं आत्‍मा जिनकी, वे
28. चलत्कुण्‍डल: हिलते हुए कुण्‍डलों से सुशोभित
29. कुन्तली घुंघराली अलकों से शोभायमान
30. कुन्‍तलस्‍त्रक् केशराशि में फूलों के हार धारण करने वाले
31. कदाचिद् राधया रथस्‍थ: कभी-कभी राधिका के साथ रथ में विराजमान
32. दिव्यरत्न दिव्यमणि- कौस्‍तुभ धारण करने वाले अथवा अखिल जगत् के दिव्य रत्न स्‍वरूप
33. सुधासौधभूचारण: चूने से लिपे-पुते छत की महल पर घुमने वाले
34. दिव्यवासा: दिव्य वस्‍त्रधारी
35. कदा वृन्‍दकारण्‍यचारी कभी-कभी वृंदावन में विचरने वाले
36. स्‍वलोके महारत्न सिंहासनस्‍थ: अपने धाम में महामूल्यवान एवं विशाल रत्नमय सिंहासन पर विराजमान
37. प्रशान्‍त: परम शान्‍त
38. महाहंसभैश्‍चामरैर्वीज्‍यमान: महान हंसों के समान श्‍वेत चामरों से जिनके ऊपर हवा की जाती है, ऐसे भगवान
39. चलच्‍छत्रमुक्तावली शोभमान: हिलते हुए श्‍वेतच्‍छत्र तथा मुक्ता की मालाओं से शोभित होने वाले।
40. सुखी आनंदस्‍वरूप
41. कोटिकंदर्प लीलाभिराम: करोड़ों कामदेवों के सामने ललित लीलाओं के कारण अतिशय मनोहर
42. क्वणन्नूपुरालं कृताङघ्रि: झंकारते हुए नूपुरों से अलंकृत चरणवाले
43. शुभाङघ्रि: शुभ लक्षणसम्पन्न पैर वाले
44. सुजानु सुन्‍दर घुटनों वाले
45. रम्भाशुभोरु: केले के समान परम सुन्‍दर ऊरुयुगल (जांघ) वाले
46. कृशांग: दुबले-पतले
47. प्रतापी तेजस्‍वी एवं प्रतापशाली
48. इभशुण्‍डासुदोर्दण्‍डखण्‍ड: हाथी की सूंड के समान सुन्‍दर भुजदण्‍डमण्‍डल वाले
49. जपापुष्‍पहस्‍त: डहुल के फूल के समान लाल-लाल हथेली वाले
50. शातोदरश्री: फतली कमर की शोभा से सम्पन्न
51. महापद्मवक्ष: स्‍थल: वक्ष:स्थल में प्रफूल्ल विशाल कमल की माला से अलंकृत, अथवा जिनका हृदय कमल विशाल है, ऐसे,
52. चन्‍द्रहास: जिनके हंसते समय चन्‍द्रमा की चांदनी की सी छटा छिटक जाती है, ऐसे
53. लसत्‍कुन्‍ददन्‍त: शोभामयों कुन्‍दकलिका के समान उज्जवल दांत वाले
54. बिम्बाधरश्री: जिनके अधर की शोभा पक्व बिम्ब फल से अधिक अरुण है, ऐसे,
55. शरत्‍पद्मनेत्र: शरत्काल के प्रफुल्ल कमल के सदृश नेत्रवाले
56. किरीटोज्ज्वलाभ: कान्तिमान किरीट की उज्जवल आभा धारण करने वाले
57. सखीकोटिभिर्वर्तमान: करोड़ों सखियों के साथ रहकर शोभा पाने वाले
58. निकुंजे प्रियाराधया राससक्त: निकुंज में प्राणवल्लभा श्रीराधा के साथ रासलीला में तत्पर
59. नवांग: अपने दिव्य अंगों में नित्य नूतन रमणीयता धारण करने वाले
60. धराब्रह्मरुद्रा दिभि: प्रार्थित: सन् धराभारदूरीक्रियार्थं प्रजात: पृथ्‍वी, ब्रह्मा तथा रुद्र आदि देवताओं की प्रार्थना सुनकर भूमि का भार दूर करने के लिए अवतार ग्रहण करने वाले
61. यदु: यादवकुल के प्रवर्तक राजा यदु जिनकी विभूति हैं, वे
62. देवकीसौख्‍यद: देवकी को सुख देने वाले
63. बन्धनच्छित् भवबन्‍धन का उच्‍छेद करने वाले अथवा अवतारकाल में माता-पिता के बन्‍धन को काट देने वाले
64. सशेष: शेषावतार बलरामजी के साथ विराजमान
65. विभु: व्‍यापक अथवा सर्वसमर्थ
66. योगमायी योगमाया के प्रवर्तक तथा स्‍वामी
67. विष्‍णु व्यापक या वैकुण्‍ठनाथ विष्‍णुस्‍वरूप
68. व्रजे नन्‍दपुत्र: व्रजमंडल में नन्‍दनन्‍दन के रूप में लीला करने वाले
69. यशोदासुताख्‍य: यशोदा के पुत्ररूप में विख्‍यात
70. महासौख्‍यद: महान सौख्‍य प्रदान करने वाले
71. बालरूप: शिशुरूपधारी
72. शुभांग: सुन्‍दर एवं शुभ लक्षण सम्पन्न शरीर वाले।
73. पूतनामोक्षद: फूतना को मोक्ष देने वाले
74. श्‍यामरूप: श्‍याम मनोहर रूप वाले
75. दयालु: कृपालु
76. अनोभञ्जन: शकटभंग करने वाले
77. पल्लवाङ्‌घ्रि: नूतन पल्लवों के समान कोमल एवं अरूण चरण वले
78. तृणावर्त संहारकारी तृणावर्त का संहार करने वाले
79. गोप: गोपालरूप
80. यशोदायश: यशोदा के यशरूप
81. विश्वरूपप्रदर्शी माता को अपने मुख में (तथा अर्जुन, धृतराष्‍ट्र और उत्तंक को) सम्पूर्ण विश्‍वरूप का दर्शन कराने वाले
82. गर्गदिष्‍ट: गर्गजी के द्वारा जिनका नामकरण संस्‍कार एवं भावी फलादेश किया गया, ऐसे
83. भाग्योदयश्री: भाग्योदयसूचक शोभा से सम्पन्न
84. लसद्वालकेलि: सुन्‍दर बालोचित क्रीड़ा करने वाले
85. सराम: बलरामजी के साथ विचरने वाले
86. सुवाच: मनोहर बात करने वाले
87. क्वणत्रूपुरै: शब्दयुक् खनकते हुए नूपुरों से शब्दयुक्त
88. जानु-हस्तैर्व्रजेशांगणे रिंगमाण: घुटनों और हा‍थों के बल पर व्रजराजनन्‍द के आंगन में रेंगने या चलने वाले
89. दधिस्‍पृक् दही का स्‍पर्श (दान) करने वाले
90. हैयंगवीदुग्धभोक्ता ताजा माखन खाने वाले और दूध पीने वाले
91. दधिस्‍तेयकृत् व्रजांगनाओं को सुख देने के लिये दही की चोरी-लीला करने वाले
92. दुग्धभुक् दूध का भोग आरोगने वाले
93. भाण्डभेत्ता दही दूध आदि के मटके फोड़ने वाले
94. मृदं भुक्तवान् मिट्टी खाने वाले
95. गोपज: नन्‍दगोप के पुत्र
96. विश्‍वरूप: सम्पूर्ण विश्‍व जिनका रूप है, ऐसे,
97. प्रचण्‍डांशुचण्‍डप्रभामण्डितांग: स्त्रूर्य की प्रखर किरणों से सुशोभित शरीर वाले
98. यशोदाकरैर्बन्‍धनप्राप्‍त: यशोदा के हाथों ओखली में बांधे गये
99. आद्य: आदिपुरुष या सबके आदिकारण
100 मणिग्रीवमुक्तिप्रद: कुबेरपुत्र मणिग्रीव और नलकूबर का शाप से उद्धार करने वाले
101. दामबद्ध: यशोदा द्वारा रस्‍सी से बांधे गये
102. कदा व्रजे गोपिकाभि: नृत्‍यमान: कभी व्रज में गोपिकाओं के सा‍थ नृत्‍य करने वाले
103. कदा नन्‍दसन्नन्‍दकैर्लाल्‍यमान: कभी नन्‍द और सन्नन्‍द आदि के द्वारा लाड़ लड़ाये जाने वाले
104. कदा गोपनन्‍दांक: कभी गोपराज नन्‍द की गोद में समोद विराजमान
105. गोपालरूपी ग्वाल रूपधारी
106. कलिन्‍दांजाकूलग: कलिन्‍द नन्दिनी यमुना के तट पर विहार करने वाले
107. वर्तमान: नित्य सत्ता वाले
108. घनैर्मारूतैश्‍छन्न भाण्‍डीरदेश नन्‍दहस्‍ताद् राधया गृहीतो वर: एक समय प्रचण्‍ड वायु और घने बादलों से आच्‍छादित भाण्‍डीरवन के प्रदेश में नन्‍दजी के हाथ से श्रीराधा द्वारा गृहीत वरस्‍वरूप।
109. गोलोकलोकागते महारत्नसंघैर्यते कदम्बावृते निकुंजे राधिकासद्विवाहे ब्रह्मणा प्रतिष्‍ठानगत: गोलोकधाम से आये महान रत्नसमूहों से शोभित तथा कदम्ब वृक्षों से आवृत निकुंज में राधिकाजी के साथ विवाह के अवसर पर ब्रह्माजी के द्वारा सादन स्‍थापित
110. साममन्‍त्रै: पूजित: सामवेद के मंत्रों द्वारा पूजित
111. रसी विविध रसों के अधिष्‍ठान, परम रसिक
112. मालतीनां वनेअपि प्रियाराधया सह राधिकार्थ रासयुक् मालती वन में भी प्रियतमा राधिका के साथ उन्‍हीं का सुख पहुंचाने के लिए रास बिलास में संलग्न
113. रमेश: धरानाथ: लक्ष्‍मी के पति और पृथ्‍वी के स्‍वामी
114. आनन्‍दद: आनन्‍द प्रदान करने वाले
115. श्रीनिकेत: रमानिवास
116. वनेश: वृन्‍दावन के स्‍वामी
117. धनी सीमातीत धन और ऐश्‍वर्य के स्‍वामी
118. सुन्‍दर: अप्रतिम सौन्‍दर्य की निधि
119. गोपिकेश: गोपांगनाओं के प्राणवल्लभ
120. कदा राधया नन्‍दगेहे प्रापित: किसी समय राधिका द्वारा नन्‍द के घर में पहुंचाये गये
121. यशोदाकरैर्लालित: यशोदा के हाथों दुलारे गये
122. मन्‍दहास: मन्‍द-मन्‍द मनोरम हास से सुशोभित
123. क्वापि भयी कहीं-कहीं डरे हुए की भांति लीला करने वाले
124. वृन्‍दारकारण्‍यवासी वृन्‍दावन में निवास करने वाले
125. महामंदिरे वासकृत् नन्‍दराय के विशाल भवन में रहने वाले
126. देवपूज्य: देवताओं के पूजनीय
127. वने वत्सचारी वन में बछड़े चराने वले
128. महावत्सहारी महान बछड़े का रूप धारण करके आये हुए वत्‍सासुर के विनाशक
129. बकारि: बकासुर के शत्रु
130. सुरै: पूजित: देवगणों द्वारा सम्मानित
131. अघारिनामा अघासुर का वध करके ‘अघारि’ नाम से प्रसिद्ध
132. वने वत्‍सकृत् वन में नूतन बछड़ों की सृष्टि करने वाले
133. गोपकृत तन ग्वाल बालों का निर्माण करने वाले
134. गोपवेश: ग्वालवेशधारी
135. कदा ब्रह्मणा संस्‍तुत: किसी समय ब्रह्माजी के मुख से अपना गुणगान सुनने वाले
136. पद्मनाभ: एकार्णव के जल में अपनी नाभि से कमल प्रकट करने वाले
137. विहारी वृंदावन में विचरण करने वाले और भक्तों के साथ नाना प्रकार विहार करने वाले
138. तालभुक ताड़का फल खाने वाले
139. धेनुकारि: धेनुकासुर के शत्रु
140. सदा रक्षक: सदा सबके रक्षक
141. गोविषार्ति प्रणाशी यमुनाजी का विषाक्त जल पीने से गौओं के भीतर व्‍याप्त विषजनित पीड़ा का नाश करने वाले, कलिन्द-कन्या यमुना के तट पर जाने वाले
142. कालियस्‍य दमी कालियनाग का दमन करने वाले
143. फणेषु नृत्‍यकारी कालियनाग के फणों पर नृत्‍य करने वाले
144. प्रसिद्ध: सर्वत्र प्रसिद्धि को प्रा‍प्‍त
145. सलील: लीलापरायण
146. शमी स्‍वभावत: शान्‍त
147. ज्ञानद: ज्ञानदाता
148. कामपूर: कामनाओं के पूरक
149. गोपयुक् गोपों के साथ विराजमान
150. गोप: गोपस्‍वरूप या गौओं के पालक
151. आनन्दकारी आनंददायिनी लीला प्रस्‍तुत करने वाले
152. स्थिर: स्‍थैर्ययुक्त
153. अग्निभुक् दावानल को पी जाने वाले
154. पालक: रक्षक
155. बाललील: बालकों- जैसी क्रीडा करने वाले
156. सुराग: मुरली के स्‍वरों में सुन्‍दर राग गाने वाले
157. वंशीधर: मुरलीधारी
158. पुष्‍पशील: स्वभावत: फूलों का श्रृंगार धारण करने वाले
159. प्रलम्‍बप्रभानाशक: बलराम रूप से प्रलम्बासुर की प्रभा के नाशक
160. गौरवर्ण: गोरे वर्णवाले बलराम
161. बल: बलस्वरूप या बलभद्र
162. रोहिणीज: रोहिणीनन्‍दन
163. राम: बलराम
164. शेष: शेष के अवतार
165. बली बलवान
166. पद्मनेत्र: कमलनयन
167. कृष्‍णाग्रज: श्रीकृष्‍ण के बडे़ भाई
168. धरेश: धरणीधर
169. फणीश: नागराज
170. नीलाम्बराभ: नीलवस्‍त्र की शोभा से युक्त
171. अग्निहारक: मुंजाटवी में लगी हुई आग को हर लेने वाले
172. व्रजेश: व्रज के स्‍वामी
173. शरदगीष्‍मवर्षाकर: शरद, ग्रीष्‍म और वर्षा प्रकट करने वाले
174. कृष्‍णवर्ण: श्यामसुन्‍दर
175. व्रजे गोपिकापूजित: व्रजमंडल में गोप सुन्दरियों द्वारा पूजित
176. चीरहर्ता चीरहरण की लीला करने वाले
177. कदम्बे स्थित: चीर लेकर कदम्ब पर जा बैठने वाले
178. चीरद: गोपकिशोरियों के मांगने पर उन्‍हें चीर लौटा देने वाले
179. सुन्‍दरीश: सुन्‍दरी गोपकुमारियों के प्राणेश्‍वर
180. क्षुधानाशकृत् ग्वालबालों की भूख मिटाने वाले
181. यज्ञपत्नीमन: स्पृक यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नी के मन का स्‍पर्श करने वाले- उनके मंदिर में बस जाने वाले
182. कृपाकारक: दया करने वाले
183. केलिकर्ता क्रीडापरायण
184. अवनीश: भूस्‍वामी
185. व्रजे शक्रयाग प्रणाश: व्रजमंडल में इन्‍द्रयाग की परम्परा को मिटा देने वाले
186. अमिताशी गोवर्धन पूजा में समर्पित अपरिमित भोजन राशि को आरोग लेने वाले
187. शुनासीरमोहप्रद: इन्‍द्र को मोह प्रदान करने वाले अथवा उनके मोह का खण्‍डन करने वाले
188. बालरूपी बालरूपधारी
189. गिरे: पूजक: गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने वाले
190. नन्‍दपुत्र: नन्‍दरायजी के बेटे
191. अगध्र: गिरिवरधारी
192. कृपाकृत् कृपा करने वाले
193. गोवर्धनोद्धारिनामा गोवर्धनोद्धारी नाम वाले
194. वातवर्षाहर: आंधी और वर्षा के कष्‍ट को हर लेने वाले
195. रक्षक: व्रजवासियों की रक्षा करने वाले
196. व्रजाधीश गोपांगनाशंकित: व्रजराज नन्‍द और गोपांगनाओं से डरने वाले, अथवा गोवर्धन उठाने के अलौकिक कर्म को देखकर व्रजराज नन्‍द तथा गोपियों को जिनके प्रति यह शंका हुई थी कि ये साधारण गोप नहीं, साक्षात नारायण हो सकते हैं, इस तरह की शंका के पात्र
197. अगेन्‍द्रोपरि शक्रपूज्य: गिरिराज गोवर्धन के ऊपर इन्‍द्र के द्वारा पूजनीय
198. प्राकस्‍तुत: पहले जिनका स्‍तवन हुआ है, ऐसे
199. मृषा शिक्षक: अपने ऊपर शंका करने वाले नन्‍दादि गोपों को व्‍यर्थ की बातों से बहला देने वाले
200. देवगोविन्‍द नामा ‘गोविन्‍ददेव’ नाम धारण करने वाले
201. व्रजाधीशरक्षाकर: व्रजराज नन्‍द की रक्षा करने वाले (उन्‍हें वरुणलोक से छुड़ाकर लानेवाले)
202. पाशिपूज्य: पाशधारी वरुण के द्वारा पूजनीय
203. अनुगैर्गोपजै: दिव्‍यवैकुण्‍ठदर्शी अनुगामी ग्वालबालों के साथ जाकर उन्‍हें दिव्य वैकुण्‍ठधाम का दर्शन कराने वाले
204. चलच्चारुवंशीक्वण:: मनोहर वंशी की ध्‍वनि को चारों ओर फैलाने वाले
205. कामिनीश: गोप सुन्‍दरियों के प्राणेश्‍वर
206. व्रजे कामिनी मोहद: व्रज की कामिनियों को मोह प्रदान करने वाले
207. कामरूप: कामदेव से भी सुन्‍दर रूप वाले
208. रसाक्त: रसमग्न
209. रसी रासकृत् रासक्रीडा करने वाले रसों के निधि
210. राधिकेश: राधिका के स्‍वामी
211. महामोहद: महान मोह प्रदान करने वाले
212. मानिनीमानहारी मानिनियों के मान हर लेने वाले
213. विहारी वर: विहारशील श्रेष्‍ठ पुरुष
214. मानहृत मान हर लेने वाले
215. राधिकांग: श्रीराधिका जिनकी वांगस्‍वरूपा हैं, वे
216. धराद्वीपग: भूमण्‍डल के सभी द्वीपों में जाने वाले
217. खण्डचारी विभिन्‍न वनखण्‍डों में विचरने वाले
218. वनस्‍थ: वनवासी
219. प्रिय: सबके प्रियतम
220. अष्टवक्रर्षिद्रष्टा अष्‍टावक्र ॠषि का दर्शन करने वाले
221. सराध: राधिका के साथ विचरने वाले
222. महामोक्षद: महामोक्ष प्रदान करने वाले
223. प्रियार्थं पद्महारी: प्रियतमा की प्रसन्नता के लिए कमल के फूल लाने वाले
224. वटस्‍थ: वटवृक्ष पर विराजमान
225. सुर: देवता
226. चन्‍दनाक्त: चन्‍दन से चर्चित
227. प्रसक्त: श्रीराधा के प्रति अधिक अनुरक्त
228. राधया व्रजं ह्यागत: श्रीराधा के साथ व्रजमण्‍डल में अवतीर्ण
229. मोहिनीषु महामोहकृत् मोहिनियों में महामोह उत्‍पन्‍न करने वाले
230. गोपिकागीतकीर्ति: गोपिकाओं द्वारा गायी गयी कीर्तिवाले
231. रसस्‍थ: अपने स्‍वरूपभूत रस में स्‍थित
232. पटी पीताम्‍बरधारी
233. दु:खिता-कामिनीश: दुखिया नारियों के रक्षक
234. वने गोपिकात्‍यागकृत् वन में गोपियों का त्‍याग करने वाले
235. पादचिह्नप्रदर्शी वन में ढ़ूंढती हुई गोपिकाओें को अपना चरण चिन्‍ह प्रदर्शित करने वाले
236. कलाकारक: चौंसठ कलाओं के कलाकार
237. काममोही अपने रूप और लावण्‍य से कामदेव को भी मोहित करने वाले
238. वशी मन और इन्‍द्रियों को वश में रखने वाले
239. गोपिकामध्‍यग: गोपांगनाओं के बीच में विराजमान
240. पेशवाच: मधुरभाषी
241. प्रियाप्रीतिकृत् प्रिया श्रीराधा से प्रेम करने वाले अथवा प्रिया की प्रसन्‍नता के लिये कार्य करने वाले
242. रासरक्‍त: रास के रंग में रंगे हुए
243. कलेश: सम्‍पूर्ण कलाओं के स्‍वामी
244. रसारक्तचित्त रसमग्‍न चित्‍त वाले
245. अनन्‍तस्‍वरूप: अनन्‍त रूपवाले अथवा शेषनाग-स्‍वरूप
246. स्‍त्रजासंवृत: आजानुलम्‍बिनी वनमाला धारण करने वाले
247. वल्‍लवीमध्‍यसंस्‍थ: गोपांगना मण्‍डल के मध्‍य बैठे हुए
248. सुबाहु: सुन्‍दर बांह वाले
249. सुपाद: सुन्‍दर चरण वाले
250. सुवेश: सुन्‍दर वेश वाले
251. सुकेशो व्रजेश सुन्‍दर केशवाले वज्रमण्‍डल के स्‍वामी
252. सखा सकख्‍य-रति के आलम्‍बन
253. वल्‍लभेश: प्राणवल्‍लभा श्रीराधा के हृदयेश
254. सुदेश: सर्वोत्‍कृष्‍ट देशस्‍वरूप
255. क्वणत्किङ्किणीजालभृत्‌ झनकारती हुई किकिंणी की लड़ों को धारण करने वाले
256. नूपुराढय: चरणों में नूपुरों की शोभा से सम्‍पन्‍न
257. लसत्‍कंकण: कलाइयों में सुन्‍दर कंगन करने वाले
258. अंगदी बाजूबन्‍दधारी
259. हारभार: हारों के भार से विभूषित
260. किरीटी मुकुटधारी
261. चलत्‍कुण्‍डल: कानों में हिलते हुए कुण्‍डलों से सुशोभित
262. अंगुलीयस्फुरत्कौस्तुभ: हाथों में अंगूठी के साथ वक्ष: स्‍थल पर जगमगाती हुई कौस्‍तुभमणि धारण करने वाले
263. मालतीमण्डितांग मालती की माला से अलंकृत शरीर वाले
264. महानृत्‍यकृत् महारास-नृत्‍य करने वाले
265. रासरंग: रासरंग में तत्‍पर
266. कलाढ्य: समस्‍त कलाओं से सम्‍पन्‍न
267. चलद्धारभ: हिलते हुए रत्‍नहार की छटा छिटकने वाले
268. भामिनी-नृत्‍ययुक्‍त: भामिनियों के साथ नृत्‍य में संलग्‍न
269. कलिन्‍दांगजाकेलिकृत् कलिन्‍द नन्‍दिनी यमुनाजी के जल में क्रीडा करने वाले
270. कुंकुमश्री: केसर-कुंकुम की शोभा से सम्‍पन्‍न
271. सुरैर्नायिका-नायकैर्गीयमान: नायिकाओं के नायक, अर्थात अपनी प्राणवल्‍लभाओं के साथ सुशोभित देवताओं द्वारा जिनके यश का गान किया जाता है, वे
272. सुखाढ्य: स्‍वरूपभूत सुख से सम्‍पन्‍न
273. राधापति: राधिका के प्राणवल्‍लभ
274. पूर्ण-बोध पूर्ण ज्ञानस्‍वरूप
275. कटाक्षस्मिती नचायी हुई भौहों के विलास से शोभायमान
276. वल्‍गितभ्रूविलास: नचायी हई भौंहों के विलास से शोभयमान
277. सुरम्‍य: अत्‍यन्‍त रमणीय
278. अलिभि:कुन्‍तलालोलकेश: मंडराते भ्रमरों से युक्‍त कुछ हिलते घुंघराले केश वाले
279. स्फुरद्वर्ह-कुन्दस्त्रजाचारुवेश: फरफराते हुए मोर पंख के मुकुट और कुंद कुसुमों की माला से मनोहर वेशवाले
280. महासर्पतो नन्दरक्षापराङ्घ्रि: जिनके चरण महान् अजगर के भय से नन्‍द की रक्षा करने वाले हैं, वे
281. सदा मोक्षद: सतत मोक्ष प्रदान करने वाले
282. शंखचूडप्रणाशी ‘शंखचूड़’ नामक यक्ष को मार भगाने वाले
283. प्रजारक्षक: प्रजाजनों के प्रतिपालक
284. गोपिकागीयमान: गोपांगनाओं द्वारा जिनके यश का गान किया जाता है, वे
285. कुद्मिप्रणाशप्रयास: अरिष्‍टासुर के वध के लिये प्रयास करने वाले
286. सुरेज्‍य: देवताओं के पूजनीय
287. कलि: कलिस्‍वरूप
288. क्रोधकृत् दुष्‍टों पर क्रोध करने वाले
289. कंसमन्त्रोपदेष्टा नारदरूप से कंस को मन्‍त्रोपदेश करने वाले
290. अक्रूरमन्त्रोपदेशी अक्रूर को अपने नाम-मंत्र का उपदेश करने वाले अथवा उनको मन्‍त्रणा देने वाले
291. सुरार्थ: देवताओं का प्रयोजन सिद्ध करने वाले
292. बली केशिहा केशी का नाश करने वाले महान् बलवान्
293. पुष्पवर्षामलश्री: देवताओं द्वारा जिन पर पुष्‍पवर्षा की गयी है, वे भगवान
294. अमलश्री: उज्‍ज्‍वल शोभा से सम्‍पन्‍न
295. नारदादेशतो व्‍योमहन्‍ता नारदजी के कहने से व्‍योमासुर का वध करने वाले
296. अक्रूरसेवापर: नन्‍द-व्रज में आये हुए अक्रूर की सेवा में संलग्‍न
297. सर्वदर्शी सबके द्रष्‍टा
298. व्रजे गोपिकामोहद: वज्र में गोपांगनाओं को मोहित करने वाले
299. कूलवर्ती यमुना के तट पर विद्यमान
300. सतीराधिकाबोधद: मथुरा जाते समय सती राधिका को बोध (आश्‍वासन) देने वाले
301. स्वप्नकर्ता श्रीराधिका के लिये सुखमय स्‍वप्‍न की सृष्‍टि करने वाले
302. विलासी लीला- विलास- परायण
303. महामोहनाशी महामोह के नाशक
304. स्‍वबोध: आत्‍मबोधस्‍वरूप
305. व्रजे शापतस्त्यक्तराधासकाश: व्रज में शापवश राधा के समीप निवास का त्‍याग करने वाले
306. महामोहदावाग्निदग्धापति: श्रीकृष्‍णविषयक महामोहरूप दावानल से दग्‍ध होने वाली श्रीराधा के पालक या प्राणरक्षक
307. सखीबन्धनान्मोचिताक्रूर: सखियों के बन्‍धन से अक्रूर को छुड़ाने वाले
308. आरात सखीकङ्कणैस्ताडिताक्रूररक्षी निकट आयी हुई सखियों के कंगनों की मार से पी पीड़ित अक्रूर की रक्षा करने वाले
309. व्रजे राधयारथस्‍थ: व्रज में राधा के साथ रथ पर विराजमान
310. कृष्‍णचन्‍द्र: श्रीकृष्‍णचन्‍द्र
311. गोपकै: सुगुप्तो गमी ग्‍वाल-बालों के साथ अत्‍यन्‍त गुप्‍तरूप से मथुरा की यात्रा करने वाले
312. चारुलील: मनोहर लीलाएं करने वाले
313. जलेऽक्रूरसंदर्शित: यमुना के जल में अक्रूर को अपने रूप का दर्शन कराने वाले
314. दिव्यरूप: दिव्‍यरूपधारी
315. दिदृक्षु: मथुरापुरी देखने के इच्‍छुक
316. पुरीमोहिनीचित्तमोही मथुरापुरी की मोहिनी स्‍त्रियों के भी चित्‍त को मोह लेने वाले
317. रङ्गकारप्रणाशी कंस के रंगकार या धोबी को नष्‍ट करने वाले
318. सुवस्‍त्र: सुन्‍दरवस्‍त्रधारी
319. स्त्रजी माली सुदामा की दी हुई माला धारण करने वाले
320. वायकप्रीतिकृत् दर्जी को प्रसन्‍न करने वाले
321. मालिपूज्य: माली के द्वारा पूजित
322. महाकीर्तिद: माली को महान सुयश प्रदान करने वाले
323. कुब्जाविनोदी कुब्‍जा के साथ हास-विनोद करने वाले
324. स्फुरच्चदण्ड-कोदण्डरुग्ण: कंस के कान्‍तिमान को दण्‍ड खण्‍डन (धनुष-भंग) करने वाले
325. प्रचण्‍ड: प्रचण्‍ड (महान बलवान) दिखायी देने वाले
326. भटार्त्तिप्रद: कंस के मल्‍ल योद्धाओं को पीड़ा देने वाले
327. कंसदु:स्वप्नकारी कंस को बुरे सपने दिखाने वाले
328. महामल्‍लवेश: महान मल्‍लों के समान वेष धारण करने वाले
329. करीन्द्र-प्रहारी गजराज कुवलयापीड़ पर प्रहार करने वाले
330. महामात्‍यहा महावतों को मारने वाले
331. रंगभूमिप्रवेशी कंस की मल्‍लशाला में प्रवेश करने वाले
332. रसाढ्य: नौ रसों से सम्‍पन्‍न (भिन्‍न-भिन्‍न द्रष्‍टाओं को विभिन्‍न रसों के आलम्‍बन के रूप में दिखायी देने वाले)
333. यश:स्‍पृक् यशस्‍वी
334. बलीवाक्‍पटुश्री: अन्‍नत शक्‍ति से सम्‍पन्‍न और बातचीत करने में प्रवीण ऐश्‍वर्यवान्
335. महामल्लहा बड़े-बड़े मल्‍ल चाणूर और मुष्‍टिक आदि का वध करने वाले
336. युद्धकृत् युद्ध करने वाले
337. स्त्रीवचोअर्थी रंगोत्‍सव देखने के लिये आयी हुई स्‍त्रियों के वचनों को सुनने की इच्‍छा वाले
338. धरानायक: कंसहन्‍ता कंस का हनन करने वाले भूतल के स्‍वामी
339. प्राग्यदु: पूर्ववर्ती राजा यदुस्‍वरूप
340. सदापूजित सदा सबसे पूजित
341. उग्रसेनप्रसिद्ध: उग्रसेन की प्रसिद्धि के कारण
342. धराराज्यद: उग्रसेन को भूमण्‍डल का राज्‍य देने वाले
343. यादवैर्मण्‍डितांग: यादवों से सुशोभित शरीर वाले ।।
344. गुरो: पुत्रद: गुरु को पुत्र प्रदान करने वाले
345. ब्रह्मविद् ब्रह्मावेत्‍ता
346. ब्रह्मपाठी वेदपाठ करने वाले
347. महाशंखहा महान् राक्षस शंखासुर का वध करने वाले
348. दण्डधृकपूज्य: दण्‍डधारी यमराज के लिये पूजनीय
349. व्रजे उद्धव प्रेषिता वज्र में वहां का समाचार जानने के लिये उद्धव को भेजने वाले
350. गोपमोही अपने रूप, गुण और सद्भाव से गोपागणों को मोह लेने वाले
351. यशोदाघृणी मैया यशोदा के प्रति अत्‍यन्‍त कृपालु
352. गोपिकाज्ञानदेशी गोपांगनाओं को ज्ञानोपदेश करने वाले
353. सदा स्‍नेहकृत् सदा स्‍नेह करने वाले
354. कुब्‍जया पूजितांग: कुब्‍जा के द्वारा पूजित अंगवाले
355. अक्रूरगेहंगमी अक्रूर के घर पधारने वाले
356. मन्त्रवेत्ता मन्‍त्रणा के मर्मज्ञ
357. पाण्‍डवप्रेषिताक्रूर: पाण्‍डवों का समाचार लाने के लिये अक्रूर को भेजने वाले
358. सुखी सर्वदर्शी सौख्‍ययुक्‍त, सबके साक्षी अथवा सर्वज्ञ
359. नृपानन्द-कारी राजा उग्रसेन को आनन्‍द देने वाले
360. महाक्षौहिणीहा जरासंध की तीस अक्षौहिणी सेना का विनाश करने वाले
361. जरासंधमानोद्धर: जरासंध का मान भंग करने वाले
362. द्वारकाकारक: द्वारकापुरी का निर्माण करने वाले
363. मोक्षकर्ता भवबन्‍धन से छुटकारा दिलाने वाले
364. रणी युद्ध के लिये सदा उद्यत
365. सर्वाभैमस्‍तुत: सत्‍ययुग के चक्रवर्ती राजा मुचुकुन्‍द ने जिनकी स्‍तुति की, ऐसे
366. ज्ञानदाता मुचुकुन्‍द को ज्ञान प्रदान करने वाले
367. जरासंध संकल्‍पकृत एक बार अपनी पराजय का अभिनय करके जरासंध के संकल्‍प की पूर्ति करने वाले
368. धावदङ्घ्रि: पैदल भागने वाले
369. नगादुत्‍पतन्‍द्वारकामध्‍वर्ती प्रवर्षणगिरि से उछलकर द्वारकापुरी के बीच विराजमान
370. रेवतीभूषण बलरामरूप से रेवती के सौभाग्‍यभूषण
371. तालचिह्नो यदु: ताल के चिन्‍ह से युक्‍त ध्‍वजा वाले यदुवीर
372. रुक्मिणीहारक: रुक्‍मिणी का अपहरण करने वाले
373. चैद्यभेद्य: चेदिराज शिशुपाल जिनका वध्‍य है, वे
374. रूक्मिरूपप्रणाशी रुक्‍मी की आधी मूंछ मुंड़कर उसे कुरूप बनाने वाले
375. सुखाशी स्‍वरूपभूत आनन्‍द के आस्‍वादक
376. अनन्‍त: शेषनागस्‍परूप
377. मार: कामदेवावतार
378. कार्ष्णि कृष्‍णकुमार प्रद्युम्‍न
379. काम: कामदेव
380. मनोज: काम
381. शम्‍बरारि: शम्‍बरासुर के शत्रु कामदेव
382. रतीश: रति के स्‍वामी
383. रथी रथारूढ़
384. मन्मथ मन को मथ देने वाले
385. मीनकेतु: मत्‍स्‍यचिन्‍ह ध्‍वजा से युक्‍त
386. शरी बाणधारी
387. स्‍मर: काम
388. दर्पक: कामदेव
389. मानहा मानमर्दन करने वाले
390. पञ्चबाण: पंचबाणधारी कामदेव (ये सब नाम प्रद्युम्‍नस्‍वरूप श्रीहरि के पर्यायवाची हैं)।
391. प्रिय: सत्यभामापति: सत्‍यभामा के प्रिय पति
392. यादवेश: यादवों के स्‍वामी
393. सत्राजित्प्रेमपूर: सत्राजित् के प्रेम को पूर्ण करने वाले
394. प्रहास: उत्‍कृष्‍ट हास वाले
395. महारत्नद: महारत्‍न स्‍यमन्‍तक को ढूंढ़कर ला देने वाले
396. जाम्बवद्युद्धकारी जाम्‍बवान् से युद्ध करने वाले
397. महाचक्रधृक् महान सुदर्शन चक्र धारण करने वाले
398. खड्गधृक् ‘नन्‍दक’ नामक खड्ग धारण करने वाले
399. रामसंधि बलरामजी के साथ संधि करने वाले
400. विहारस्‍थित: लीलाविहारपरायण
401. पाण्डवप्रेमकारी पाण्‍डवों से प्रेम करने वाले
402. कलिन्‍दांगजामोहन: कालिन्‍दी के मन को मोह लेने वाले
403. खाण्डवार्थी खाण्‍डव-वन को अग्‍निदेव के लिये अर्पित करने के इच्‍छुक
404. फाल्‍गुनप्रीतिकृत् सखा अर्जुन पर प्रेम रखने वाले उनके सखा
405. नग्नकर्ता खाण्‍डव-वन को जलाकर नग्‍न (शून्‍य) करने वाले
406. मित्रविन्‍दापति: ‘मित्राविन्‍दा’ नामवाली अवन्‍ती देश की राजकुमारी के पति
407. क्रीडनार्थी क्रीडा या खेल के इच्‍छुक
408. नृपप्रेमकृत् राजा नग्‍नजित् से प्रेम करने वाले
409. सप्तरूपो गोजयी सात रूप धारण करके सात बिगड़ैल बैलों को एक ही साथ नाथकर काबू में कर लेने वाले
410. सत्‍यापति: नग्‍नजित्‍कुमारी सत्‍या के पति
411. पारिवर्ही राजा नग्‍नजित् के द्वारा दिये दहेज को ग्रहण करने वाले
412. यथेष्‍टम् पूर्ण
413. नृपै: संवृत: सत्‍या को लेकर लौटते समय मार्ग में युद्धार्थी राजाओं द्वारा घेर लिये जाने वाले
414. भद्रापति: भद्रा के स्‍वामी
415. मधोर्विलासी मधुमास चैत्र की पूर्णिमा को रासविलास करने वाले
416. मानिनीश: मानिनी जनों के प्राणवल्‍लभ
417. जनेश: प्रजाजनों के स्‍वामी
418. शुनासीरमोहावृत: इन्‍द्र के प्रति मोह (स्‍नेह एवं कृपाभाव) से युक्‍त
419. सत्‍सभार्य: सती भार्या से युक्‍त
420. सतार्क्ष्य: गरुड पर आरूढ़
421 मुरारि: मुर दैत्‍य का नाश करने वाले
422. पुरीसंघभेत्ता भौमसुर की पुरी के दुर्गसमुदाय का भेदन करने वाले
423. सुवीर: शिर:खण्‍डन: श्रेष्‍ठवीर असुरों का मस्‍तक काटने वाले
424. दैत्यनाशी दैत्‍यों का नाश करने वाले
425. शरी भौमहा सायकधारी होकर भौमासुर का वध करने वाले
426. चण्‍डवेग: प्रचण्‍ड वेगशाली
427. प्रवीर: उत्‍कृष्‍ट वीर
428. धरासंस्‍तुत: पृथ्‍वी देवी के मुख से अपना गुणगान सुनने वाले
429. कुण्डलच्छत्रहर्ता अदितिे के कुण्‍डल और इन्‍द्र के छत्र को भौमासुर की राजधानी से लेकर उसे स्‍वर्गलोक तक पहुंचाने वाले
430. महारत्नयुक्‌ महान् मणिरत्‍नों से सम्‍पन्‍न
431. राजकन्‍याअभिराम: सोलह हजार राजकुमारियों के सुन्‍दर पति
432. शचीपूजित: स्‍वर्ग में इन्‍द्रपत्‍नी शची के द्वारा सम्‍मानित
433. शक्रजित पारिजात के लिये होने वाले युद्ध में इन्‍द्र को जीतने वाले
434. मानहर्ता इन्‍द्र का अभिमान चूर्ण कर देने वाले
435. पारि-जातापहारी रमेश: पारिजात का अपहरण करने वालेरमावल्‍लभ
436. गृही चामरै: शोभित: गृहस्‍थ के रूप में रहकर श्‍वेत चंवर डुलाये जाने के कारण अतिशय शोभायमान
437. भीष्मककन्यापति: राजा भीष्‍म की पुत्री रुक्‍मिणी के पति
438. हास्‍यकृत् रुक्‍मिणी के साथ परिहास करने वाले
439. मानिनीमानकारी मानिनी रुक्‍मिणी को मान देने वाले
440. रुक्‍मिणीवाक्‍पटु: रुक्‍मिणी को अपनी बातों से रिझाने में कुशल
441. प्रेमगेह: प्रेम के अधिष्‍ठान
442. सतीमोहन: सतियों को भी मोह लेने वाले
443. कामदेवापरश्री: दूसरे कामदेव के समान मनोरम सुषमा से सम्‍पन्न
444. सुदेष्‍ण: ‘सुदेष्‍ण’ नामक श्रीकृष्‍ण-पुत्र
445. सुचारु: सुचारु
446. चारुदेष्‍ण: चारुदेष्‍ण
447. चारुदेह: चारुदेह
448. बली चारुगुप्‍त: बली, चारुगुप्‍त
449. सुती भद्रचारु: पुत्रवान् भद्रचारु
450. चारुचन्‍द्र: चारुचन्‍द्र
451. विचारु: विचारु
452. चारु: चारु
453. रथीपुत्ररूप: रथी पुत्रस्‍वरूप
454. सुभानु: सुभानु
455. प्रभानु: प्रभानु
456. चन्‍द्रभानु: चन्‍द्रभानु
457. बृहद्भानु: बृहद्भानु
458. अष्‍टभानु: अष्‍टभानु
459. साम्‍ब: साम्‍ब
460. सुमित्र: सुमित्र
461. क्रतु: क्रतु
462. चित्रकेतु: चित्रकेतु
463. वीर: अश्‍वसेन: वीर अश्‍वसेन
464. वृष: वृष
465. चित्रगु: चित्रगु
466. चन्‍द्रबिम्‍ब: चन्‍द्रबिम्‍ब
467. विशंकु: विशंकु
468. वसु: वसु
469. श्रुत: श्रुत
470. भद्र: भद्र
471. सुबाहु: वृष: उत्तम भुजाओं-युक्त वृष
472. सोम: वर: श्रेष्‍ठ सोम
473. शान्‍ति: शान्‍ति
474. प्रघोष: प्रघोष
475. सिंह: सिंह
476. बल: ऊर्ध्‍वग: बल और ऊर्ध्‍वग
477. वर्धन: वर्धन
478. उन्‍नाद: उन्‍नाद
479. महाश: महाश
480. वृक: वृक
481. वृक: वृक
482. पावन: पावन
483. वन्‍हिमित्र: वन्‍हिमित्र
484. क्षुधि: क्षुधि
485. हर्षक: हर्षक
486. अनिल: अनिल
487. अमित्रजित्: अमित्रजित
488. सुभद्र: सुभद्र
489. जय: जय
490. सत्‍यक: सत्‍यक
491. वाम: वाम
492. आयु: आयु, यदु: यदु
493. कोटिश: पुत्रपौत्रे: प्रसिद्ध: इस प्रकार करोड़ों पुत्र-पौत्रों से प्रसिद्ध
494. हली दण्‍डधृक् ईषादण्‍डधारी हलधर बलराम
495. रुक्‍महा रुक्‍मी का वध करने वाले
496. अनिरुद्ध: किसी के द्वारा रोके न जा सकने वाले
497. राजभिर्हास्‍यग: अनिरूद्ध के विवाह में द्युत-क्रीड़ा के समय राजाओं ने जिनकी हंसी उड़ायी
498. द्यूतकर्ता विनोद के लिये द्यूत-क्रीड़ा में भाग लेने वाले बलरामजी
499. मधु: मधुवंश में अवतीर्ण
500. ब्रह्मसू: ब्रह्माजी के अवतार अनिरूद्ध
501. बाणपुत्रीपति: बाणासुर की कन्‍या ऊषा के स्‍वामी
502. महासुन्‍दर: अतिशय सौन्‍दर्यशाली
503. कामपुत्र: प्रद्युम्‍न के पुत्र अनिरूद्धरूप
504. बलीश: बलवानों के ईश्‍वर
505. महादैत्‍यसंग्रामकृद् यादवेश: बड़े-बड़े दैत्‍यों के साथ युद्ध करने वाले यादवों के स्‍वामी
506. पुरीभञ्चन: बाणसुर को नगरी को नष्ट- भ्रष्ट करने वाला
507. भूतसंत्रासकारी भूतगणों को संत्रस्‍त कर देने वाले
508. मृधे रुद्रजित्‌ युद्ध में रुद्र को जीतने वाले
509. रुद्रमोही जृम्‍भणास्‍त्र के प्रयोग से रुद्रदेव को मोहित करने वाले
510. मृधार्थी युद्धाभिलाषी
511. स्कन्दजित कुमार कार्तिकेय को परास्‍त करने वाले
512. कूपकर्णप्रहारी धनुष भंग करने वाले
513. धनुर्भजंन: धनुष भंग करने वाले
514. बाणमानप्रहारी बाणासुर के अभिमान को चूर्ण कर देने वाले
515. ज्वरोत्पत्तिकृत ज्‍वर की उत्‍तपत्‍ति करने वाले
516. ज्वरेण संस्तुत रुद्र के ज्‍वर द्वारा जिनकी स्‍तुति की गई, वे
517. भुजाछेदकृत् बाणासुर की बाहों को काट देने वाले
518. बाणसंत्रासकर्ता बाणासुर के मन में त्रास उत्‍पन्‍न कर देने वाले
519. मुडप्रस्‍तुत: भगवान् शिव के द्वारा स्‍तुत
520. युद्धकृत् युद्ध करने वाले
521. भूमिभर्त्ता भूमण्‍डल का भरण-पोषण करने वाले, अथवा भूदेवी के पति
522. नृगं मुक्तिद: राजा नृग का उद्धार करने वाले
523. यादवानां ज्ञानद: यादवों को ज्ञान देने वाले
524. रथस्‍थ: दिव्‍य रथ पर आरूढ़
525. व्रजप्रेमप: व्रजविषयक प्रेम के पालक अथवा व्रजवासियों के प्रेमरस का पान करने वाले
526. गोपमुख्य: गोपशिरोमणि
527. महासुन्दरीक्रीडित: अपनी प्रेयसी परम सुन्‍दरियों के साथ क्रीडा करने वाले बलरामजी
528. पुष्‍पमाली पुष्‍प मालाओं से अलंकृत
529. कलिन्‍दांगजाभेदन: कालिन्‍दी की धारा को फोड़कर अपनी ओर खींच लाने वाले
530. सीरपाणि: हाथों में हल धारण करने वाले
531. महादम्‍भिहा बड़े-बड़े दम्‍भी–पाखण्‍डियों का दमन करने वाले
532. पौण्ड्रमानप्रहारी पौण्‍ड्रक के घमंड को चूर्ण कर देने वाले
533. शिरश्‍छेदक: उसके मस्‍तक को काट देने वाले
534. काशिराजप्रणाशी काशिकाराज का नाश करने वाले
535. महाअक्षौहिणीध्‍वंसकृत् शत्रुओं की विशाल अक्षौहिणी सेना का विनाश करने वाले
536. चक्रहस्‍त: चक्रपाणि
537. पुरीदीपक: काशीपुरी को जलाने वाले
538. राक्षसीनाशकर्ता राक्षसी के नाशक
539. अनन्त: शेषनागरूप
540. महीध्र: धरणी को धारण करने वाले
541. फणी फणधारी
542. वानरारि: ‘द्विविद’ नामक वानर के शत्रु
543. स्फुरद्गौरवर्ण: प्रकाशमान गौरवर्ण वाले
544. महापद्मनेत्र: प्रफुल्‍ल कमल के समान विशाल नेत्रवाले
545. कुरुग्रामतिर्यग्गति: कौरवों के निवास स्‍थल हस्‍तिनापुर को गंगा की ओर तिरछी दिशा में खींच लेने वाले
546. गौरवार्थं कौरवै: स्तुत: जिनका गौरव प्रकट करने के लिये कौरवों ने स्‍तुति की, वे बलरामजी
547. ससाम्ब: पारिबर्ही साम्‍ब के साथ कौरवों से दहेज लेकर लौटने वाले
548. महावैभवी महान् वैभवशाली
549. द्वारकेश: द्वारकानाथ
550. अनेक: अनेक रूपधारी
551. चलन्नारद: नारदजी को विचलित कर देने वाले
552. श्रीप्रभादर्शक: अपनी लक्ष्‍मी तथा प्रभाव को दिखाने वाले
553. महर्षिस्तुत: महर्षियों से संस्‍तुत
554. ब्रह्मदेव: ब्राह्मणों को देवता मानने वाले अथवा ब्रह्माजी के आराध्‍यदेव
555. पुराण: पुराणपुरुष
556. सदा षोडशस्‍त्रीसहस्‍थित: सर्वदा सोलह हजार पत्‍नियों के साथ रहने वाले
557. गृही आदर्श गृहस्‍थ
558. लोकरक्षापर: समस्‍त लोकों की रक्षा में तत्‍पर
559. लोकरीति: लौकिक रीति का अनुसरण करने वाले
560. प्रभु: अखिल विश्‍व के स्‍वामी
561. उग्रसेनावृत: उग्र सेनाओं से घिरे हुए
562. दुर्गयुक्‍त: दुर्ग से युक्‍त
563. राजदूतस्‍तुत: जरासंध के बंदी राजाओं द्वारा भेजे गये दूत ने जिनकी स्‍तुति की, वे
564. बन्धभेत्ता स्थित: बन्‍दी राजाओं के बन्‍धन काटकर उनके लिये मुक्‍तिदाता के रूप में स्‍थित नित्‍य विद्यमान
565. नारदप्रस्‍तुत: नारदजी के द्वारा संस्‍तुत
566. पाण्डवार्थी पाण्‍डवों का अर्थ सिद्ध करने वाले
567. नृपैर्मन्‍त्रकृत् राजाओं के साथ सलाह करने वाले
568. उद्धवप्रीतिपूर्ण: उद्धव की प्रीति से परिपूर्ण
569. पुत्रपौत्रैर्वृत: पुत्र-पौत्रों से घिरे हुए
570. कुरुग्रामगन्‍ता घृणी कुरुग्राम-इन्‍द्रप्रस्‍थ में जाने वाले दयालु
571. धर्मराजस्‍तुत: धर्मराज युधिष्‍ठिर से संस्‍तुत
572. भीमयुक्‍त: भीमसेन से सप्रेम मिलने वाले
573. परानन्‍दद: परमानन्‍द प्रदान करने वाले
574. धर्मजेन मन्‍त्रकृत् धर्मराज युधिष्‍ठिर से सलाह करने वाले
575. दिशाजित् बली दिग्‍विजय बलवान्
576. राजसूयार्थकारी युधिष्‍ठिर के राजसूय यज्ञ-सम्‍बन्‍धी कार्य को सिद्ध करने वाले
577. जरासंधहा जरासंध का वध करने वाले
578. भीमसेनस्‍वरूप: भीमसेनस्‍वरूप
579. विप्ररूप: ब्राह्मण का रूप धारण करके जरासंध के पास जाने वाले
580. गदायुद्धकर्ता भीमरूप से गदायुद्ध करने वाले
581. कृपालु: दयालु
582. महाबन्‍धनच्‍छेदकारी बड़े-बड़े बन्‍धनों को काट देने अथवा महान भवबन्‍धन का उच्‍छेद करने वाले
583. नृपै: संस्‍तुत: जरासंध के कारागर से मुक्‍त राजाओं द्वारा संस्‍तुत
584. धर्मगेहमागत: धर्मराज के घर में आये हुए
585. द्विजै: संवृत: ब्राह्मणों से घिरे हुए
586. यज्ञसम्भारकर्ता यज्ञ के उपकरण जुटाने वाले
587. जनै: पूजित: सब लोगों से पूजित
588. चैद्यदुर्वाक्क्षम: चेदिराज शिशुपाल के दुर्वचनों को सह लेने वाले
589. महामोक्षद: उसे महान मोक्ष देने वाले
590. अरे: शिरश्‍छेदकारी सुदर्शन चक्र से शत्रु शिशुपाल का सिर काट लेने वाले
591. महायज्ञशोभाकर: युधिष्‍ठिर के महान् यज्ञ की शोभा बढ़ाने वाले
592. चक्रवर्ती नृपानन्‍दकारी राजाओं को आनन्‍द प्रदान करने वाले सार्वभौम सम्राट्
593. सुहारी विहारी सुन्‍दर हार से सुशोभित विहार परायण प्रभु
594. सभासंवृत: सभा सदों से घिरे हुए
595. कौरवस्‍य मानहृत् कुरुराज दुर्योधन का मान हर लेने वाले
596. शाल्‍वसंहारक: राजा शाल्‍व का संहार करने वाले
597. यानहन्‍ता शाल्‍व के सौभ विमान को तोड़ने डालने वाले
598. सभोज: भोजवंशियों सहित
599. वृष्‍णि: वृष्‍णिवंशी
600. मधु: मधुवंशी
601. शूरसेन: शूरवीर सेना से संयुक्‍त, अथवा शूरसेनवंशी
602. दशार्ह: दशार्हवंशी
603. यदु: अन्‍धक: यदुवंशी तथा अन्‍धकवंशी
604. लोकजित् लोकविजयी
605. द्युमन्मानहारी द्युमन् का मान हर लेने वाले
606. वर्मधृक कवचधारी
607. दिव्यशस्त्री दिव्‍य आयुधारी
608. स्वबोध आत्‍मबोधस्‍वरूप
609. सदा रक्षक: साधु पुरुषों की सदा रक्षा करने वाले
610. दैत्यहन्ता दैत्‍यों का वध करने वाले
611. दन्तवक्त्रप्रणाशी दन्‍तवक्‍त्र का नाश करने वाले
612. गदाधृक् गदाधारी
613. जगत्तीर्थयात्राकर: सम्‍पूर्ण जगत् की तीर्थ यात्रा करने वाले बलरामजी
614. पद्महार: कमल की माला धारण करने वाले
615. कुशी सूतहन्‍ता कुश हाथ में लेकर रोमहर्षण सूत का वध करने वाले
616. कृपाकृत कृपा करने वाले
617. स्‍मृतीश: धर्मशास्‍त्रों के स्‍वामी
618. अमल: निर्मल स्‍वरूप
619. बल्‍वलांगप्रभाखण्‍डकारी बल्‍वल की अंग कान्‍ति को खण्‍डित करने वाले
620. भीमदुर्योधनज्ञानदाता भीमसेन और दुर्योधन को ज्ञान देने वाले
621. अपर: जिनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है, ऐसे
622. रोहिणीसौख्‍यद: माता रोहिणी को सुख देने वाले
623. रेवतीश: रेवती के पति बलरामजी
624. महादानकृत् बड़े भारी दानी
625. विप्रदारिद्रयहा सुदामा ब्राह्मण की दरिद्रता दूर कर देने वाले
626. सदा प्रेमयुक् नित्‍य प्रेमी
627. श्रीसुदाम्न सहाय: श्रीसुदामा के सहायक
628. सराम: भार्गवक्षेत्रगन्‍ता: बलरामसहित, परशुरामजी के शूर्पारक क्षेत्र की यात्रा करने वाले
629. श्रुते सूर्योपरागे सर्वदर्शी विख्‍यात सूर्यग्रहण के अवसर पर सबसे मिलने वाले
630. महासेनयास्‍थित: विशाल सेना के साथ विद्यमान
631. स्‍नानयुक्‍त: महादानकृत् सूर्य-ग्रहण पर्व पर स्‍नान करके महान् दान करने वाले
632. मित्रसम्मेलनार्थी मित्रों के साथ मिलने के लिये इच्‍छुक अथवा मित्र सम्‍मेलन रूप प्रयोजन वाले
633. पाण्‍डवप्रीतिद: पाण्‍डवों को प्रीति प्रदान करने वाले
634. कुन्‍तिजार्थी कुन्‍ती और उनके पुत्रों का अर्थ सिद्ध करने वाले
635. विशालाक्ष मोहप्रद: विशालाक्ष को मोह में डालने वाले
636. शान्‍तिद: शान्‍ति देने वाले
637. सखी कोटिभि: गोपिकाभि: सहवटे राधिकाराधन: सखीस्‍वरूप कोटिश: गोपकिशोरियों के साथ वट के नीचे श्रीराधिका की आराधना करने वाले
638. राधिका प्राणनाथ: श्रीराधा के प्राणेश्‍वर
639. सखीमोहदावाग्निहा सखियों के मोहरूपी दावानल को नष्‍ट करने वाले
640. वैभवेश: वैभव के स्‍वामी
641. स्‍फुरत्‍कोटिकंदर्पलीलाविशेष: कोटि-कोटि कान्‍तिमान् कामदेवों से भी बढ़कर लीला-विशेष प्रकट करने वाले
642. सखीराधिकादु:खनाशी सखियों सहित श्रीराधा के दु:ख का नाश करने वाले
643. विलासी विलासशाली
644. सखी मध्यग: सखियों की मण्‍डली में विराजमान
645. शापहा शाप दूर करने वाले
646. माधवीश: माधवी श्रीराधा के स्‍वामी
647. शंत वर्षविक्षेपहृत् सौ वर्षों की वियोग व्‍यथा को हर लेने वाले
648. नन्‍दपुत्र: नन्‍दकुमार
649. नन्‍दवक्षोगत: नन्‍द की गोद में बैठने वाले
650. शीतलांग: शीतल शरीर वाले
651. यशोदाशुच: स्नानकृत्‌ यशोदाजी के प्रेमाश्रुओं से नहाने वाले
652. दु:खहन्‍ता दु:ख दूर करने वाले
653. सदा गोपिकानेत्रलग्न: व्रजेश: नित्‍यनिरन्‍तर गोपांगनाओं के नेत्र में बसे रहने वाले व्रजेश्‍वर
654. देवकीरोहिणीभ्‍यां स्‍तुत: देवकी और रोहिणी से संस्‍तुत
655. सुरेन्‍द्र: देवताओं के स्‍वामी
656. रहो गोपिकाज्ञानद: एकान्‍त में गोपिकाओं को ज्ञान देने वाले
657. मानद: मान देने वाले अथवा मानका खण्‍डन करने वाले
658. पट्टराज्ञीभि: आरात् संस्‍तुत: धनी पटरानियों द्वारा निकट और दूर से भी संस्‍तुत परम ऐश्‍वर्य से सम्‍पन्‍न
659. सदा लक्ष्मणाप्राणनाथ: सदैव लक्ष्‍मणा के प्राणवल्‍लभ
660. सदा षोडशस्त्रीसहस्त्रस्तुतांग: सोलह हजार रानियों द्वारा जिनके श्रीविग्रह की सदा स्‍तुति की गयी है
661. शुक: शुकमुनिस्‍वरूप
662. व्‍यासदेव: व्‍यासदेवरूप, (इसी प्रकार अन्‍य ऋषियों के नामों में भी स्‍वरूप जोड़ लेना चाहिये)
663. सुमन्‍तु: सुमन्‍तु
664. सित: सित
665. भरद्वाजक: भरद्वाज
666. गौतम: गौतम
667. आसुरि: आसुरि
668. सद्वसिष्‍ठ: श्रेष्‍ठ वसिष्‍ठ मुनि
669. शतानन्‍द: शतानन्‍द
670. आद्य: राम: आद्य राम के रूप में प्रसिद्ध परशुराम
671. पर्वतो मुनि: पर्वतमुनि
672. नारद: नारदमुनि
673. धौम्‍य: धौम्‍यमुनि
674. इन्‍द्र इन्‍द्रमुनि
675. असित: असित
676. अत्रि: अत्रि
677. विभाण्‍ड: विभाण्‍ड
678. प्रचेता: प्रचेता
679. कृप: कृप
680. कुमार: सनत्‍कुमार
681. सनन्‍द: सनन्‍दन
682. याज्ञवल्‍क्‍य: याज्ञवल्‍क्‍य
683. ऋभु: ऋभु
684. अंगिरा: अंगिरा
685. देवल: देवल
686. श्रीमृकण्‍ड: श्रीमृकण्‍ड
687. मरीचि: मरीचि
688. क्रतु: क्रतु
689. और्वक: और्व
690. लोमश: लोमश
691. पुलस्‍त्‍य: पुलस्‍त्‍य
692. भृगु: भृगु
693. ब्रह्मारात: वसिष्‍ठ: ब्रह्मरात वसिष्‍ठ
694. नर: नारायण: नर-नारायण
695. दत्त: दत्‍तात्रेय
696. पाणिनि: व्‍याकरण-सूत्रकार पाणिनि
697. पिंगल: छन्‍द:सूत्रकार महर्षि पिंगल
698. भाष्‍यकार: महाभाष्‍यकार पिंजलि
699. कात्‍यायन: वार्तिककार कात्‍यायन
700. विप्रपातंजलि: ब्राह्मण पतंजलि
701. गर्ग: यदुकुल के स्‍वामी
702. गुरु: बृहस्‍पति
703. गीष्‍पति: वाचस्‍पति बृहस्‍पति
704. गौतमीश: गौतम के स्‍वामी
705. मुनि: जाजलि: महर्षि जाजलि
706. कश्‍यप: कश्‍यप
707. गालव: गालव
708. द्विज: सौभरि: ब्रह्मर्षि सौभरि
709. ऋष्‍यश्रृंग: ऋष्‍यश्रृंग
710. कण्‍व: कण्‍व
711. द्वित: द्वित
712. जातूद्भव: जातूकर्ण्‍य
713. एकत: एकत
714. घन: घन
715. कर्दमस्‍य-आत्‍मज: कर्दमपुत्र कपिल
716. कर्दम: कपिल के पिता महर्षि कर्दम
717. भार्गव: भृगुपुत्र च्‍यवन
718. कौत्‍स्‍य: पवित्र कौत्‍स्‍य
719. आरुणि: आरुणि
720. शुचि: पिप्‍पलाद: पवित्र पिप्‍पलाद मुनि
721. मृकण्‍डस्‍य पुत्र: मार्कण्‍डेय
722. पैल: पैल
723. जैमिनि: जैमिनि
724. सत् सुमन्‍तु: सत्‍सुमन्‍तु
725. वरो गांगल श्रेष्‍ठ गांगल मुनि
726. स्‍फोटगेह: फलाद फल खाने वाले स्‍फोटगेह
727. सदापूजित: ब्राह्मण: नित्‍यपूजित ब्राह्मणस्‍वरूप
728. सर्वरूपी: सर्व-रूपधारी सर्व-रूपधारी
729. महामोहनाश: मुनीश: महान् मोह का नाश करने वाले मुनीश्‍वर
730. प्रागमर: पूर्वदेवता जो उपेन्‍द्रवतार में देवतारूप में थे
731. मुनीशस्‍तुत: मुनीश्‍वरों द्वारा संस्‍तुत
732. शौरिविज्ञानदाता वसुदेवजी को ज्ञान देने वाले
733. महायज्ञकृत् महान् यज्ञ करने वाले
734. आभृथस्‍नानपूज्‍य: यज्ञान्‍त में किये जाने वाले
735. सदादक्षिणाद: सदा दक्षिणा देने वाले
736. नृपै: पारिबर्ही राजाओं से भेंट लेने वाले
737. व्रजानन्‍दद: वज्र को आनन्‍द देने वाले
738. द्वाराकागेहदर्शी द्वारकापुरी के भवानों को देखने वालेद्वारकापुरी के भवानों को देखने वाले
739. महाज्ञानद: महान् ज्ञान प्रदान करने वाले
740. देवकीपुत्रद: देवकी को उनके मरे हुए पुत्र लाकर देने वाले
741. असुरै: पूजित: असुरों से पूजित
742. इन्‍द्रसेनादृत: राजा बलि से सम्‍मानित
743. सदाफाल्‍गुनप्रीतिकृत् अर्जुन से सदा प्रेम करने वाले
744. सत्‍सुभद्राविवाहे द्विपाश्रवप्रद: सुभद्रा के शुभ विवाह में दहेज के रूप में हाथी, घोड़े देने वाले
745. मानयान: वरपक्ष को सम्‍मानित करने वाले अथवा मानयुक्‍त वाहन अर्पित करने वाले
746. भुवं दर्शक: भूमण्‍डल को देखने और दिखाने वाले
747. मैथिलेन प्रयुक्‍त: मिथिलापति राजा बहुलाश्र्व तथा मिथिलानिवासी ब्राह्मण श्रुतदेव से एक ही समय दर्शन देने के लिये प्रार्थित
748. आशु ब्राह्मणै: सह राजा स्‍थित: ब्राह्मणैश्‍च स्थित: उसी क्षण एक ही साथ राजा बहुलाश्र्व के साथ विराजमान तथा श्रुतदेव ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणों में विराजमान
749. मैथिले कृती मैथिल राजा और मैथिल ब्राह्मण के प्रति कर्तव्‍य का पालन करने वाले
750. लोकवेदोपदेशी लोक और वेद का उपदेश करने वाले
751. सदा वेदवाक्‍यै: स्‍तुत: सदा वेदावचनों द्वारा स्‍तुत
752. शेषशायी शेषनाग की शय्या पर शयन करने वाले
753. अमरेषु ब्राह्मणै: परीक्षावृत: भृगु आदि ब्राह्मणों ने परीक्षा करके सब देवताओं में श्रेष्‍ठ रूप से जिनका वरण किया है
754. भृगुप्रार्थित: भृगु से प्रार्थित
755. दैत्‍यहा दैत्‍यनाशक
756. ईशरक्षी भस्‍मासुर को भस्‍म करके शिवजी की रक्षा करने वाले
757. अर्जुनस्‍य सखा अर्जुन के मित्र
758. अर्जुनस्यापि मानप्रहारी अर्जुन का भी अभिमान भंग करने वाले
759. विप्रपुत्रप्रद: ब्राह्मण को पुत्र प्रदान करने वाले
760. धामगन्‍ता ब्राह्मण के पुत्रों को लाने के लिये अपने दिव्‍यधाम में जाने वाले
761. माधवीभिर्विहारस्‍थित: अपनी भार्या स्‍वरूपा मधुकुल की स्‍त्रियों के साथ समुद्र में जल-विहार करने वाले
762. कलांग कलाएं जिनके अंग हैं, वे
763. महामोहदावाग्‍निदग्‍धाभिराम: महामोहमयदावानल से दग्‍ध (नष्‍ट) हुए लोगों के मन को आकर्षित करने वाले
764. यदु: उग्रसेन: नृप: यदु, उग्रसेन, नृपति
765. अक्रूर अक्रूर अथवा क्रूरता रहित
766. उद्धव: उद्धव अथवा उत्‍सवरूप
767. शूरसेन: शूरसेन
768. शूर: शूर
769. हृदीक: कृतवर्मा के पिता ह्दीक (समस्‍त यादव भगवत्‍स्‍वरूप या भगवान की विभूति हैं, इसलिये इन नामों में इनकी गणना की गयी है)
770 सत्राजित: सत्राजित
771. अप्रमेय: प्रमाणातीत
772. गद: बलरामजी के छोटे भाई गद
773. सारण: सारण
774. सात्‍यिक सत्‍यकपुत्र
775. देवभाग: देवभाग
776. मानस: मानस
777. संजय: संजय
778. श्‍यामक: श्‍यामक
779. वृक: वृक
780. वत्‍सक: वत्‍सक
781. देवक: देवक
782. भद्रसेन: भद्रसेन
783. नृप अजातशत्रु: राजा युधिष्‍ठिर
784. जय: जय (अर्जुन)
785. माद्रीपुत्र: नकुल सहदेव
786. भीष्‍म: दुर्योधन आदि के पितामह देवव्रत
787. कृप: कृपाचार्य
788. बुद्धिचक्षु: प्रज्ञाचक्षु धृतराष्‍ट्र
789. पाण्‍डु: पाण्‍डवों के पिता राजा पाण्‍डु
790. शांतनु: भीष्‍म के पिता राजा शान्‍तनु
791. देवो बाल्‍हीक: देवस्‍वरूप बाल्‍हीक
792. भूरिश्रवा: भूरिश्रवा
793. चित्रवीर्य: विचित्रवीर्य
794. विचित्र: विचित्र या चित्रांगद
795. शल: शल
796. दुर्योधन: जिसके साथ युद्ध करना कठिन हो, वह राजा दुर्योधन
797. कर्ण: कर्ण
798. सुभद्रासुत: सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु
799. प्रसिद्ध: विष्‍णुरात: भगवान् श्रीकृष्‍ण ने जिन्‍हें जीवनदान दिया था, वे सुप्रसिद्ध राजा परीक्षित
800. जनमेजय: परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय
801. पाण्‍डव: पांचों पाण्‍डव
802. कौरव: कुरुकुल में उत्‍पन्‍न क्षत्रियसमुदाय
