गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 18
सिद्धाश्रम में व्रजांगनाओं तथा सोलह सहस्त्र रानियों के साथ श्यामसुन्दर की रासक्रीड़ा का वर्णन तथा श्रीराधा के मुख से वृन्दावन के रास की उत्कृष्टता का प्रतिपादन श्रीनारदजी कहते हैं- राजन्! श्रीराधा और गोपीगणों आदि राजकुमारियों ने रासक्रीड़ा देखने के लिये उत्सुक हो श्रीहरि से कहा। पटरानियां बोलीं- श्यामसुन्दर ! तुममें प्रेम लक्षणाभक्ति रखने वाली गोपसुन्दरियां धन्य हैं, जो रास-रंग में सम्मिलित हुई थीं। इन सबके तप का क्या वर्णन हो सकता है। माधव ! प्रभो ! यदि तुम हमारी प्रार्थना स्वीकार करो तो, वृन्दावन में तुमने जिस चाहती हैं। तुम यहीं हो, श्रीराधा यहीं विराज रही हैं, सम्पूर्ण गोपसुन्दरियां एवं व्रजांगनाओं भी यहीं रास का आयोजन सर्वथा उचित होगा। जगन्नाथ ! तुम हमारे इस मनोरथ को पूर्ण करो। मनोहर ! प्राणवल्लभ ! हमने दूसरा कोई मनोरथ नहीं प्रकट किया है, केवल रासक्रीड़ा का दर्शन कराओं। रानियों का यह बात सुनकर भगवान हँसने लगे। उन्होंने प्रेमपूरित होकर उन सबको अपने वचनों द्वारा मोहित-सी करते हुए कहा। श्रीभगवान बोले- अंगनाओं ! रासेश्वरी श्रीराधा के मन में भी रासक्रीड़ा की इच्छा हो ता यहाँ रास हो सकता है। अत: तुम्हीं सब जाकर उनसे पूछो। श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर रुक्मिणी आदि राजकुमारियों ने श्रीराधा के पास जाकर हँसते हुए मुख से अत्यन्त प्रेमपूर्वक कहा। श्रीरानियां बोलीं- चन्द्रवदने ! व्रजसुन्दरियों की स्वामि ! प्रियतमे ! सखि ! शीलरुपिणि ! रास में कीर्तिरानी के कुल की कीर्ति बढ़ाने वाली शुभांगि ! हम सब तुम्हारी सखियां तुमसे एक बात पूछने आयी हैं। रास में रस प्रदान करने वाले रासेश्वर यहीं हैं तथा रास अधीश्वर तुम भी यहीं हो और अन्य समस्त गोपसुन्दरियां भी यहीं है। इसी प्रकार हम सब भी यहाँ हैं; अत: सब प्रकार से रस का आस्वादन करने के लिये तुम यहाँ रास का आयोजन करो। प्रियतम ! ऐसा हो तो यह हमारे लिये अत्यन्त प्रिय होगा। श्रीराधा ने कहा- सत्पुरुषों पर कृपा करने वाले परम रासेश्वर श्यामसुन्दर के मन में यदि रासक्रीड़ा की अभिलाषा हो तो यहाँ रास हो सकता है। अत: मेरी प्रियतम सखियों ! तुम सब परम सेवा-शुश्रूषा और पराभक्ति से उनकी पूजा करके उन्हें वश में करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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