गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 29
उसके बाद डिण्डिभ देश आया, जहाँ हाथियों के समान मुख वाले लोग दिखायी दिये। इस प्रकार अनेक देशों का दर्शन करते हुए श्रीकृष्णकुमार त्रिश्रृंग देश में गये। वहाँ भी उन्होंने श्रृंगधारी मनुष्य देखे। जिसमें सोने के पास स्वर्ण चर्चिका नाम की नगरी थी। जिसमें सोने के महल शोभा पाते थे। वह दिव्यपुरी रत्न निर्मित परकोटों से सुशोभित थी। मंगल की निवासभूता वह नगरी चन्द्रकान्ता नदी के तट पर विराजमान थी। राजन् ! जैसे इन्द्र अमरावतीपुरी में प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार प्रद्युम्न ने उस पुरी में पदार्पण किया। जैसे नागों और नागकन्याओं से भोगवतीपुरी की शोभा होती है, उसी प्रकार विद्युत की-सी दीप्ति वाले सुवर्ण सदृश गौरवर्ण के स्त्री पुरुषों से वह स्वर्ण चर्चित का नगरी सुशोभित थी। वहाँ के बलवान राजा महावीर देवसख नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने मेरे मुंह से यादव-सेना के बल का वृत्तान्त सुनकर भेंट की सुवर्णमय सामग्री ले, बड़े भक्ति भाव से प्रद्युम्न का पूजन किया। महाबाहु भगवान प्रद्युम्न हरि ने उनसे पूछा-‘आप सब लोगों की शोभा चन्द्रमा के समान है यह मुझे शीघ्र बताइये। देवसख बोले- यदूत्तम ! पितरों के स्वामी अर्यमा ने कूर्मरूपधारी भगवान लक्ष्मीपति के दोनों चरणों का जिस जल से प्रक्षालन किया, उस चरणोदक से एक महानदी प्रकट हो गयी, जो श्वेत-पर्वत के शिखर से नीचे को उतरती है। एक समय की बात है- मनु के पुत्र प्रमेधा को उनके गुरु ने गौओं की रक्षा का कार्य सौंपा था। उन्होंने रात्रि के समय सिंह की आशक्ड़ा से तलवार चलाकर बिना जाने एक कपिला गौ का वध कर दिया। तब गुरुवार वसिष्ठ के शाप से वे शूद्रत्व को प्राप्त हो गये और उनका शरीर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। तब वे तीर्थों में विचरने लगे। इस नदी में स्न्नान करके वे मनु पुत्र गलित कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये और उनके शरीर की कान्ति चन्द्रमा के समान हो गयी। तभी से हिरण्मय वर्ष के भीतर यह नदी ‘चन्द्रकान्ता’ नाम से प्रसिद्ध हुई। जब से भीतर यह नदी ‘चन्द्रकान्ता नदी में स्न्नान करके गलित-कुष्ठ से मुक्त हुए, तब से हम सब लोग नियमपूर्वक इस नदी में स्न्नान करने लगे। नृपोत्तम ! यही कारण है कि इस पृथ्वी पर हम लोग चन्द्रमा के तुल्य रूप वाले हैं, इसमें संशय नहीं है। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! यह सुनकर महाबाहु प्रद्युम्न ने यादवों के साथ चन्द्रकान्ता नदी में स्न्नान करके अनेक प्रकार के दान दिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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