803. सर्वतेजा: हरि: सम्‍पूर्ण तेज से सम्‍पन्‍न एवं भक्‍तों के चित्‍त हरण करने वाले भगवान् श्रीकृष्‍ण
804. सर्वरूपी सर्वस्‍वरूप
805. राधया व्रजं ह्रागत: श्रीराधा के साथ व्रज में अवतीर्ण
806. पूर्णदेव: परिपूर्णतम परमात्‍मा
807. वर: सब के वरधीय
808. रासलीलापर: रासक्रीडापरायण
809. दिव्‍यरूपी दिव्‍य रूप वाले
810. रथस्‍थ: रथ पर विराजमान
811. नवद्वीपखण्डप्रदर्शी जमबूद्वीप के नौ खण्‍डों को देखने-दिखाने वाले
812. महामानद: बहुत सम्‍मान देने वाले अथवा महामान का खण्‍डन करने वाले
813. विश्‍वरूप: स्‍वयं ही विश्‍व के रूप में प्रकाशमान
814. सनन्‍द: सनन्‍द
815. नन्‍द: नन्‍द
816. वृष: वृषभानु
817. वल्‍लवेश: गोपेश्‍वर
818. सुदामा ‘श्रीदामा’ नामक गोप
819. अर्जुन: अर्जुन गोप
820. सौबल: सुबल
821. सकृष्‍ण: स्‍तोक: स्‍तोककृष्‍ण
822. अंकुश: अंकुश
823. सद्विशालर्षभाख्‍य: विशाल और ऋषभ नामक दो सखाओं वाले
824. सुतेजस्‍विक: श्रेष्‍ठ तेजस्‍वी
825. कृष्णमित्रो वरूथ: श्रीकृष्‍ण के सखा वरूथ
826. कुशेश: कुशेश्‍वर
827. वनेश: वनेश्‍वर
828. वृन्‍दावनेश: वृन्‍दावनेश्‍वर
829. माथुरेशाधिप: मथुरामण्‍डल के राजाधिराज
830. गोकुलेश: गोकुल के स्‍वामी
831. सदा गोगण: सदा गौओं के समुदाय के साथ रहने वाले
832. गोपति: गोस्‍वामी
833. गोपिकाकेश: गोपांगनावल्‍लभ
834. गोवर्धन: गौओं की वृद्धि करने वाले; गिरिराज गोवर्धन अथवा नामधारी गोप
835. गोपति: गौओं के पालक
836. कन्‍यकेश: गोपकिशोरियों के प्राणवल्‍लभ
837. अनादि: जिनका कोई आदिकरण नहीं तथा जो सबके आदि हैं वे
838. आत्‍मा अन्‍तर्यामी परमात्‍मा
839. हरि: श्‍यामवर्ण श्रीकृष्‍ण
840. पर: पुरुष: परम पुरुष
841. निर्गुण: प्राकृत गुणों से अतीत
842. ज्‍योतिरूप: ज्‍योतिर्मय विग्रहवाले
843. निरीह: चेष्‍टा या कामना से रहित
844. सदा निर्विकार: सतत विकारशून्‍य
845. प्रपंचात्‍पर: सकल दृश्‍य-प्रपंच से परे विराजमान
846. ससत्‍य: सत्‍ययुक्‍त अथवा सत्‍या-सत्‍यभामा से संयुक्‍त
847. पूर्ण: परिपूर्ण
848. परेश: परमेश्‍वर
849. सूक्ष्‍म: सूक्ष्‍मस्‍वरूप
850. द्वारकायां नृपेण अश्‍वमेधस्‍य कर्ता द्वारका में राजा उग्रसेन के द्वारा अश्‍वमेध यज्ञ का अनुष्‍ठान करने वाले
851. अपि पौत्रेण भूभारहर्ता पुत्र एवं पौत्र के सहयोग से भूमिका भार उतारने वाले
852. पुन: श्रीव्रजे राधया रासरंगस्‍य कर्ता हरि: पुन: श्रीव्रज में श्रीराधिका के साथ रास-रंग करने वाले श्रीहरि
853. गोपिकानां च भर्ता श्रीराधा तथा अन्‍य गोपकिशोरियों के पति
854. सदैक: सदा एकमात्र अद्वितीय
855. अनेक: अनेक रूपों में प्रकट
856. प्रभापूरितांग: प्रकाशपूर्ण अंग वाले
857. योगमायाकार: योगमाया के उद्भावक
858. कालजित् कालविजयी
859. सुदृष्‍टि: उत्‍तम दृष्‍टि वाले
860. महत्तत्त्वरूप: महत्‍तत्‍त्स्‍वरूप
861. प्रजात: उत्‍कृष्‍ट अवतारधारी
862. कूटस्‍थ: कूटस्‍थ (निर्विकार)
863. आद्यांकुर: विश्‍ववृक्ष के प्रथम अंकुर, ब्रह्मा
864. वृक्षरूप: विश्‍ववृक्षरूप
865. विकारस्‍थित: विकारों (कार्यों) में भी कारणरूप से विद्यमान
866. वैकारिकस्‍तैजस्‍तामसक्ष्‍च अहंकार: वैकारिक, तेजस और तामस (अथवा सात्‍विक, राजस, तामस) त्रिविध अहंकाररूप
867. नभ: आकाशस्‍वरूप
868. दिक् दिशास्‍वरूप
869. समीर: वायुरूप
870. सूर्य: सूर्यस्‍वरूप
871. प्रचेतोश्र्विवन्‍हि: वरुण अश्‍विनीकुमार एवं अग्‍निस्‍वरूप
872. शक्र: इन्‍द्र
873. उपेन्‍द्र: भगवान् वामन
874. मित्र: मित्रदेवता
875. श्रुति: श्रवणेन्‍द्रिय
876. त्‍वक् त्‍वगिन्‍द्रिय
877. दृक् नेत्रेन्‍द्रिय
878. घ्राण: नासिकेन्‍द्रिय
879. जिह्वा रसनेन्‍द्रिय
880. गिर: वागिन्‍द्रिय
881. भुजा हस्‍तस्‍वरूप
882. मेढरक: जननेन्‍द्रियरूप
883. पायु: ‘पायु’ नामक कर्मेन्‍द्रिय (गुदा) रूप
884. गघ्रि: ‘चरण’ नामक कमेन्‍द्रियरूप
885. सचेष्‍ट: चेष्‍टाशील
886. धरा पृथ्‍वी
887. व्‍योम आकाश
888. वा: जल
889. मारुत: वायु
890. तेज: अग्‍नि (पंचभूतस्‍वरूप)
891. रूपम् रूप
892. रस: रस
893. गन्‍ध: गन्‍ध
894. शब्‍द: शब्‍द
895. स्‍पर्श: स्‍पर्श-विषयरूप
896. सचित्त: चित्‍तयुक्‍त
897. बुद्धि: बुद्धि
898. विराट् विराट्
899. कालरूप: कालस्‍वरूप
900. वासुदेव: सर्वव्‍यापी भगवान
901. जगत्‍कृत् संसार के स्‍त्रष्‍टा
902. अण्‍डेशयान: ब्रह्माण्‍ड के गर्भ में शयन करने वाले ब्रह्माजी
903. सशेष: शेष के साथ रहने वाले (अर्थात् शेष शय्याशायी)
904. सहस्‍त्रस्‍वरूप: सहसहस्‍त्रों स्‍वरूप धारण करने वालेस्‍त्रों स्‍वरूप धारण करने वाले
905. रमानाथ: लक्ष्‍मीपति
906. आद्योवतार: ब्रह्मारूप में जिनका प्रथम बार अवतार हुआ, वे श्रीहरि
907. सदा सर्गकृत् विधाता के रूप में सदा सृष्‍टि करने वाले
908. पद्मज: दिव्‍य कमल से उत्‍पन्‍न ब्रह्मा
909. कर्मकर्ता निरन्‍तर कर्म करने वाले
910. नाभिपद्मोद्भव: नारायण के नाभिकमल से प्रकट ब्रह्मा
911. दिव्‍यवर्ण: दिव्‍य कान्‍ति से सम्‍पन्‍न
912. कवि: त्रिकालदर्शी अथवा विश्‍वरूप काव्‍य के निर्माता आदि कवि
913. लोककृत् जगत्स्‍त्रष्‍टा
914. कालकृत् काल के निर्माता
915. सूर्यरूप: सूर्यस्‍वरूप
916. अनिमेष: निमेषरहित
917. अभव: जन्‍मरहित
918. वत्‍सरान्‍त: संवत्‍सर के लयस्‍थान
919. महीयान् महान् से भी अत्‍यन्‍त महान्
920. तिथि: तिथिस्‍वरूव
921. वार: दिन
922. नक्षत्रम् नक्षत्र
923. योग: योग
924. लग्‍न: लग्‍नस्‍वरूप
925. मास: मासस्‍वरूप
926. घटी अर्धमुहूर्तरूप
927. क्षण: क्षणरूप
928. काष्‍ठिका: काष्‍ठा
929. मुहूर्त: दो घड़ी का समय
930. याम: प्रहर
931. ग्रहा: ग्रहस्‍वरूप
932. यामिनी रात्रिरूप
933. दिनम् दिनरूप
934. ऋक्षमालागत: नक्षत्रपंक्‍तियों में गमन करने वाले ग्रहरूप
935. देवपुत्र: वसुदेवनन्‍दन
936. कृत: सत्‍ययुगरूप
937. त्रेयता: त्रेता
938. द्वापर: द्वापररूप
939. असौकलि: यह कलियुग
940. युगानां सहस्‍त्रम् सहस्‍त्रचतुर्युग (ब्रह्माजी का एक दिन)
941. मन्‍वन्‍तरम् मन्‍वन्‍तरकाल
942. लय: संहाररूप
943. पालनम् पालनकर्मस्‍वरूप
944. सत्‍कृति: उत्‍तम सृष्‍टिरूप
945. परार्द्धम् परार्द्धकालरूप
946. सदोत्पत्तिकृत्‌ सदा सृष्‍टि करने वाले
947. द्वयक्षर: ब्रह्मरूप: दो अक्षर वाला ‘कृष्‍ण’ नामक ब्रह्मास्‍वरूप
948. रुद्रसर्ग: रुद्रसर्ग
949. कौमारसर्ग: कौमारसर्ग
950. मुने: सर्गकृत् मुनिसर्ग के कर्ता
951. देवकृत् देवसर्ग के रचयिता
952. प्राकृत: प्राकृतसर्गरूपी
953. श्रुति: वेद
954. स्‍मृति: धर्मशास्‍त्र
955. स्‍तात्रम् स्‍तुति
956. पुराणम् पुराण
957. धनुर्वेद: धनुर्वेद
958. इज्‍या यज्ञ
959. गान्‍धर्ववेद: गान्‍धर्ववेद (संगीतशास्‍त्र)
960. विधाता ब्रह्मा
961. नारायण: विष्‍णु
962. सनत्‍कुमार: सनत्‍कुमार आदि
963. वराह:

नारद:

वराहावतार

देवर्षि नारदरूप

964. धर्मपुत्र: धर्म के पुत्र नर-नारायण आदि
965. मुनि: कर्दमस्यात्मज: कर्दमकुमार कपिल मुनि
966. सयज्ञो दत्त: यज्ञस्‍वरूप और दत्‍तात्रेय
967. अमरो नाभिज: अविनाशी ऋषभदेव
968. श्रीपृथु: श्रीमान् राजा पृथु
969. सुमत्‍स्‍य: सुन्‍दर मस्‍त्‍यावतार
970. कूर्म: कच्‍छपावतार
971. धन्‍वन्‍तरि: धन्‍वन्‍तरि-अवतार
972. मोहिनी मोहिनी नारी का अवतार
973. प्रतापी नारसिंह: प्रतापी नृसिंहावतार
974. द्विजोवामन: ब्राह्मणजातीय वामनावतार
975. रेणुकापुत्ररूप: परशुरामरूप
976. श्रुतिस्‍तोत्रकर्ता मुनि: व्‍यासदेव: वेदों के विभाजक तथा स्‍तोत्र आदि के निर्माता मुनिवर व्‍यासदेव
977. धनुर्वेदभाग् रामचन्‍द्रावतार: धनुर्वेद के ज्ञाता श्रीरामचन्‍द्रावतार
978. सीतापति: जनकनन्‍दिनी सीता के पति
979. भारहृत् भूभार हरण करने वाले
980. रावणारि: रावण के शत्रु
981. नृप: सेतुकृत् समुद्र पर पुल बांधने वाले नरेश
982. वानरेन्द्रप्रहारी वानरराज (बालि) को मारने वाले
983. महायज्ञकृत् महान् अश्‍वमेध यज्ञ करने वाले श्रीराम
984. प्रचण्‍ड: राघवेन्‍द्र: प्रचण्‍ड पराक्रमी रघुनाथजी
985. बल: कृष्‍णचन्‍द्र: बलराम सहित साक्षात् भगवान श्रीकृष्‍ण
986. कल्‍कि:

कलेश:

'कल्‍कि' नामक अवतार

कलाओं के स्‍वामी

987. प्रसिद्धो बुद्ध: प्रसिद्ध बुद्धावतार
988. हंस: हंसावतार
989. अश्‍व: हयग्रीवावतार
990. ऋषीन्‍द्रोजित: ऋषिप्रवर पुलहपुत्र अजित
991. देववैकुण्‍ठनाथ: देवलोक तथा वैकुण्‍ठलोक के अधिपति
992. अमूर्ति: निराकार
993. मन्‍वन्‍तरस्‍यावतार: मन्‍वन्‍तरावतार
994. गजोद्धारण: गज और ग्राह के युद्ध में हाथी को उबारने वाले हरि-अवतार
995. ब्रह्मापुत्र: श्रीमनु: ब्रह्माजी के पुत्र श्रीस्‍वायम्‍भुव मनु
996. दानशील: दानशील
997. दुष्‍यन्‍तजो नृपेन्‍द्र: दुष्‍यन्‍तकुमार महाराज भरत
998. संदृष्‍ट: श्रुत: भूत: एवं भविष्‍यत् भवत् दृष्‍ट, श्रुत, भूत, भविष्‍यत् एवं वर्तमानस्‍वरूप
999. स्थावरो जंगम: स्‍थावरजंगमरूप
1000. अल्पं च महत्‌ अल्‍प और महान


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गर्ग संहिता
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
गोलोक खण्ड
1 नारद जी के द्वारा अवतार-भेद का निरूपण 1
2 ब्रह्मादि देवों द्वारा गोलोक धाम का दर्शन 5
3 भगवान श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह में श्रीविष्णु आदि का प्रवेश; देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति; भगवान का अवतार लेने का निश्चय; श्रीराधा की चिंता और भगवान का उन्हें सांत्वना-प्रदान 11
4 नन्द आदि के लक्षण; गोपीयूथ का परिचय; श्रुति आदि के गोपीभाव की प्राप्ति में कारणभूत पूर्व प्राप्त वरदानों का विवरण 15
5 भिन्न-भिन्न स्थानों तथा विभिन्न वर्गों की स्त्रियों के गोपी होने के कारण एवं अवतार-व्यवस्था का वर्णन 21
6 कालनेमि के अंश से उत्पन्न कंस के महान बल पराक्रम और दिग्विजय का वर्णन 24
7 कंस की दिग्विजय-शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओं की पराजय 29
8 सुचन्द्र और कलावती के पूर्व-पुण्य का वर्णन, उन दोनों का वृषभानु तथा कीर्ति के रूप में अवतरण 35
9 गर्गजी की आज्ञा से देवक का वसुदेव जी के साथ देवकी का विवाह करना; विदाई के समय आकाशवाणी सुनकर कंस का देवकी को मारने के लिये उद्यत होना और वसुदेव जी की शर्त पर जीवित छोड़ना 38
10 कंस के अत्याचार; बलभद्र जी का अवतार तथा व्यासदेव द्वारा उनका स्तवन 41
11 भगवान वसुदेव देवकी में आवेश; देवताओं द्वारा उनका स्तवन; आविर्भावकाल; अवतार विग्रह की झाँकी; वसुदेव देवकी कृत भगवत-स्तवन; भगवान द्वारा उनके पूर्वजन्म के वृतांत वर्णन पूर्वक अपने को नन्द भवन में पहुँचाने का आदेश; कंस द्वारा नन्द कन्या योगमाया से कृष्ण के प्राकट्य की बात जानकर पश्चात्ताप पूर्वक वसुदेव देवकी को बन्धन मुक्त करना, क्षमा माँगना और दैत्यों को बाल वध का आदेश देना। 45
12 दोनों ओर के स्वजनों को देखकर उनके मरण की आशंका से अर्जुन का शोकाकुल होना और कुलनाश, कुलधर्मनाश तथा वर्णसंकरता के विस्तार आदि दुष्परिणामों को बतलाते हुए धनुष-बाण छोड़कर बैठ जाना 54
13 पूतना का उद्धार 58
14 शकट भंजन; उत्कच और तृणार्वत का उद्धार; दोनों के पूर्वजन्मों का वर्णन 61
15 यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन; नन्द और यशोदा के पूर्व-पुण्य का परिचय; गर्गाचार्य का नन्द-भवन में जाकर बलराम और श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार करना तथा वृषभानु के यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्ण के नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्य का ज्ञान कराना 68
16 भाण्डीर वन में नन्दजी के द्वारा श्री राधाजी की स्तुति: श्री राधा और श्रीकृष्ण का ब्रह्माजी के द्वारा विवाह; ब्रह्माजी के द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन तथा नवदम्पति की मधुर लीलाएँ 75
17 श्रीकृष्ण की बाल-लीला में दधि-चोरी का वर्णन 82
18 नन्दा, उपनन्दत और वृषभानुओं का परिचय तथा श्रीकृष्ण की मृदभक्षण लीला 86
19 दामोदर कृष्ण, का उलूखल- बन्धतन तथा उनके द्वारा यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार 88
20 दुर्वासा द्वारा भगवान की माया का एवं गोलोक में श्रीकृष्ण का दर्शन तथा श्रीनन्द नन्दरनस्तोात्र 91
वृन्दावन खण्ड
1 सन्नन्दका गोपों को महावन से वृन्दावन में चलने की सम्मति देना और व्रज मण्डल के सर्वाधिक माहात्म्य का वर्णन करना 95
2 गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति तथा उसका व्रजमण्डहल में आगमन 100
3 श्री यमुना जी का गोलोक से अवतरण और पुन: गोलोक धाम में प्रवेश 104
4 श्री बलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा बछड़ों का चराया जाना तथा वत्सासुर का उद्धार 107
5 वकासुर का उद्धार 109
6 अघासुर का उद्धार और उसके पूर्वजन्म का परिचय 113
7 ब्रह्मा जी के द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-बालकों का हरण 113
8 ब्रह्मा जी के द्वारा श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी विश्वात्मा स्वरूप का दर्शन 115
9 ब्रह्माजी के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति 119
10 यशोदा जी की चिंता; नन्द द्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणों को विविध प्रकार के दान देना; श्री बलराम तथा श्रीकृष्ण का गोचारण 124
11 धेनुकासुर का उद्धार 127
12 श्रीकृष्ण द्वारा कालियदमन तथा दावानल-पान 130
13 मुनिवर वेदशिरा और अश्वशिरा का परस्पर के शाप से क्रमश: कालियनाग और काकभुशुण्ड होना तथा शेषनाग का भूमण्‍डल को धारण करना 132
14 कालिय का गरूड़ के भय से बचने के लिये यमुना-जल में निवास का रहस्य 135
15 श्रीराधा का गवाक्ष मार्ग से श्रीकृष्ण के रूप का दर्शन करके प्रेम-विव्हल; ललिता का श्रीकृष्ण से राधा की दशा का वर्णन करना और उनकी आज्ञा के अनुसार लौटकर श्रीराधा को श्रीकृष्ण - प्रीत्यर्थ सत्कर्म करने की प्रेरणा देना 138
16 तुलसी का माहात्म्य, श्रीराधा द्वारा तुलसीसेवन-व्रत का अनुष्ठान तथा दिव्य तुलसी देवी का प्रत्यक्ष प्रकट हो श्रीराधा को वरदान देना 142
19 श्रीकृष्ण का गोपदेवी के रूप से वृषभानु-भवन में जाकर श्रीराधा से मिलना 144
19 श्रीकृष्ण के द्वारा गोपदेवी रूप से श्रीराधा के प्रेम की परीक्षा तथा श्रीराधा को श्रीकृष्ण का दर्शन 147
19 रासक्रीड़ा का वर्णन 151
20 श्रीराधा और श्रीकृष्ण के परस्पर श्रृंगार-धारण, रास, जलविहार एवं वनविहार का वर्णन 154
21 गोपंगनाओं के साथ श्रीकृष्ण का वन-विहार, रास-क्रीड़ा; मानवती गोपियों को छोड़कर श्रीराधा के साथ एकांत-विहार तथा मानिनी श्रीराधा को भी छोड़कर उनका अंतर्धान होना 157
22 गोपांगनाओं श्रीकृष्ण का स्तवन; भगवान का उनके बीच में प्रकट होना; उनके पूछने पर हंसमुनि के उद्धार की कथा सुनाना तथा गोपियों को क्षीरसागर श्वेतद्वीप के नारायण स्वरूपों का दर्शन कराना 160
23 कंस और शंखचूड़ में युद्ध तथा मैत्री का वृत्तांत; श्रीकृष्ण द्वारा शंखचूड़ का वध 163
24 रास-विहार तथा आसुरि मुनि का उपाख्यान 166
25 शिव और आसुरि का गोपीरूप से रासमण्‍डल में श्रीकृष्ण का दर्शन और स्तवन करना तथा उनके वरदान से वृन्दावन में नित्य-निवास पाना 169
26 श्रीकृष्ण का विरजा के साथ विहार; श्रीराधा के भय से विरजा का नदी रूप होना, उसके सात पुत्रों का उसी शाप से सात समुद्र होना तथा राधा के शाप से श्रीदामा का अंशत: शंखचूड़ होना 172
गिरिराज खण्‍ड
1 श्रीकृष्‍ण के द्वारा गोवर्धन पूजन का प्रस्‍ताव और उसकी विधि का वर्णन 175
2 गोपों द्वारा गिरिराज पूजन का महोत्‍व 178
3 श्रीकृष्‍ण का गोवर्धन पर्वत को उठाकर इन्‍द्र के द्वारा क्रोधपूर्वक करायी गयी घोर जलवृष्टि से रक्षा करना 180
4 इन्‍द्र द्वारा भगवान श्रीकृष्‍ण की स्‍तुति तथा सुरभि ओर ऐरावत द्वारा उनका अभिषेक 182
5 गोपों का श्रीकृष्‍ण के विषय में संदेह मूलक विवाद तथा श्रीनन्‍दराज एवं वृषभानुवर के द्वारा समाधान 185
6 गोपों का वृषभानुवर के वैभव की प्रशंसा करके नन्‍दनन्‍दन की भगवत्‍ता परीक्षण करने के लिये उन्‍हें प्रेरित करना और वृषभानुवर का कन्‍या के विवाह के लिये वर को देने के निमित्‍त बहुमूल्‍य एवं बहुसंख्‍यक मौक्कित-हार भेजना तथा श्रीकृष्‍ण की कृपा से नन्‍दराज का वधू के लिये उनसे भी अधिक मौक्किकराशि भेजना 188
7 गिरिराज गोवर्धन सम्‍बन्‍धी तीर्थों का वर्णन 191
8 विभिन्‍न तीर्थों में गिरिराज के विभिन्‍न अंगों की स्थित का वर्णन 194
9 गिरिराज गोवर्धन की उत्‍पत्ति का वर्णन 195
10 गोवर्द्धन-शिला के स्‍पर्श से एक राक्षस का उद्धार तथा दिव्‍यरूपधारी उस सिद्ध मुख से गोवर्द्धन की महिमा का वर्णन 199
11 सिद्ध के द्वारा अपने पूर्वजन्‍म के वृत्‍तान्‍त का वर्णन तथा गोलोक से उतरे हुए विशाल रथ पर आरूढ़ हो उसका श्रीकृष्‍ण-लोक में गमन 202
माधुर्य खण्‍ड
1 श्रुतिरूपा गोपियों का वृतान्‍त, उनका श्रीकृष्‍ण और दुर्वासा मुनि की बातों में संशय तथा श्रीकृष्‍ण द्वारा उसका निराकरण 204
2 ऋषिरूपा गोपियों का उपाख्‍यान- वंगदेश के मंगल-गोप की कन्‍याओं का नन्‍दराज के व्रज में आगमन तथा यमुनाजी के तट पर रास मण्‍डल में प्रवेश 209
3 मैथिलीरूपा गोपियों का आख्‍यान, चीरहरणलीला और वरदान प्राप्ति 210
4 कोसल प्रान्‍तीय स्त्रियों का व्रज में गोपी होकर श्रीकृष्‍ण के प्रति अनन्‍य भाव से प्रेम करना 212
5 अयोध्‍यावासिनी गोपियों के आख्‍यान के प्रसंग में राजा विमल की संतान के लिये‍ चिन्‍ता तथा महामुनि याज्ञवल्‍क्‍य द्वारा उन्‍हें बहुत-सी पुत्री होने का विश्‍वास दिलाना 213
6 अयोध्‍यापुरवासिनी स्त्रियों का राजा विमल के यहाँ पुत्री रूप से उत्‍पन्‍न होना, उनके विवाह के लिये राजा का मथुरा में श्रीकृष्‍ण को देखने के‍ निमित्‍त दूत भेजना, वहाँ पता न लगने पर भीष्‍मजी से अवतार-रहस्‍य जानकर उनका श्रीकृष्‍ण के पास दूत प्रेषित करना 215
7 राजा विमल का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्‍ण का उन्‍हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियों को साथ लेकर व्रजमण्‍डल में लौटना 218
8 यज्ञसीतास्‍वरूपा गोपियों के पूछने पर श्रीराधा का श्रीकृष्‍ण की प्रसन्‍नता के लिये एकादशी-व्रत का अनुष्‍ठान बताना ओर उसके विधि, नियम और माहात्‍म्‍य का वर्णन करना 215
9 पूर्वकाल में एकादशी का व्रत करके मनोवांछित फल पाने वाले पुण्‍यात्‍माओं का परिचय तथा यज्ञसीता स्‍वरूपा गोपिकाओं को एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्‍ण सांनिध्‍य की प्राप्ति 224
10 पुलिन्‍द कन्‍यारूपिणी गोपियों के सौभाग्‍य का वर्णन 226
11 लक्ष्‍मी जी की सखियों का वृषभानुओं के घरों में कन्‍या रूप से उत्‍पन्‍न होकर माघ मास के व्रत से श्रीकृष्‍ण को रिझाना और पाना 228
12 दिव्‍यादिव्‍य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियों का वर्णन तथा श्रीराधा सहित गोपियों की श्रीकृष्‍ण के साथ होली 230
13 देवांगना स्‍वरूपा गोपियाँ 234
14 कौरव-सेना से पीड़ित रंगोजि गोप का कंस की सहायता से व्रजमण्‍डल की सीमा पर निवास तथा उसकी पुत्री रूप में जालंधरी गोपियों का प्राकट्य 233
15 बर्हिष्‍मतीपुरी आदि की वनिताओं का गोपीरूप में प्राकट्य तथा भगवान के साथ उनका रा‍सविलास, मांधाता और सौभरिके संवाद में यमुना-पञ्चांग की प्रस्‍तावना 236
16 श्री यमुना-कवच 238
17 श्री यमुना का स्‍त्रोत 239
18 यमुना जी के जप और पूजन के लिये पटल और पद्धति का वर्णन 241
19 यमुना-सहस्‍त्रनाम 243
20 बलदेवजी के हाथ से प्रलम्‍बासुर का वध तथा उसके पूर्वजन्‍म का परिचय 295
21 दावानल से गौओं और ग्‍वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्रीकृष्‍ण का दर्शन 297
22 श्रीकृष्‍ण का नन्‍दराज को वरूणलोक से ले आना और गोप-गोपियों को वैकुण्‍ठधाम का दर्शन कराना 299
23 अम्बिका वन में अजगर से नन्‍दराज की रक्षा तथा सुदर्शन-नामक विद्याधर का उद्धार 300
24 अरिष्‍टासुर और व्‍योमासुर का वध तथा माधुर्य खण्‍ड का उपसंहार 301
मथुरा खण्‍ड
1 कंस का नारद जी के कथनानुसार बलराम और श्रीकृष्‍ण को अपना शत्रु समझकर वसुदेव-देवकी को कैद करना, उन दोनों भाइयों को मारने की व्‍यवस्‍था में लगना तथा उन्‍हें मथुरा ले आने के लिये अक्रूरजी को नन्‍द के व्रज में जाने की आज्ञा देना 303
2 केशी का वध 306
3 अक्रूर का नन्‍दग्राम-गमन, मार्ग में उनकी बलराम-श्रीकृष्‍ण भेंट तथा उन्‍हीं के साथ नन्‍द-भवन में प्रवेश, श्रीकृष्‍ण से बातचीत और उनका मथुरा-गमन के लिये निश्चय, मथुरा-यात्रा की चर्चा सब ओर फैल जाने पर गोपियों का विरह की आशंका से उद्विग्न हो उठना 308
4 श्रीकृष्‍ण का गोपियों के घरों में जाकर उन्‍हें सान्‍त्‍वना देना तथा मार्ग में रथ रोककर खड़ी हुई गोपांगनाओं को समझाकर उनका मथुरापुरी की ओर प्रस्थित होना 311
5 अक्रूर को भगवान श्रीकृष्‍ण के परब्रह्मस्‍वरूप का साक्षात्‍कार तथा उनकी स्‍तुति, श्रीकृष्‍ण का ग्‍वालबालों के साथ पुरी-दर्शन के लिये जाना, नागरी, स्त्रियों का उनपर मोहित होना तथा भगवान के हाथ से एक रजक का उद्धार 314
6 सुदामा माली और कुब्‍जा पर कृपा, धनुर्भंग तथा मथुरा की स्त्रियों पर श्रीकृष्‍ण के मधुर-मोहन रूप का प्रभाव 318
7 मल्‍ल क्रीड़ा महोत्‍सव की तैयारी, रंगद्वार पर कुवलया पीड़ का वध तथा श्रीकृष्‍ण और बलराम का चाणूर और मुष्टिक के साथ मल्‍लयुद्ध में प्रवृत्त होना 322
8 चाणूर-मुष्टिक आदि मल्‍लों का तथा कंस और उसके भाइयों का वध 326
9 श्रीकृष्‍णा द्वारा वसुदेव देवकी की बन्‍धन से मुक्ति, श्रीकृष्‍ण और बलराम का गुरूकुल में विद्याध्‍ययन तथा गुरूदक्षिणा के रूप में गुरु के मरे हुए पुत्र को यमलोक से लाकर लौटाना, श्रीक्रूर को हस्तिनापुर भेजना तथा कुब्‍जा का मनोरथ पूर्ण करना 330
10 धोबी, दर्जी और सुदामा माली के पूर्वजन्‍म का परिचय 334
11 कुब्‍जा और कुवलयापीड के पूर्वजन्‍मगत वृतान्‍त का वर्णन 336
12 चाणूर आदि मल्‍ल, कंस के छोटे भाइयों तथा पंचजन दैत्‍य के पूर्वजन्‍मगत वृतान्‍त का वर्णन 338
13 श्रीकृष्‍ण की आज्ञा से उद्धव का व्रज में जाना और श्रीदामा आदि सखाओं का उनसे श्रीकृष्‍ण विरह के दु:ख का निवेदन 340
14 उद्धवका श्रीकृष्‍ण-सखाओं को आश्वासन, नन्‍द और यशोदा से बातचीत तथा उनकी प्रेम-लक्षणा-भक्ति से चकित होकर उद्धव का उन्‍हें श्रीकृष्‍ण के चरित्र सुनाना 343
15 गोपांग्‍नाओं के साथ उद्धव का कदली-वन में जाना और वहाँ उनकी स्‍तुति करके श्रीकृष्‍ण द्वारा भेजे गये पत्र अर्पित करना 347
16 उद्धव द्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनों को आश्वासन 351
17 श्रीकृष्‍ण को स्‍मरण करके श्रीराधा तथा गोपियों के करूण उद्गार 353
18 गोपियों के उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्धव का मथुरा को लौटना 357
19 श्रीकृष्‍ण का उद्धव के साथ व्रज में प्रत्‍यागमन और यमुना-तट पर गौओं का उनके रथ को चारों ओर से घेर लेना, गोपों के साथ उनकी भेंट, नन्‍दगाँव से नन्‍दरायजी एवं यशोदा-का गोपों एवं गोपियों को लेकर गाजे-बाजे के साथ उनकी अगवानी के लिये निकलना तथा सबके साथ श्रीकृष्‍ण का नन्‍द नगर में प्रवेश 360
20 श्रीकृष्ण का कदली-वन मे श्रीराधा और गोपियों के साथ मिलन, रासोत्सव तथा उसी प्रसंग मे रोहिताचल पर महामुनि ऋभु का मोक्ष 363
21 श्रीकृष्ण का की द्रवरूपता के प्रसंग में नारदजी का उपाख्‍यान 367
22 नारद का अनेक लोकों में होते हुए गोलोक में पहुँचकर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करना तथा श्रीकृष्ण का द्रवरूप होना 370
23 श्री कृष्ण का व्रज से लौटकर मथुरा में आगमन 710
24 बलदेव जी द्धारा कोल दैत्य का वध; उनकी गंगा तटवर्ती तीर्थों में यात्रा; माण्डूक देव को वरदान और भावी वृत्तान्त की सूचना देना; फिर गंगा के अन्यान्य तीर्थों में स्नान-दान करके मथुरा में लौट जाना 375
25 मथुरापुरी का माहात्म्य मथुरा खण्ड का उपसंहार 382
द्वारका खण्‍ड
1 जरासंध का विशाल सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण; श्री कृष्‍ण और बलराम द्वारा उसकी सेना का संहार; मगधराज की पराजय तथा श्रीकृष्‍ण–बलराम का मथुरा में विजयी होकर लौटना 385
2 मथुरा पर जरासंध और कालयवन का आक्रमण; भगवान का युद्ध छोड़कर एक गुफा में जाना और वहां गये हुए कालयवन को मुचुकुन्‍द के दृष्टिपात से दग्‍ध कराना; मुचुकुन्‍द को वर देकर ब‍दरिकाश्रम ओर भेजना और स्‍वयं म्‍लेच्‍छ–सेना का संहार करके जरासंध के सामने से भागकर श्रीकृष्‍ण–बलराम का प्रवर्षणगिरि होते हुए द्वारका पहँचना और जरासंध का उस पर्वत को जलाकर मगध को लौट जाना 388
3 बलदेवजी का रेवती के साथ विवाह 390
4 श्रीकृष्‍ण को रुक्मिणी का संदेश; ब्राह्मण सहित श्रीकृष्‍ण कुण्डिनपुर में आगमन; कन्‍या और वर के अपने-अपने घरों में मंगलाचार; शिशुपाल के साथ आयी हुई बारात को विदर्भराज का ठहरने के लिये स्‍थान देना 392
5 रुक्मिणी की चिन्‍ता; ब्राह्मण द्वारा श्रीहरि के शुभागमन का समाचार पाकर प्रसन्‍नता; भीष्‍म द्वारा बलराम और श्रीकृष्‍ण का सत्‍कार; पुरवासियों की कामना; रुक्मिणी की कुलदेवी के पूजन के लिये यात्रा, देवी से प्रार्थना तथा सौभाग्‍यवती स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त्‍िा 395
6 श्रीकृष्‍ण द्वारा रुक्मिणी का अपहरण तथा यादव-वीरों के साथ युद्ध में विपक्षी राजाओं की पराजय 398
7 श्रीकृष्‍ण के हाथों से रुक्मिणी की पराजय तथा द्वारका में रुक्मिणी और श्रीकृष्‍ण का विवाह 401
8 श्रीकृष्‍ण का सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ विवाह और उनकी संतति का वर्णन; प्रद्यम्न का प्राकट्य तथा रति और रुक्‍म–पुत्री के साथ उनका विवाह 404
9 द्वारकापुरी के पृथ्‍वी पर आने का कारण; राजा आनर्त की तपस्‍या और उन पर भगवान श्रीकृष्‍ण की कृपा 406
10 द्वारकापुरी, गोमती और चक्रतीर्थ का महात्‍म्‍य; कुबेर के वैष्‍णवयज्ञ में दुर्वासा मुनि द्वारा घण्‍टानाद और पार्श्‍वमौलि को शाप 408
11 गज और ग्राह बने हुए मन्त्रियों का युद्ध और भगवान विष्‍णु के द्वारा उनका उद्धार 411
12 महामुनि‍ त्रित के शाप से कक्षीवान का शंक रूप होकर सरोवर में रहना और श्रीकृष्ण के द्वारा उसका उद्धार होना; शंखोद्धार-तीर्थ की महिमा 413
13 प्रभास, सरस्‍वती, बोधप्पिल और गोमती सिन्‍धु संगम का माहात्‍म्‍य 415
14 द्वारका क्षेत्र के समुद्र तथा रैव तक पर्वत का माहात्‍म्‍य 417
15 यज्ञतीर्थ, कपिटंकतीर्थ, नृगकूप, गोपीभूमि तथा गोपीचन्‍दन की महिमा; द्वारका की मिट्टी के स्‍पर्श से एक महान पापी का उद्धार 420
16 सिद्धाश्रम की महिमा के प्रसंग में श्रीराधा और गोपांगनाओं के साथ श्रीकृष्‍ण और उनकी सोलह हजार रानियों का समागम 423
17 सिद्धाश्रम में राधा और श्रीकृष्‍ण का मिलन; श्रीकृष्‍ण की रानियों का श्रीराधा को अपने शिविर में बुलाकर उनका सत्‍कार करना तथा श्रीहरि द्वारा उनकी उत्‍कृष्‍ट प्रीति का प्रकाशन 426
18 सिद्धाश्रम में व्रजांगनाओं तथा सोलह सहस्‍त्र रानियों के साथ श्‍यामसुन्‍दर की रासक्रीड़ा का वर्णन तथा श्रीराधा के मुख से वृन्‍दावन के रास की उत्‍कृष्‍टता का प्रतिपादन 429
19 लीला-सरोवर, हरिमन्दिर, ज्ञानतीर्थ, कृष्‍ण-कुण्‍ड, बलभद्र-सरोवर, दानतीर्थ, गणपति तीर्थ और मायातीर्थ आदि का वर्णन 432
20 इन्‍द्रतीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, सूर्यकुण्‍ड नीललोहित-तीर्थ और सप्‍तसामुद्रक-तीर्थ का माहात्‍म्‍य 434
21 तृतीय दुर्ग के द्वार-देवताओं के दर्शन और पूजन की महिमा तथा पिण्‍डारक-तीर्थ का माहात्‍म्‍य 435
22 सुदामा ब्राह्मण का उपाख्‍यान 437
विश्वजित खण्‍ड
1 राजा मरुत्त का उपाख्‍यान 442
2 राजा उग्रसेन के राजसूय-यज्ञ का उपक्रम, प्रद्युम्न का दिग्विजय के लिये बीड़ा उठाना और उनका विजयाभिषेक 445
3 प्रद्युम्न के नेतृत्‍व में दिग्विजय के लिये प्रस्थित हुई यादवों की गजसेना, अश्‍वसेना तथा योद्धाओं का वर्णन 447
4 सेना सहित यादव-वीरों की दिग्विजय के लिये यात्रा 450
5 यादव-सेना की कच्‍छ और कलिंग देश पर विजय 452
6 प्रद्युम्न मरुधन्‍व देश के राजा गय को हराकर मालव नरेश तथा माहिष्‍मती पुरी के राजा से बिना युद्ध किये ही भेंट प्राप्‍त करना 454
7 गुजरात-नरेश ऋष्‍य पर विजयप्राप्‍त करके यादव-सेना का चेदिदेश के स्‍वामी दमघोष के यहां जाना; राजा का यादवों से प्रेमपूर्ण बर्ताव करने का निश्‍चय, किंतु शिशुपाल का माता-पिता के विरुद्ध यादवों से युद्ध का आग्रह 457
8 शिशुपाल के मित्र द्युमान तथा शक्‍त का वध 460
9 भानु के द्वारा रंग-पिंग का वध; प्रद्युम्न और शिशुपाल का भयंकर युद्ध तथा चेदिदेश पर प्रद्युम्न की विजय 462
10 यादव-सेना का कोंकण, कुटक, त्रिगर्त, केरल, तैलंग, महाराष्‍ट्र और कर्नाटक आदि देशों पर विजय प्राप्‍त कर करुष देश में जाना तथा वहां दन्‍तवक्र का घोर युद्ध 465
11 दन्‍तवक्र की पराजय तथा करुष देश पर यादव-सेना की विजय 469
12 उशीनर आदि देशों पर प्रद्युम्न की विजय तथा उनकी जिज्ञासा पर मुनिवर अगस्‍त्‍य द्वारा तत्‍वज्ञान प्रतिपादन 472
13 शाल्‍व आदि देशों तथा द्विविद वानर पर प्रद्युम्न की विजय; लंका से विभि‍षण का आना और उनहें भेंट समर्पित करना 476
14 सह्यपर्वत के निकट दत्तात्रेय का दर्शन और उपदेश तथा महेन्‍द्र पर्वत पर परशुरामजी के द्वारा यादव सेना का सत्‍कार और श्रेष्‍ठ भक्‍त के स्‍वरूप का निरूपण 480]]
15 उड्डीश-डामर देश के राजा, वंगदश के अधिपति वीर धन्‍वा तथा असम के नरेश पुण्‍ड्र पर यादव-सेना की विजय 484
16 मिथिला के राजा धृति द्वारा ब्रह्मचारी के रूप में पधारे हुए प्रद्युम्न का पूजन, उन दोनों का शुभ संवाद; प्रद्युम्न का राजा को प्रत्‍यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविर में जाना 487
17 मगध देश पर यादवों की विजय तथा मगधराज जरासंध की पराजय 491
18 गया, गोमती, सरयू एवं गंगा के तटवर्ती प्रदेश, काशी, प्रयाग एवं विन्‍ध्‍यदेश में यादव-सेना की यात्रा; श्रीकृष्‍ण के अठारह महारथी पुत्रों का हस्‍तलाघव तथा विवाह ;मथुरा, शूरसेन जनपदों एवं नन्‍द–गोकुल में प्रद्युम्न आदि का समादर 496
19 यादव-सेना का विस्‍तार; कौरवों के पास उद्धव का दूत के रूप में जाकर प्रद्युम्न का संदेश सुनाना; कौरवों के कटु उत्तर से रुष्‍ट यादवों की हस्तिनापुर पर चढ़ाई 500
20 कौरवों की सेना का युद्धभूमि में आना; दोनों ओर के सैनिकों का तुमुल युद्ध और प्रद्युम्न के द्वारा दुर्योधन की पराजय 503
21 कौरव तथा यादव वीरों का घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्‍ण का प्रकट होकर उनमें मेल कराना 507
22 अर्जुन सहित प्रद्युम्न का कालयवन-पुत्र चण्‍ड को जीतकर भारतवर्ष के बाहर पूर्वोत्तर दिशा की ओर प्रस्‍थान 511
23 यादव-सेना का बाणासुर से भेंट लेकर अलकापुरी को प्रस्‍थान तथा यादवों और यक्षों का युद्ध 503
24 यादव सेना और यक्ष सेना का घोर युद्ध 519
25 प्रद्युम्न का एक युक्ति के द्वारा गणेशजी को रणभूमि से हटाकर गुह्यक सेना पर विजय प्राप्‍त करना और कुबेर का उनके लिये बहुत-सी भेंट-सामग्री देकर उनकी स्‍तुति करना; फिर प्राग्‍ज्‍योतिषपुर में भेंट लेकर प्रद्युम्न का विरोधी वानर द्विविद को किष्किन्‍धा में फेंक देना 523
26 किम्‍पुरुष वर्ष के रंगवल्‍लीपुर में किम्‍पुरुषों द्वारा हरिचरित्र का गान; वहां के राजा द्वारा भेंट पाकर यादव सेना का आगे जाना; मार्ग में अजगररूपधारी शापभ्रष्‍ट गन्‍धर्व का उद्धार; वसन्‍त तिल का पुरी के राजा श्रृंगार तिलक को पराजित करके प्रद्युम्न का हरिवर्ष के लिये प्रस्‍थान 532
27 प्रद्युम्न द्वारा गरुडास्‍त्र का प्रयोग होने पर गीधों के आक्रमण से यादव-सेना की रक्षा; दशार्ण देश पर विजय तथा दशार्ण मोचन तीर्थ में स्‍न्नान 532
28 उत्तर कुरु वर्ष पर यादवों की विजय; वाराहीपुरी में राजा गुणाकर द्वारा प्रद्युम्न का समादर 534
29 प्रद्युम्न की हिरण्‍मयवर्ष पर विजय; मधुमक्खियों और वानरों के आक्रमण से छुटकारा; राजा देवसख से भेंट की प्राप्ति तथा चन्‍द्रकान्‍ता नदी में स्‍न्नान 538
30 रम्‍यक वर्ष में कलंक राक्षस पर विजय; नै:श्रेयसवन, मानवी नगरी तथा मानव गिरि का दर्शन; श्राद्धदेव मनु द्वारा प्रद्युम्न की स्‍तुति 540
31 रम्‍यक वर्ष में मन्‍मथशालिनी पुरी के लोगों द्वारा श्रीकृष्‍ण लीला का गान; प्रजापति व्‍यति संवत्‍सर द्वारा प्रद्युम्न का पूजन; कामवन में प्रद्युम्न का अपने कामदेव- स्‍वरूप में विलय 543
32 भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा के द्वारा प्रद्युम्न का पूजन तथा स्‍तवन; यादव-सेना की चन्‍द्रावती पुरी पर चढ़ाई; श्री कृष्‍ण कुमार वृक के द्वारा हिरण्‍याक्ष-पुत्र हृष्‍ट का वध 547
33 संग्रामजित के हाथ से भूत-संतापन का वध 550
34 अनिरुद्ध के हाथ से वृक दैत्‍य का वध 554
35 साम्‍ब द्वारा कालनाभ दैत्‍य का वध 547
36 दीप्तिमान द्वारा महानाभ का वध 558
37 श्रीकृष्‍ण-पुत्र भानु के हाथ से हरिश्‍मश्रु दैत्‍य का वध 559
38 प्रद्युम्न और शकुनि के घोर युद्ध का वर्णन 561
39 शकुनि के मायामय अस्‍त्रों का प्रद्युम्न द्वारा निवारण तथा उनके चलाये हुए श्रीकृष्‍णास्‍त्र से युद्धस्‍थल में भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रादुर्भाव 564
40 शकुनि के जीवस्‍वरूप शुक का निधन 568
41 शकुनि का घोर युद्ध, सात बार मारे जाने पर भी उसका भूमि के स्‍पर्श से पुन: जी उठना; अन्‍त में भगवान श्रीकृष्‍ण द्वारा युक्तिपूर्वक उसका वध 571
42 श्रीकृष्‍ण का यादवों के साथ चन्‍द्रावतीपुरी में जाकर शकुनि-पुत्र को वहां का राज्‍य देना तथा शकुनि आदि के पूर्व जन्‍मों का परिचय 574
43 इलावृत वर्ष में राजा शोभन से भेंट की प्राप्ति; स्‍वायम्‍भुव मनु की तपोभूमि में मूर्तिमती सिद्धियों का निवास; लीलावतीपुरी में अग्न‍िदेव से उपायन की उपलब्धि; वेदनगर में मूर्तिमान वेद, राग, ताल, स्‍वर, ग्राम और नृत्‍य के भेदों का वर्णन 576
44 रागिनियों तथा राग पुत्रों के नाम और वेद आदि के द्वारा भगवान का स्‍तवन 579
45 रागिनियों तथा राग-पुत्रों द्वारा भगवान श्रीकृष्‍ण का स्‍तवन और उनका द्वारकापुरी के लिये प्रस्‍थान 582
46 यादवों और गन्‍धर्वों का युद्ध, बलभद्रजी का प्राकटय, उनके द्वारा गन्‍धर्व सेना का संहार, गन्‍धर्वराज की पराजय, वसन्‍तमालती नगरी का हल द्वारा कर्षण; गन्‍धर्वराज का भेंट लेकर शरण में आना और उन पर बलराम जी की कृपा 585
47 यादव सेना के साथ शक्रसख का युद्ध और उसकी पराजय 564
48 शक्रसख का प्रद्युम्न को भेंट अर्पण, प्रद्युम्न का लीलावतीपुरी के स्‍वयंवर में सुन्‍दरी को प्राप्‍त करना तथा इलावृत वर्ष से लौटकर भारत एवं द्वारकापुरी में आना 590
