गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 53
अहो ! भगवान विष्णु की माया से सब देवता भी मोहित रहते हैं। कुबेर, ब्रह्मा और इंद्र आदि भी जब भगवान की माया से मोहित हो जाते हैं तब भूतल के साधारण मनुष्यों की तो बात ही क्या है। इंद्र ने वहाँ जाकर वृष्णिवंशियों की संपूर्ण सेना का निरीक्षण किया, वह सेना प्रलयकाल के समुद्र की भाँति भयंकर तथा करोड़ों शूरवीरों से भरी हुई थी। यादवों की उस अद्भट एवं विशाल सेना को देखकर इंद्र डर गए। राजन् ! श्रीकृष्ण के भय से देवेंद्र अविलम्ब इन्द्रावती पुरी को लौट गए। यह भगवान श्रीकृष्ण की कृपा थी, जिससे उन्होंने युद्ध की आशा छोड़कर चुपचाप बैठे रहने की नीति अपनाई । अनेक चतुरंगिणी टुकड़ियों से युक्त हो यात्रा करती हुई महात्मा अनिरुद्ध की वह विशाल सेना हाथियों, रथों, घोड़ों और पैदल वीरों के द्वारा स्वर्गलोक में इंद्र की सेना के समान सुशोभित हो रही थी। संपूर्ण हाथी अलग हो गए, रथ, घोड़े और पैदल भी अलग–अलग होकर चलने लगे। श्रीकृष्ण के पुत्रगण हर्षोल्लास से भर कर द्वारका के पथ का अनुसरण कर रहे थे। वे जम्बूद्वीप के विजेता थे और लोक–परलोक दोनों पर विजय पाना चाहते थे। राजन् ! वे श्रेष्ठ यादव अग्रगामी वाहन–श्याम कर्ण अश्व को आगे करके भाँति-भाँति के बाजे बजाते तथा नाच गान आदि उत्सव करते हुए जा रहे थे । नरेश्वर ! साम्ब आदि श्रीकृष्ण पुत्रों तथा इंद्रनील एवं चंद्रहास आदि सहस्रों भूपालों से विभूषित हो अनिरुद्ध ने आनर्तदेश में प्रवेश करके साम्ब की अनुमति से उद्धवजी को द्वारका भेजा, अभी वह पुरी वहाँ से दो योजन दूर थी। उनके द्वारा इस प्रकार प्रेरित हो उद्धवजी उन रुक्मवती कुमार अनिरुद्ध को नमस्कार करके शीघ्र ही एक शिविका पर आरूढ़ हुए और हर्षपूर्वक पुरी की ओर चल दिए, जहाँ मुनियों से घिरे हुए महाराज उग्रसेन सभा मंडप से भूषित श्रेष्ठ पिण्डारक क्षेत्र में निवास करते थे। राजन् ! जहाँ वसुदेव आदि बलराम और श्रीकृष्ण आदि तथा बलवान प्रद्युम्न आदि प्रतिदिन यज्ञ की रक्षा करते थे। वहाँ उद्धवजी राजसभा में गए। उन्होंने यादवेंद्र उग्रसेन को प्रणाम करके वसुदेव, बलराम, श्रीकृष्ण तथा प्रद्युम्न आदि समस्त यादवों को यथा योग्य प्रणाम किया और उनके सामने खड़े हो गए। उन्हें देख कर सबका मन प्रसन्न हो गया। फिर उनके पूछने पर उद्धव ने सब वृत्तांत बताया । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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