गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 42
कोई तरुणी मध्या और कोई सुंदरी प्रगल्भा नायिका थी। कोई तरुणी 'तरुं नयति–इति तरुणी।' इस व्युत्पत्ति के अनुसार तरु को भी विनय शिक्षा देती थी। कोई सखी उस सुंदर वन में अपने मधुर हास की छटा बिखेरती थी और कोई मदमत्त होकर चलती थी। कोई उसे भी हाथ से ठोंककर आगे दौड़ जाती थी और कोई उसको भी पकड़कर उस निकुंज भवन में कमल के फूलों से पीटती थी। कोई किसी के ढीले या टूटते हुए सुवर्णहार को हंसी–हंसी में खींच लेती और कोई उस वन–विहार में इस तरह मतवाली होकर दौड़ती कि उसके बंधे हुए केशपाश खुल जाते थे। उस निकुंज–भवन में श्रीजाह्नवी (गंगा), मधु–माधवी, शीला, रमा, शशिमुखी, विशाखा और माया आदि असंख्य गोपियां थीं। मैंने यहाँ थोड़ी–सी गोपांगनाओं के ही नाम बताए हैं। वहाँ की मणिमयी भूमियों पर कोई लीलाछत्र लेकर और कोई अतिमौक्तिक लता (मौगरा आदि) के फूलों की मालाएँ लेकर चलती थीं। कितनी ही सखियाँ चामर, व्यजन, दण्ड और फहराती हुई पीली पताकाएँ लिए चल रही थीं। कुछ गोपांगनाएँ वहाँ श्री हरि (नटवर नंदकिशोर) का वेषधारण करके नाचती थीं। कोई हाथ में वीणा लेकर बजाती, कोई हाथ से ताल देती और कोई मृदंगवादन की कला दिखाती थी। कितनी ही सखियाँ वृषभानुनंदिनी का सा वेष धारण किए, केयूर और कुण्डलों से अलंकृत हो बंशी लेकर बजातीं और कई मणिमण्डित बेंत की छड़ी हाथ में लेकर चलती थीं। सुंदर हाव–भाव, रस और ताल से युक्त मंद मुस्कान के रस से सिक्त तथा झंकारते हुए नूपुरों के शब्द से युक्त विशद कटाक्षों, भौहों के कुटिल विलासों एवं संगीत नृत्यकला के ज्ञानों द्वारा गोपांगनाएँ वहाँ श्रीराधा तथा माधव को सतत संतुष्ट कर रही थीं। यमुना के तट पर उस निकुंज भवन में बंशीवट के पास की वनभूमि के निकट नटवर वेषधारी नंदनंदन श्रीकृष्ण श्रीराधा के साथ गिरिराज की घाटी में विचर रहे हैं। इस झांकी में तुम उनका चिंतन करो । श्री पद्मरागमणि समान अरुण आभा वाले चमकीले नखों से जिनके चरणारविंद उद्दीप्त जान पड़ते हैं, जो अपने पैरों में झंकारते हुए नूपुर धारण किए हुए हैं, जिनके संपूर्ण अंगदेश से दिव्य दीप्ति झर रही है, जो विचरण काल में अपने लाल–लाल पादतलों से भूप्रदेश को अरुण रंग से रंजित कर रहे हैं, शोभाशाली चरण पराग की सुंदर कांति बिखेरते हुए इधर–उधर टहल रहे हैं, जिनका युगल जानुदेश लक्ष्मीजी के करकमलों द्वारा सब ओर से लालित होता–दुलारा जाता है, जिनके रंभा के समान जांघों पर पीताम्बर शोभा पाता है, जिनका उदर भाग अत्यंत कृश है, नाभि सरोवर रोमावलि रूपी भ्रमरों से सुशोभित है, जो उदर में त्रिवेणीमयी तीन रेखा धारण करते हैं, जिनका वक्ष:स्थल भृगु के चरणचिह्न तथा कौस्तुभमणि से अलंकृत है, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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