गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 8
बलभद्रजी को जब इसका पता लगा, तब वे अत्यंत क्रुद्ध होकर गन्धर्वों की वसन्त मालती नाम की उस विशाल नगरी को, जिसका विस्तार सौ योजन में था, हल के द्वारा उखाड़ लिया और कामदुघ नद में डुबा देने के लिये उसे खींचने लगे। नगरी के महलों और घरों का गिरना-ढहना आरम्भ हो गया। चारों ओर हाहाकार मच उठा। सारी नगरी समुद्र में चक्कर खाती हुई टेढ़ी नाव की तरह घूमने लगी। यह देखकर गन्धर्वराज पतंग भयभीत हो गये और अपने गन्धर्व भाई बन्धुओं के साथ हाथ जोड़कर बलभद्रजी के समीप उपस्थित हुए। उन्होंने विश्वकर्मा के द्वारा निर्मित दो लाख विमान, चार लाख हाथी, एक करोड़ घोड़े और दस करोड़ स्वर्ण तथा दिव्य रत्नों का भार बलदेवजी की सेवा में समर्पण किया और प्रदक्षिणा करके उनको प्रणाम किया। फिर साम्ब को छुड़ाने के लिये बलरामजी यहाँ तुम्हारे हस्तिनापुर में पधारे और तुम सब के सामने ही उन्होंने हल की नोक से तुम्हारे नगर को उखाड़ लिया और गंगा में डुबोने के लिये खींचने लगे। फिर नाग-कन्या गोपियों के साथ रास मण्डल में यमुनाजी को भी उन्होंने अपने हल की नोक से खींचा। तदनन्तर, एक समय की बात है, नारदजी की प्रेरणा से भौमासुर का सखा और सुग्रीव का मन्त्री द्विविद नामक बंदर युद्ध करने के लिये आया। रैवतक पर्वत पर बलरामजी के साथ चार घड़ी तक उसका युद्ध हुआ। वह वृक्ष और शिलाओं के द्वारा बलरामजी पर प्रहार कर रहा था। उसी स्थिति में बलरामजी ने मुसल के द्वारा उसके मस्तक पर चोट पहुँचायी; पर वह मरा नहीं और फिर से बलरामजी को मुक्का मारकर दौड़ा। भगवान अच्युत के बड़े भाई बलरामजी ने अपने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और रैवतक पर्वत पर दे मारा, फिर उसके हृदय में बड़े जोर से मुष्टि प्रहार किया तब बंदर नीचे गिर गया। उसके गिरने से वृक्ष सहित सारा पर्वत कमण्डलु की तरह कांपने लगा। प्रिय दुर्योधन ! तदनन्तर पाण्डवों के साथ तुम लोगों के युद्ध का उद्योग सुनकर बलरामजी तीर्थ यात्रा के बहाने नागरिकों और ब्राह्मणों को साथ लेकर द्वार का की प्रदक्षिणा करके पुरी से बाहर निकले। फिर उन्होंने सिद्धाश्रम और प्रभास में स्न्नान किया। पश्चिम दिशा में स्थित सरस्वती, प्रतिस्त्रोता, सैन्धवारण्य, जम्बू मार्ग, उत्पलावर्त, अर्बुद (आबू), हेमवन्त और सिन्धुनद में पृथक पृथक स्न्नान किया। तदनन्तर बिन्दुसर, त्रितकूप, सुदर्शन, अत्रितीर्थ, औशनस, आग्रेय, वायव, सौदास, गुहतीर्थ और श्राद्धदेव आदि तीर्थों में स्न्नान किया। तदनन्तर उत्तर दिशा में जाकर कैलास, करवीर, महायोग, गणेश, कौबेर, प्राग्ज्योतिष, रंगवल्ली, सीताराम आदि क्षेत्र, चैत्र देश, वसन्त तिलक, दशार्ण, भद्र, कूर्म तीर्थ, पुष्प माला, चित्रवण, चन्द्र कान्त, नैश्रेयस, मनु पर्वत, चक्षु, कामशालिनी, कामवन, वेद क्षैत्र सीता, पृथु तीर्थ, तपोभूमि, लीलावती, वेदनगर, गान्धर्व, शक्र, भीमरथी, श्रीजाहवी, कालिन्दी, हरि द्वार, कुरुक्षैत्र, मथुरा और पुष्कर आदि तीर्थो में स्न्नान किया। फिर वहाँ से संभल ग्राम और सूकर क्षैत्र (सौरौं) में गये। इस प्रकार तीर्थों की यात्रा करते हुए साक्षात संकर्षण श्री बलराम जी नैमिषारण्य में पहुँचे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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