गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 42
नरेश्वर ! श्रीहरि के वेणुवादन से निकला हुआ गीत अत्यंत प्रेमोन्माद की वृद्धि करने वाला था। उसे सुनकर समस्त व्रज सुंदरियों का मन प्रियतम श्रीकृष्ण के वश में हो गया। वे घर का सारा काम–काज छोड़कर व्रज में चली आईं। राजन् ! जिन्हें पतियों ने रोक लिया, वे भी प्रियतम श्रीकृष्ण के द्वारा हृदय हर लिए जाने के कारण स्थूल शरीर छोड़कर तत्काल श्रीकृष्ण के पास चली गई। इस पर सुनहरा दुकूल बिछा हुआ था, उस सिंहासन पर, उसके मध्यभाग में श्याम सुंदर नंदनंदन श्री सुंदरी राधिका के साथ बैठे थे। उनके गले में मकरन्दपूरित मालती की माला शोभा पा रही थी। उनकी अंगकांति स्याम थी। वे प्रात:काल के सूर्य के समान दीप्तिमान किरीट से सुशोभित थे। उनकी प्रभा चारों ओर फैल रही थी। अधर से लगी हुई श्री मुरली के कारण उन श्रीहरि की मनोहरता और भी बढ़ गई थी। वहाँ आई हुई व्रजसुंदरियों ने कोटि–कोटि कामदेव के समूहों को मोहित करने वाले पीताम्बरधारी श्याम सुंदर को देखा । राजन् ! मीनाकार कुण्डलधारी प्रिया–प्रियतम श्रीहरि को देखकर गोपियाँ तत्काल मूर्च्छित हो गईं। उनके अंगों में किसी प्रकार की चेष्टा नहीं दिखाई देती थी। तब श्रीकृष्ण ने अमृत के समान मधुर वचनों द्वारा उन सबको सान्त्वना दी– धीरज बँधाया। तब समस्त गोपसुंदरियों ने विरहजनित दु:ख का परित्याग कर प्राणवल्लभ गोविंद की ओर से बड़े प्यार से देखा। मालती वन से व्याप्त दिव्यवृक्षों एवं दिव्यलताओं के जाल से मंडित तथा भ्रमरों की गुञ्जारों से मुखरित शोभाशाली वृंदावन में साक्षात मदनमोहन देव श्रीहरि गोपांगनाओं के साथ विचरने लगे। अपने हस्तकमल से श्रीराधिका के करकमल को पकड़कर हँसते हुए साक्षात भगवान नंदनंदन यमुनाजी के तट पर आए। यमुना के किनारे शोभायमान निकुंज भवन में श्रीकृष्ण विराजमान हुए। राजन् ! मधुपति के उस भवन में श्रीकृष्णचंद्र के चरणारविंदों के चिंतन में संलग्न हुई गोपागंनाओं के पैरों में झनकारते हुए नूपुरों की ध्वनि के साथ खनखनाते हुए हाथ के कंगनों, पांव के मंजीरों और कटिप्रदेश की रत्ननिर्मित चंचल किंकिणियों के मधुर रव को तुम मन के कानों से सुनो । मंद–मंद मुस्कान की कांति से उन गोपसुंदरियों के कोमल कपोल प्रांत सुस्पष्ट चमकते या चमत्कारपूर्ण शोभा धारण करते थे। शोभामयी दंत पंक्ति से विद्युद् विलास–सा प्रकट करने वाली उन सखियों के वेष बड़े मनोहर थे। कोटीर रत्न के हार और हरितमणि के बाजूबंद से विभूषित तथा सूर्यमंडल के समान दीप्तिमान कुण्डलों से मण्डित हुई उन गोप सुंदरियों में कोई–कोई युवती मुग्धा बताई गई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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