गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 53
उद्धव बोले- राजेंद्र ! आपका श्याम कर्ण अश्व निर्विघ्न लौट आया। अनिरुद्ध आदि श्रेष्ठ यादव भी कुशलपूर्वक आ गए हैं। गोविंद की कृपा से राजा इंद्रनील और हेमांगद आए हैं। स्त्री राज्य की साम्राज्ञी सुरूपा भी आ पहुँची हैं। भीषण सहित बक भी युद्ध में परास्त हुआ है। बिन्दु और अनुशाल्व– ये दो वीर अपने–अपने नगर से पधारे हैं। पाञ्चजन्य नामक उपद्वीप में असुरों सहित बल्वल को जीत लिया गया है। उस युद्ध में भगवान शंकर ने रुष्ठ होकर अनिरुद्ध और सुनंदन का वध कर दिया था तथा और भी बहुत से यादव मार डाले थे, किंतु भगवान श्रीकृष्ण ने वहाँ पहुँचकर समस्त यादवों को जीवन दान दिया। अत: यह ध्यान देने योग्य है कि श्रीकृष्ण की कृपा से ही हम सब लोग कुशल लौटे हैं। समस्त कौरव परास्त हो गए और भीष्मजी हमारे साथ ही यहाँ पधारे हैं। हमने द्वैतवन में दुख पीड़ित पाण्डवों को देखा और व्रज में श्रीकृष्ण विरह से व्याकुल गोपगणों का भी दर्शन किया। जो बाल्यावस्था से ही भगवान श्रीकृष्ण का भक्त है, वह राजा चंद्रहास भी हमारे साथ यहाँ आया है और भी बहुत-से भूपाल आपके भय से यहाँ आए हैं । श्रीगर्गजी कहते हैं- महाराज ! उद्धवजी के मुख से इस प्रकार श्रीकृष्ण के गुणों का गान सुनकर यादवेश्वर उग्रसेन प्रेम से विह्वल हो कुछ बोल न सके। वे आनंद के महासागर में मग्न हो गए। उन्होंने उद्धव को मणिमय हार दिया। रत्न, वस्त्र, अंबिका, हाथी, घोड़े और रथ भी दिए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने शीघ्र ही उठकर हर्षोल्लास से पूरित हो भरी सभा में मित्र उद्धव से मिलकर उन्हें हृदय से लगा लिया। इसके बाद हर्ष से भरे हुए उग्रसेन ने गोविंद से कहा– श्रीकृष्ण तुम यादवों के साथ अनिरुद्ध को ले आने के लिए जाओ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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