49 राजसूय यज्ञ में ऋषियों, ब्राह्मणों, राजाओं, तीर्थों, क्षेत्रों, देवगणों तथा सुहृद् सम्‍बन्धियों का शुभागमन 594
50 राजसूय यज्ञ का मंगलमय उत्‍सव; देवताओं, ब्राह्मणों तथा अतिथियों का दान-मान से सत्‍कार 585
बलभद्र खण्‍ड
1 श्री बलभद्र जी के अवतार का कारण 597
2 श्री बलभद्र जी के अवतार की तैयारी 599
3 ज्‍योतिष्‍मती का उपाख्‍यान 601
4 रेवती का उपाख्‍यान 603
5 श्रीबलराम और श्रीकृष्‍ण का प्राकटय 607
6 प्राडविपाक मुनि के द्वारा श्रीराम - कृष्‍ण की व्रजलीला का वर्णन 610
7 श्रीराम-कृष्‍ण की मथुरा-लीला का वर्णन 612
8 श्रीराम-कृष्‍ण की द्वारका-लीला का वर्णन 615
9 श्री बलराम जी की रासलीला का वर्णन 618
10 श्री बलभद्र जी की पूजा-पद्धति और पटल 620
11 श्री बलराम-स्‍तोत्र 623
12 श्री बलराम-कवच 624
13 बलभद्र सहस्‍त्रनाम 625
विज्ञान खण्‍ड
1 द्वारका में वेदव्‍यासजी का आगमन और उग्रसेन द्वारा उनका स्‍वागत-पूजन 585
2 व्‍यास जी के द्वारा गतियों का निरूपण 649
3 सकाम एवं निष्‍काम भक्ति योग का वर्णन 651
4 भक्त-संत की महिमा का वर्णन 552
5 भक्ति की महिमा का वर्णन 655
6 मन्दिर निर्माण तथा विग्रह प्रतिष्‍ठा एवं पूजा की विधि 556
7 नित्‍यकर्म और पूजा-विधि का वर्णन 585
8 पूजा-विधि का वर्णन 660
9 पूजोपचार तथा पूजन प्रकार का वर्णन 661
10 परमात्‍मा का स्‍वरूप-निरूपण 667
अश्‍वमेध खण्‍ड
1 अश्‍वमेध-कथा का उपक्रम; गर्ग वज्रनाभ संवाद 671
2 श्रीकृष्‍णावतार की पूर्वार्द्धगत लीलाओं का संक्षेप से वर्णन 674
3 जरासंध के आक्रमण से लेकर पारि‍जात-हरण तक की श्रीकृष्‍ण लीलाओं का संक्षि‍प्‍त वर्णन 677
4 पारि‍जात हरण 679
5 देवराज और उसकी देवसेना के साथ श्रीकृष्‍ण का युद्ध तथा वि‍जयलाभ; पारि‍जात का द्वारकापुरी में आरोपण 681
6 श्रीकृष्‍ण के अनेक चरि‍त्रों का संक्षेप से वर्णन 684
7 देवर्षि‍ नारद का ब्रह्मलोक से आगमन; राजा उग्रसेन द्वारा उनका सत्‍कार; देवर्षि‍ द्वारा अश्‍वमेध यज्ञ की महत्ता का वर्णन; श्रीकृष्‍ण की अनुमति‍ एवं नारद जी द्वारा अश्‍वमेध यज्ञ की वि‍धि‍ का वर्णन 686
8 यज्ञ के योग्‍य श्‍यामकर्ण अश्‍व का अवलोकन 689
9 गर्गाचार्य का द्वारकापुरी में आगमन तथा अनि‍रूद्ध का अश्‍वमेधीय अश्‍व की रक्षा के लि‍ए कृतप्रति‍ज्ञ होना 690
10 उग्रसेन की सभा में देवताओं का शुभागमन; अनि‍रूद्ध के शरीर में चन्‍द्रमा और ब्रह्मा का वि‍लय तथा राजा और रानी की बातचीत 692
11 ऋत्‍वि‍जों का वरण-पूजन; श्‍यामकर्ण अश्‍व का आनयन और अर्चन; ब्राह्मणों को दक्षि‍णादान; अश्‍व के भालदेश में बँधे हुए स्‍वर्णपत्र पर गर्गजी के द्वारा उग्रसेन के बल-पराक्रम का उल्‍लेख तथा अनि‍रूद्ध को अश्‍व की रक्षा के लि‍ए आदेश 694
12 अश्र्वमोचन तथा उसकी रक्षा के लि‍ये सेनापति‍ अनि‍रूद्ध का वि‍जयाभि‍षेक 697
13 अनि‍रूद्ध का अन्‍त:पुर से आज्ञा लेकर अश्व की रक्षा के लि‍ये प्रस्‍थान; उनकी सहायता के लि‍ये साम्‍ब का कृतप्रति‍ज्ञ होना; लक्ष्‍मणा का उन्‍हें सम्‍मुख युद्ध के लि‍ये प्रोत्‍साहन देना; श्रीकृष्‍ण के भाइयों और पुत्रों का भी श्रीकृष्‍ण की आज्ञा से प्रस्‍थान करना तथा यादवों की चतुरंगि‍णी सेना का वि‍स्‍तृत वर्णन 698
14 अनिरुद्ध का सेना सहित अश्व की रक्षा के लिए प्रयाण, माहिष्मतीपुरी के राजकुमार का अश्व को बांधना तथा अनिरुद्ध का राजा इंद्रनील से युद्ध के लिए उद्यत होना 702
15 अनिरुद्ध और साम्बका शौर्य, माहिष्मती नरेश पर इनकी विजय 705
16 चम्पावतीपुरी के राजा द्वारा अश्व का पकड़ा जाना, यादवों के साथ हेमांगद के सैनिकों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और श्रीकृष्ण पुत्रों के शौर्य से पराजित राजा का उनकी शरण में आना 707
17 स्त्री राज्य पर विजय और वहां की कुमारी रानी सुरूपा का अनिरुद्ध की प्रिया होने के लिए द्वारका को जाना 710
18 राक्षस भीषण द्वारा यज्ञीय अश्व का अपहरण तथा विमान द्वारा यादव–वीरों की उपलंका पर चढ़ाई 713
19 यादवों और निशाचरों का घोर युद्ध, अनिरुद्ध और भीषण की मूर्च्छा तथा चेतना एवं रणभूमि में बक का आगमन 715
20 बक और भीषण की पराजय तथा यादवों का घोड़ा लेकर आकाश मार्ग से लौटना 717
21 भद्रावतीपुरी तथा राजा योवनाश्व पर अनिरुद्ध की विजय 720
22 यज्ञ के घोड़े का अवन्तीपुरी में जाना और वहां अवन्ती नरेश की ओर से सेना सहित यादवों का पूर्ण सत्कार होना 721
23 अनिरुद्ध के पूछने पर सान्दीपनि द्वारा श्री कृष्ण–तत्त्व का निरूपण, श्रीकृष्ण की परब्रह्मता एवं भजनीयता का प्रतिपादन करके जगत से वैराग्य और भगवान के भजन का उपदेश 723
24 अनुशाल्व और यादव वीरों में घोर युद्ध 725
25 अनुशाल्व द्वारा प्रद्युम्न को उपहार सहित अश्व का अर्पण तथा बल्वल दैत्य द्वारा उस अश्व का अपहरण 728
26 नारदजी के मुख से बल्वल के निवास स्थान का पता पाकर यादवों का अनेक तीर्थों में स्नान–दान करते हुए कपिलाश्रम तक जाना और वहां कपिल मुनि को प्रणाम करके सागर के तट पर सेना का पड़ाव डालना 730
27 यादवों द्वारा समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण 732
28 यादवों का पांचजन्य उपद्वीप में जाना, दैत्यों की परस्पर मंत्रणा, मयासुर का बल्वल को घोड़ा लौटा देने के लिए सलाह देना, परंतु बल्वल का युद्ध के निश्चय ही अडिग रहना 730
29 यादवों और असुरों का घोर संग्राम तथा ऊर्ध्वकेश एवं अनिरुद्ध का द्वंद्व युद्ध 736
30 उर्ध्वकेश और अनिरुद्ध का तथा नद और गद का घोर युद्ध, उर्ध्वकेश और नद का वध 739
31 वृक द्वारा सिंह का और साम्ब द्वारा कुशाम्ब का वध 742
32 मय को बल्वल का समझाना, बल्वल की युद्ध घोषणा, समस्त दैत्यों का युद्ध के लिए निर्गमन, विलम्ब के कारण सैन्यपाल के पुत्र का वध तथा दु:खी सैन्य पाल को मंत्रीपुत्रों का विवेकपूर्वक धैर्य बंधाना 744
33 श्रीकृष्ण की कृपा से दैत्य राजकुमार कुनंदन के जीवन की रक्षा 747
34 दैत्यों और यादवों का घोर युद्ध, बल्वल, कुनंदन तथा अनिरुद्ध के अद्भुत पराक्रम 751
35 बल्वल के चारों मंत्रीकुमारों का वध, बल्वल द्वारा मायामय युद्ध तथा अनिरुद्ध के द्वारा उसकी पराजय 754
36 श्रीकृष्ण पुत्र सुनंदन द्वारा दैत्यपुत्र कुनंदन का वध 758
37 भगवान शिव का अपने गणों के साथ बल्वल की ओर से युद्धस्थल में आना और शिवगणों तथा यादवों का घोर युद्ध, दीप्तिमान का शिवगणों को मार भगाना और अनिरुद्ध का भैरव को जृम्भणास्त्र से मोहित करना 761
38 नन्दिकेश्वर द्वारा सुनंदन का वध, भगवान शिव के त्रिशूल से आहत हुए अनिरुद्ध की मूर्च्छा, साम्ब द्वारा शिव की भर्त्सना, साम्ब और शिव का युद्ध तथा रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का शुभागमन 764
39 भगवान शंकर द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन, शिव और श्रीकृष्ण की एकता, श्रीकृष्ण द्वारा सुनंदन, अनिरुद्ध एवं अन्य सब यादवों को जीवनदान देना तथा बल्वल द्वारा यज्ञ संबंधी अश्व का लौटाया जाना 761
40 यज्ञ संबंधी अश्व का ब्रजमंडल में वृंदावन के भीतर प्रवेश, श्रीदामा का उसे बांधकर नंदजी के पास ले जाना, नंदजी का समस्त यादवों और श्रीकृष्ण से सानंद मिलना, यादव सेना का वृंदावन में और श्रीकृष्ण का नंदपत्तन में निवास 770
41 श्रीराधा और श्रीकृष्ण का मिलन 773
42 रासक्रीड़ा के प्रसंग में श्रीवृंदावन, यमुना–पुलिन, वंशीवट, निकुंज भवन आदि की शोभा का वर्णन, गोप सुन्‍दरियों, श्यामसुंदर तथा श्रीराधा की छबि का चिंतन 775
43 श्रीकृष्ण का श्रीराधा और गोपियों के साथ विहार तथा मानवती गोपियों के अभिमानपूर्ण वचन सुनकर श्रीराधा के साथ उनका अन्तर्धान होना 782
44 गोपियों का श्रीकृष्ण को खोजते हुए वंशीवट के निकट आना और श्रीकृष्ण का मानवती राधा को त्याग कर अन्तर्धान होना 784
45 गोपांगनाओं द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए उनका आह्वान और श्रीकृष्ण का उनके बीच में आविर्भाव 787
46 श्रीकृष्ण के आगमन से गोपियों को उल्लास, श्रीहरि के वेणुगीत की चर्चा से श्रीराधा की मूर्च्छा का निवारण, श्रीहरि का श्रीराधा आदि गोप सुंदरियों के साथ वन विहार, स्थल विहार, जल विहार, पर्वत विहार और रास क्रीड़ा 789
47 श्रीकृष्ण सहित यादवों का व्रजवासियों को आश्वासन देकर वहां से प्रस्थान 792
48 अश्व का हस्तिनापुर में जाना, उसके भालपत्र को पढ़कर दुर्योधन आदि का रोषपूर्वक अश्व को पकड़ लेना तथा यादव सैनिकों का कौरवों को घायल करना 794
49 यादवों और कौरवों का घोर युद्ध 797
50 कौरवों की पराजय और उनका भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर भेंट सहित अश्व को लौटा देना 800
51 यादवों का द्वैतवन में राजा युधिष्ठिर से मिल कर घोड़े के पीछे–पीछे अन्यान्य देशों में जाना तथा अश्व का कौन्तलपुर में प्रवेश 804
52 श्यामकर्ण अश्व का कौन्तलपुर में जाना और भक्तराज चंद्रहास का बहुत सी भेंट सामग्री के साथ अश्व को अनिरुद्ध की सेवा में अर्पित करना और वहां से उन सबका प्रस्थान 807
53 उद्धव की सलाह से समस्त यादवों का द्वारकापुरी की ओर प्रस्थान तथा अनिरुद्ध की प्रेरणा से उद्धव का पहले द्वारकापुरी में पहुंचकर यात्रा का वृत्तांत सुनाना 809
54 वसुदेव आदि के द्वारा अनिरुद्ध की अगवानी, सेना और अश्व सहित यादवों का द्वारकापुरी में लौटकर सबसे मिलना तथा श्रीकृष्ण और उग्रसेन आदि के द्वारा समागत नरेशों का सत्कार 812
55 व्‍याजी का मुनि-दम्‍पति‍ तथा राज दम्‍पतियों को गोमती का जल लाने के लिए आदेश देना, नारदजी का मोह और भगवान द्वाराउस मोह का भंजन, श्रीकृष्‍ण की कृपा से रानियों का कलश में जल भरकर लाना 815
56 राजा द्वारा यज्ञ में विभिन्रन बन्धु-बान्धवों को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगना, श्रीकृष्‍ण का ब्राह्मणों के चरण पखारना, घी की आहुति से अग्निदेव को अजीर्ण होना, यज्ञपशु के तेज का श्रीकृष्‍ण में प्रवेश, उसके शरीर का कर्पूर के रूप में परिवर्तन, उसकी आहुति और यज्ञ की समाप्ति पर अवभृथ स्नान 819
57 ब्राह्मण भोजन, दक्षिणा-दान, पुरस्‍कार-वितरण, संबंधियों का सम्मान तथा देवता आदि सबका अपने अपने निवास स्‍‍थान को प्रस्‍थान 821
58 श्रीकृष्‍ण द्वारा कंस आदि का आवाहन और उनका श्रीकृष्‍ण को ही परमपिता बताकर इस लोक के माता-पिता से मिले बिना ही वैकुण्‍ठलोक को प्रस्‍थान 819
59 गर्गाचार्य के द्वारा राजा उग्रसेन के प्रति भगवान श्रीकृष्‍ण के सहस्त्रनामों का वर्णन 819
60 कौरवों के संहार, पाण्‍डवों के स्‍वर्गगमन तथा यादवों के संहार आदि का संक्षिप्‍त वृत्‍तान्‍त; श्रीराधा तथा व्रजवासियों सहित भगवान श्रीकृष्‍ण का गोलोकधाम में गमन 827
61 भगवान के श्‍यामवर्ण होने का रहस्‍य; कलियुग की पापमयी प्रवृत्‍ति; उससे बचने के लिये श्रीकृष्‍ण की समाराधना तथा एकादशी-व्रत का माहात्‍म्‍य 829
62 गुरु और गंगा की महिमा; श्रीवज्रनाभ द्वारा कृतज्ञता-प्रकाशन और गुरुदेव का पूजन तथा श्रीकृष्‍ण के भजन-चिन्‍तन एवं गर्ग संहिता का माहात्‍म्‍य 833
माहात्‍म्‍य
1 गर्ग संहिता के प्राकटय का उपक्रम 837
2 नारद जी की प्रेरणा से गर्ग द्वारा संहिता की रचना; संतान के लिये दु:खी राजा प्रतिबाहु के पास महर्षि शाण्‍डिल्‍य का आगमन 839
3 राजा प्रतिबाहु के प्रति महर्षि शाण्‍डिल्‍य द्वारा गर्गसंहिता के माहात्‍म्‍य और श्रवण-विधि का वर्णन 841
4 शाण्‍डिल्‍य मुनि का राजा प्रतिबाहु को गर्गसंहिता सुनाना; श्रीकृष्‍ण प्रकट होकर राजाको वरदान देना; राजाको पुत्र की प्राप्‍ति और संहिता का माहात्‍म्‍य 843

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