गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 17
श्रीभगवान बोले- शुभ्र ! तुमने अगवानी करके, विनयपूर्वक प्रेमभरी बातें सुनाकर, आश्वासन देकर व्रजेश्वरी श्रीराधा की भलीभाँति पूजा की है और वे अत्यन्त प्रसन्न हुई हैं; किंतु सुन्दरि ! आज श्रीराधा ने दुग्धपान नहीं किया। महामते ! इसीलिये अब तक उनके नेत्रों में नींद नहीं आयी है; और भीष्मनन्दिनि ! यही कारण है कि मैं भी नहीं सो सका हूँ। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! पतिदेवता की यह उत्तम बात सुनकर रुक्मिणी अपनी सौतों के साथ दूध लेकर बडे़ आदर से श्रीराधा के समीप गयीं। सोने के कटोरे में मिश्री मिलाया हुआ गरम दूध डालकर भीष्मकनन्दिनी ने बडे़ प्रेम से श्रीराधा को पिलाया। इस प्रकार विधिवत पूजा करके उनके हाथ में पान का बीड़ा दिया और सत्यभामा आदि सपत्नियों के साथ अपने शिविर में लौट आयीं। श्रीकृष्ण के समीप आकर शुभस्वरुपा श्रीरुक्मिणी अपने द्वारा की गयी दूध पहुँचाने और पिलाने की सेवा का वर्णन करते हुए साक्षात श्रीकृष्ण के चरणाविन्दों की सेवा में लग गयीं। अपने कोमल कर-पल्लवों से निरन्तर श्रीचरणों का लालन करती हुई रुक्मिणी श्रीकृष्ण के पाद-तल में नये छाले देख आश्चर्य से चकित हो उठीं। उन्होंने पूछा- ‘प्रभो ! आपके चरण-तलों में छाले कैसे उभड़ आये हैं ? भगवन ! ये आज ही उभडे़ हैं। मैं नहीं जानती कि इसका कारण क्या है। तब श्रीहरि ने राधा की भक्ति को प्रकाशित करने के लिय सोलह हजार रानियों के सामने स्वयं रुक्मिणी से कहा। श्रीभगवान बोले- श्रीराधिका के हृदयारविन्द में मेरा चरणारविन्द सदा विराजमान रहता है; उनके प्रेमपाश में बंधकर वह निरन्तर वहीं रहता है, कभी निमेषमात्र के लिये भी अलग नहीं होता। आज तुम लोगों ने उन्हें कुछ अधिक गरम दूध पिला दिया है। वह दूध मेरे पैरों पर पड़ा और उनमें छाले पड़ गये। तुम सबने उन्हें थोड़ा गरम दूध नहीं दिया, अधिक गरम दूध दे दिया। श्रीनारदजी कहते हैं- नरेश्वर ! श्रीकृष्ण की बात सुनकर रुकिमणी आदि सुन्दरियां बडे़ प्रेम से उनके पैर सहलाने लगी और उन्हें सब ओर से बड़ा विस्मय हुआ। वे परस्पर कहने लगीं। ‘मधुसूदन माधव मे श्रीराधा की प्रीति बहुत ही उच्च कोटि की है। उनकी समानता करने वाली कोई स्त्री नहीं है। ये श्रीराधा इस भूतल पर अद्वितीय नारी है’। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में द्वारका खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में सिद्धाश्रम में श्रीराधाकृष्ण समागम के प्रसंग में ‘श्रीराधा के प्रेम का प्रकाश’ नामक सत्रहवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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