गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 4
भक्त-संत की महिमा का वर्णन श्रीव्यासजी बोले- जो आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी तथा ग्रह-नक्षत्रों एवं तारागणों में भगवान श्रीकृष्ण की झांकी करते हुए बार-बार हर्षित होते हैं, करोड़ों काम देवों को मोहित करने वाले- राधा नायक सर्वात्मा नन्दनदन श्रीकृष्णचन्द्र उन भक्तों के सामने बोलते हुए दृष्टिगोचर होने लगते हैं। सदा आनन्द स्वरूप उन भगवान दर्शन प्राप्त करके वे अत्यन्त हर्ष से भर जाते हैं और ठहाका मारकर हंसने लगते हैं। वे कभी बोलते और कभी दौड़ लगाया करते हैं। कभी गाते, कभी नाचते और कभी चुप हो रहते हैं। भगवान विष्णु के उत्तम भक्त कृतकृत्य हो गये रहते हैं। वे भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप ही होते हैं। उनके दर्शन मात्र से मनुष्य कृतार्थ हो जाता हैं। काल अथवा यमराज- कोई भी उन्हें दण्ड देने में समर्थ नहीं होता। ऐसे भक्तों के वाम भाग में कौमोद की गदा, दक्षिण में सुदर्शन चक्र, आगे शार्ग्ड धनुष, पीछे बादल की भाँति गर्जने वाला पाच्चजन्य शंखनन्दन नाम की महान तलवार, शतचन्द्र नामक ढाल और अनेकों तीखे बाण- भगवान के ये सभी प्रधान-प्रधान आयुध रात-दिन सजग होकर उनकी रक्षा किया करते हैं। इसी प्रकार महान कमल उनके ऊपर बारंबार छाया करने के लिये प्रस्तुत रहता है। उन संतपुरुषों के श्रम को गरुड़जी पंखों की हवा से दूर करते हैं। जहां-जहाँ उपर्युक्त इन महात्मा पुरुषों का गमन होता है, वहाँ वहाँ स्वयं श्रीहरि पधारते हैं और अपने शोभायुक्त चरण कमलों के पराग से उस भू-भाग को तीर्थ बना देते हैं। जहाँ संतजन एक क्षण भी ठहरते हैं, वहाँ तीर्थों का निवास हो जाता है। यदि उस स्थान पर किसी पापी का भी देहावसान हो जाय तो उसे भगवान श्रीकृष्ण इष्ट हैं, उनको दूर से ही देखकर आधि-व्याधि, भूत, प्रेत और पिशाच दसों दिशाओं में भाग खड़े होते हैं। अनपेक्ष साधु दसों दिशाओं में भाग खड़े होते हैं। अनपेक्ष व्यवधान भी सब जगह मार्ग दे देते हैं। जो साधु हैं, ज्ञान में निष्ठा रखने वाले हैं, जिनका विषयों से विराग हो चुका है, जिनकी जगत में किसी से शत्रुता नहीं होती- ऐसे महात्मा पुरुषों का दर्शन पुण्यहीन मनुष्यों के लिये अत्यन्त कठिन है। भगवान श्रीकृष्ण का भक्त जिस कुल में उत्पन्न होता है, वह कुल स्वयं मलिन ही क्यों न हो, उसे तुम ब्राह्मणवंश की भांति अत्यन्त निर्मल समझो। राजन्। भगवान श्रीकृष्ण का भक्त तो अपने पितृलोक के दस पुरुषों को तार देता है। इतना ही नहीं, उसके मातृ-कुल तथा पत्नी कुल की भी दस-दस पीढियां नरक यातना एवं पापों के बन्धन से मुक्त हो जाती हैं। महात्मा पुरुषों के सम्बन्धी, पोष्य वर्ग, नौकर, सुहज्जन, शत्रु, भार ढोने वाले, घर में रहने वाले पक्ष, चीटियां, मच्छर तथा कीट-पंतग भी सभी पावन बन जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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