गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 23
यादव-सेना का बाणासुर से भेंट लेकर अलकापुरी को प्रस्थान तथा यादवों और यक्षों का युद्ध शिव ने कहा- असुरराज ! साक्षात परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण स्वयं असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति, गोलोक के स्वामी तथा परात्पर परमात्मा हैं। हम तीनों- बह्मा, विष्णु और शिव-उन्हीं की कला हैं और उनकी आज्ञा को सदा अपने मस्तक पर धारण करते है; फिर तुम जैसे सामान्य कोटि के जीवों की तो बात ही क्या। उन्हीं के पौत्र अनिरुद्ध को तुमने बांध लिया था, जिसके कारण उन्होंने अपने प्रभाव से संग्राम में तुम्हारी भुजाएँ काट डाली थीं। क्या उन श्रीहरि को तुम नहीं जानते ? अत: तुम दानवों लिये श्रीहरि के पुत्र पूजनीय हैं। अनिरुद्ध तो तुम्हारे दामाद ही हैं; अत: तुम्हारे लिये उनके पूजनीय होने में तो कोई संशय नहीं हैं। असुर पुंगव ! मैं तुम्हें युद्ध के लिये आज्ञा नहीं देता। यदि नहीं मानोगे तो अपने बल से युद्ध करो परंतु तुम्हारे मन का युद्ध-विषय संकल्प मुझे तो व्यर्थ ही दिखायी देता है। नारदजी कहते हैं- राजन् ! भगवान शिव के समझाने पर बाणासुर ने अनिरुद्ध को बुलाकर उनका पूजन किया और दहेज दिया। फिर सेना सहित प्रद्युम्न का बन्धु के समान सादर पूजन करके महाबाहु बाण ने उन महात्मा को दस हजार हाथी, पांच लाख रथ तथा एक करोड़ घोडे़ भेंट में दिया । महाराज ! तदनन्तर धनुर्धर श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न अपने यादव सैनिकों के साथ गुह्यकों से मण्डित अलकापुरी को गये। नन्दा और अलकनन्दा ये दो गंगाऍ परिखा (खाईं) की भाँति उस पुरी को घेरे हुए हैं। वहाँ वे दोनों नदियां रत्नों की बनी हई सीढ़ियों से युक्त हैं। वह पुरी यक्ष वधुओं से सुशोभित हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |