गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 11
गोपियों ने पूछा– योगीबाबा ! तुम्हारा नाम क्या है ? मुनिजी ! तुम रहते कहाँ हो ? तुम्हारी वृत्ति क्या है और तुमने कौन-सी सिद्धि पायी है ? वक्ताओं में श्रेष्ठ ! हमें ये सब बातें बताओ। सिद्धयोगी ने कहा– मैं योगेश्वर हूँ और सदा मानसरोवर में निवास करता हूँ। मेरा नाम स्वयं प्रकाश है। मैं अपनी शक्ति से सदा बिना खाये-पीये ही रहता हूँ। व्रजांगनाओं ! परमहंसों का जो अपना स्वार्थ आत्म साक्षात्कार है, उसी की सिद्धि के लिये मैं जा रहा हूँ। मुझे दिव्यदृष्टि प्राप्त हो चुकी है। मैं भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों की बातें जानता हूँ। मंत्र-विद्या द्वारा उच्चाटन, मारण, मोहन, स्तम्भन तथा वशीकरण भी जानता हूँ। गोपियों ने पूछा– योगीबाबा ! तुम तो बड़े बुद्धिमान हो। यदि तुम्हें तीनों कालों की बातें ज्ञात हैं तो बताओ न, हमारे मन में क्या है ? सिद्धयोगी ने कहा– यह बात तो आप-लोगों के कान में कहने योग्य है अथवा यदि आप-लोगों की आज्ञा हो तो सब लोगों के सामने ही कह डालूँ । गोपियाँ बोली – मुने ! तुम सचमुच योगेश्वर हो। तुम्हे तीनों कालों का ज्ञान है, इसमें संशय नहीं। यदि तुम्हारे वशीकरण-मंत्र से, उसके पाठ करने मात्र से तत्काल वे यहीं आ जायँ, जिनका कि हम मन-ही-मन चिन्तन करती हैं, तब हम मानेंगी कि तुम मंत्रज्ञों में सबसे श्रेष्ठ हो। सिद्धयोगी ने कहा– व्रजांगनाओं ! तुमने तो ऐसा भाव व्यक्त किया है, जो परम दुर्लभ और दुष्कर है, तथापि मैं तुम्हारी मनोनीत वस्तु को प्रकट करूँगा, क्योंकि सत्पुरुषों की कही हुई बात छूठ नहीं होती। व्रज की वनिताओ ! चिन्ता न करो, अपनी आँखें मूँद लो। तुम्हारा कार्य अवश्य सिद्ध होगा, इसमें संशय नहीं है। श्रीनारदजी कहते हैं– राजन ! ‘बहुत अच्छा’ कहकर जब गोपियों ने अपनी आँखे मूँद लीं’ तब भगवान श्रीहरि योगी का रूप छोडकर श्रीनन्दनन्दन के रूप में प्रकट हो गये। गोपियों ने आँखें खोलकर देखा तो सामने नन्दनन्दन सानन्दन मुस्करा रहे हैं। पहले तो वे अत्यन्त विस्मित हुई, फिर योगी का प्रभाव जाने पर उन्हें हर्ष हुआ और प्रियतम का वह मोहन रूप देखकर वे मोहित हो गयीं। तदनन्तर माघ मास के महारास में पावन वृन्दावन के भीतर श्रीहरि ने उन गोपांगनाओं के साथ उसी प्रकार विहार किया, जैसे देवांग्नाओं के साथ देवराज इन्द्र करते हैं। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘रमावैकुण्ठ, श्वेतद्वीप, उर्ध्ववैकुण्ठ, अजितपद तथा श्रीलोकाचल में निवास करने वाली ‘लक्ष्मीजी की सखियों के गोपी रूप में प्रकट होने का आख्यान’ नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |