गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 24
श्रीनारदजी कहते हैं - विदेहराज ! वही यह राजा भीमरथ मय दैत्य का पुत्र हुआ और श्रीकृष्ण के बाहुवेग से मोक्ष को प्राप्त हुआ। एक दिन गोप बालकों के बीच में महाबली देत्य अरिष्ट आया। वह अपने सिंहनाद से पृथ्वी ओर आकाश को गुँजा रहा था और सींगों से पर्वतीय तटों को विदीर्ण कर रहा था। उसे देखते ही गोपियाँ, गोप तथा गौओं के समुदाय भय से इधर-उधर भागने लगे। दैत्यों के नाशक भगवान श्रीकृष्ण ने उन सबको अभय देते हुए कहा- 'डरो मत।' माधव ने उसके सींग पकड़ लिये और उसने पीछे ढकेल दिया। उस राक्षस ने भी श्रीकृष्ण को ढकेलकर दो योजन पीछे कर दिया। तब श्रीकृष्ण उसकी पूँछ पकड़ ली और बाहुवेग से घुमाते हुए उसे उसी प्रकार पृथ्वी पर पटक दिया, जैसे छोटा बालक कमण्डल को फेंक दे। अरिष्ट फिर उठा। क्रोध से उसके नेत्र लाल हो रहे थे। उस महादुष्ट वीर ने सींगो से लाल पत्थर उखाडकर मेघ की भाँति गर्जना करते हुए श्रीकृष्ण के ऊपर फेंका। श्रीकृष्ण ने उस प्रस्तर को पकड़कर उलटे उसी पर दे मारा। उस शिलाखण्ड के प्रहार से वह मन-ही-मन कुछ व्याकुल हो उठा। उसने अपने सींगों के अग्रभाग को पृथ्वी पर पटना आरम्भ किया, इससे पृथ्वी के भीतर से पानी निकल आया। तब श्रीकृष्ण ने उसके सींग पकड़कर बार-बार घुमाते हुए उसे पृथ्वी पर उसी प्रकार दे मारा, जैसे हवा कमल को उठाकर फेंक देती है। उसी समय वह वृषभ का रूप त्यागकर ब्राह्मण शरीरधारी हो गया और श्रीकृष्ण के चरणाविन्दों में प्रणाम करके गदद वाणी में बोला। ब्राह्मण ने कहा- भगवन् ! मैं बृहस्पति का शिष्य द्विजश्रेष्ठ वरतन्तु हूँ। मैं बृहस्पतिजी के समीप पढ़ने गया था। उस समय उनकी ओर पाँव फैलाकर उनके सामने बैठ गया था। इससे वे मुनि रोषपूर्वक बोले- 'तू मेरे आगे बैल की भाँति बैठा है, इससे गुरु की अवहेलना हुई है, अत: दुर्बुद्धे ! तू बैल हो जा।' माधव ! उस शाप से मैं वंगदेश में बैल हो गया। असुरों के संग में रहने से मुझमें असुरभाव आ गया था। अब आपके प्रसाद से मैं शाप और असुरभाव से मुक्त हो गया। आप श्रीकृष्ण को नमस्कार है। आप भगवान वासुदेव को प्रणाम है। प्रणतजनों के केश का नाश करने वाले आप गोविन्ददेव को बारंबार नमस्कार है। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! यों कहकर श्रीहरि को नमस्कार करके बृहस्पति के साक्षात शिष्य वरतन्तु भुवन को प्रकाशित करते हुए विमान से दिव्यलोक को चले गये। इस प्रकार मैंने अद्भुत माधुर्य खण्ड का तुमसे वर्णन किया, जो सब पापों को हर लेने वाला, पुण्यदायक तथा श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाला उत्तम साधन है। जो सदा इसका पाठा करते हैं, उनकी समस्त कामनाओं को यह देने वाला है और क्या सुनना चाहते हो ?। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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