गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 16
वहाँ के ब्राह्मण गोपीचन्द की मुद्राओं से चर्चित, शान्तस्वरूप तथा ऊर्ध्वपुण्डाधारी थे। उनके अंगों पर हरिमन्दिर के चित्र अंकित थे। कितने ही लोगों ने मस्तक पर धनुष और बाण के चित्र तथा हृदय में नन्दक नामक खड्ग, मुसल और हल के चिन्ह धारण कर रखे थे । राजन् ! तदनन्तर प्रद्युम्न ने देखा- वहाँ की गली-गली में कुछ मुनष्य भागवत सुन रहे हैं। दूसरे लोग हरिवंश और महाभारत नामक इतिहास श्रवण कर रहे हैं। कुछ लोग सनत्कुमार संहिता, पराशर संहिता, गर्ग संहिता, पौलस्त्य संहिता और धर्म संहिता आदि का पाठ कर रहे हैं। ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण, लिंगपुराण, गरुड़पुराण, नारदीयपुराण, भगवतपुराण, अग्निपुराण, वामनपुराण, नारदीयपुराण, भागवतपुराण, अग्निपुराण, स्कन्दपुराण, भविष्णपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, वामनपुराण, मार्कण्डेयपुराण, वाराहपुराण, मत्स्यपुण, कूर्म पुराण तथा ब्रह्मण्डपुराण- इन सब पुराणों को गली-गली में, घर-घर में वहाँ के सब लोग सुनते थे। कुछ लोग श्रीरामचरणामृत से पूर्ण वाल्मीकि के महाकाव्य रामायण का पाठ करते थे। कुछ लोग स्मृतियों के और कुछ ब्राह्मण वेदत्रयी के स्वाध्याय में लगे थे। कुछ लोग मंगलधाम वैष्णव यज्ञ का अनुष्ठान करते थे। कितने ही मनुष्य राधाकृष्ण, कृष्ण-कृष्ण आदि नामों का बारंबार कीर्तन करते थे। कुछा लोग हरिकीर्तन में तत्पर रहकर नाचते और गाते थे। वहाँ के प्रत्येक मन्दिर में मृदंग ताल, झाँझ और वीणा आदि मनोहर वाद्यों के साथ लोगों द्वारा किया जाने वाला हरिकीर्तन सुनायी पड़ता था। राजन् ! मिथिला के घर-घर में वहाँ के निवासी प्रेमलक्षणा नवधाभक्ति करते थे। इस प्रकार नगरी का दर्शन करके भगवान प्रद्युम्न हरि ने राजद्वार पर पहुँचकर शीघ्र ही मैथिलेश की सभा में वेदव्यास, शुकमुनि, याज्ञवल्क्य, वसिष्ठ, गौतम, मैं और बृहस्पति बैठे थे। दूसरे भी धर्म के वक्ता तथा हरिनिष्ठ मुनि वहाँ मूर्तिमानवेद की भाँति इधर-उधर बैठे दिखायी देते थे। नरेश्वर मैथिलेन्द्र धृति वहाँ भक्तिभाव नतमस्तक होकर बलदेवजी की चरणपादुका की विधिवत पूजा कर रहे थे। वे श्रीकृष्ण और बलदेव के मुक्तिदायक नामों का जप भी करते जाते थे। शिष्य सहित ब्रह्मचारी को आया देख राजा ने उठकर नमस्कार किया। उनकी पाद्य आदि उपचारों से विधिवत पूजा करके मैथिलेश्वर राजा धृति दोनों हाथ जोड़कर उनके आगे खडे़ हो गये । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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