गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 7
उसका शरीर ह्यष्ट-पुष्ट, कद ऊँचा और भुजाएँ विशाल थी। नेत्र प्रफुल्ल कमल के समान प्रतीत होते थे। सिर के बाल बड़े-बड़े थे, देह की कांति अरूण थी। उसके अंगों पर काले रंग का वस्त्र सुशोभित था। मस्तक पर किरीट, कानों में कुण्डटल, गले में हार और वक्ष पर कमलों की माला शोभा दे रही थी। वह प्रलयकाल के सूर्य की भाँति तेजस्वी जान पड़ता था। खड्ग, तूणीर, कवच और मुदगर आदि से सम्पन्न धनुर्धर एवं मदमत्त वीर कंस देवताओं को जीतने के लिये अमरावती पुरी पर जा चढ़ा। चाणूर, मुष्टिक, अरिष्ट, शल, तोशल, केशी, प्रलम्ब, वक, द्विविद, तृणावर्त, अघासुर, कूट, भौम, बाण, शम्बर, व्योम, धेनुक और वत्स नामक असुरों के साथ कंस ने अमरावतीपुरी पर चारों ओर से घेरा डाल दिया। कंस आदि असुरों को आया देख, त्रिभुवन-सम्राट देवराज इन्द्र समस्त देवताओं को साथ ले रोषपूर्वक युद्ध के लिये निकले। उन दोनों दलों में भयंकर एवं रोमांचकारी तुमुल युद्ध होने लगा। दिव्य शस्त्रों के समूह तथा चमकीले तीखे बाण छूटने लगे। इस प्रकार शस्त्रों की बौछार से वहाँ अन्धकार-सा छा गया। उस समय रथ पर बैठे हुए सुरेश्वर इन्द्र ने कंस पर विद्युत के समान कांतिमान सौ धारों वाला वज्र छोड़ा। किंतु उस महान असुर ने इन्द्र के वज्र पर मुदगर से प्रहार किया। इससे वज्र की धारें टूट गयीं और वह युद्ध-भूमि में गिर पड़ा। तब वज्रधारी ने वज्र छोड़कर बड़े रोष के साथ तलवार हाथ में ली और भयंकर सिंहनाद करके तत्काल कंस के मस्तक पर प्रहार किया। परंतु जैसे हाथी को फूल की माला से मारा जाय और उसको कुछ पता न लगे, उसी प्रकार खड्ग से आहत होने पर भी कंस के सिर पर खरोंच तक नहीं आयी। उस दैत्यराज ने अष्टधातुमयी मजबूत गदा, जो लाख भार लोहे के बराबर भारी थी, लेकर इन्द्र पर चलायी। उस गदा को अपने ऊपर आती देख नमुचिसूदन वीर देवेन्द्र ने तत्काल हाथ से पकड़ लिया और उसे उस दैत्य पर ही दे मारा। इन्द्र के रथ का संचालन मातलि कर रहे थे और देवेन्द्र शत्रुदल का दलन करते हुए युद्ध भूमि में विचर रहे थे। कंस ने परिघ लेकर असुर द्रोही इन्द्र के कन्धे पर प्रहार किया। उस प्रहार से देवराज क्षणभर के लिये मूर्च्छित हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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