गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 17
श्रीराधा बोलीं- बहिनों ! जैसे चन्द्रमा एक है, किंतु उससे स्नेह रखने वाले चकोर बहुत है, जैसे सूर्य एक हैं, किंतु उन्हें देखने वाली दृष्टियां बहुत हैं, उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्णचन्द्र एक हैं, किंतु इनमें भक्ति भाव रखने वाली हम सब बहुत-स्त्रियां हैं। जैसे कमल के प्रभाव को भ्रमर जानता है तथा रत्न के प्रभाव को उसकी परख करने वाला जौहरी जानता है, जैसे विद्या के प्रभाव को विद्वान और काव्य के प्रभाव को कवीन्द्र जानता है, जैसे सहस्त्रों मनुष्यों के होने पर भी रस के प्रभाव को केवल रसिक जानता है, उसी प्रकार, हे राजकुमारियों ! इस भूतल पर श्रीकृष्ण के प्रभाव को यथार्थ रूप से इनका भक्त ही जानता है। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! श्रीराधा की बात सुनकर उस समय सपत्नियों सहित भीष्म नन्दिनी रुक्मिणी ने कमललोचना श्रीराधा से कहा। रुक्मिणी बोलीं- श्रीराधे ! वृषभानुनन्दिनि ! तुम धन्य हो। तुम्हारे भक्ति-भाव से ये श्रीकृष्ण सदा तुम्हारे वश में रहते है। तीनों लोकों के लोग जिनकी कथा-वार्ता निरन्तर कहते-सुनते हैं, वे ही भगवान दिन-रात तुम्हारी कथा कहा करते हैं। श्रीहरि के प्रति तुम्हारे प्रेम-भाव का स्वरूप जैसा हमने सुना था, वैसा ही देखा। तुम्होर लिये कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं है। देवि ! तुम हमारे शिविर में शीघ्र चलो; हम सब तुम्हें ले चलने के लिये ही यहाँ आयी है। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! यों कहकर भीष्मनन्दिनी रुक्मिणी कीर्तिकुमारी श्रीराधा को बडे़ आदर से महात्मा श्रीकृष्ण के साथ अपने शिविर मे ले आयीं। सर्वतोभद्र नामक शिविर में, जो कमलों केसर से सुवासित था, सोने के पलंग पर, शिरीष-पुष्प के समान कोमल बिछावन बिछाकर, तकिया लगाकर, वस्त्र, माला और श्रृंगार सामग्री से सपत्नियों सहित सती रुक्मिणी ने रात्रि के समय विधिवत पूजा करके उन्हें सुखपूर्वक ठहराया। फिर गोपांगनाओं के सौ यूथों का भी पृथक-पृथक पूजन करके उन कृष्णप्रियाओं ने सबके साथ बहुविध वार्तालाप किया। फिर श्रीराधा को वहाँ सुलाकर वे रानियां प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने शिविर में गयीं। श्रीकृष्ण के पास पहुँचकर रुक्मिणी ने देखा कि वे बैठे-बैठे जग रहे हैं। तब उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा- ‘स्वामिन् ! आप सोते क्यों नहीं ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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