गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 9
श्रीवसुदेव जी बोले- भोजेन्द्र ! आप इस वंश की कीर्ति का विस्तार करने वाले हैं। भौमासुर, जरासन्ध, बकासुर, वत्सासुर और बाणासुर- सभी योद्धा आपसे लड़ने के लिये युद्ध भूमि में आये; किंतु उन्होंने आपकी प्रशंसा ही की। वे ही आप तलवार से बहिन का वध करने को कैसे उद्यत हो गये ? बकासुर की बहिन पूतना आपके पास आकर लड़ने की इच्छा करने लगी; किंतु आपने राजनीति के अनुरूप बर्ताव करने के कारण स्त्री समझ कर उसके साथ युद्ध नहीं किया। उस समय शांति स्थापना के लिये आपने पूतना को बहिन के तुल्य बनाकर छोड़ दिया। फिर यह तो आपकी साक्षात बहिन है। किस विचार से आप इस अनुचित कृत्य में लग गये ? मथुरा नरेश ! यह कन्या यहाँ विवाह के शुभ अवसर पर आयी है। आपकी छोटी बहिन है। बालिका है। पुत्री के समान दयनीय दयापात्र है। यह सदा आपको सद्भावना प्रदान करती आयी है। अत: इसका वध करना आपके लिये कदापि उचित नहीं है। आपकी चित्तवृत्ति तो दीन-दु:खियों के दु:ख दूर करने में ही लगी रहती है। श्री नारदजी कहते हैं- राजन ! इस प्रकार वसुदेवजी के समझाने पर भी अत्यंत खल और कुसंगी कंस ने उनकी बात नहीं मानी। तब वसुदेव जी, यह भगवान का विधान है, अथवा काल की ऐसी ही गति है- यह समझ कर भगवत-शरणापन्न हो, पुन: कंस से बोले। श्री वसुदेवजी ने कहा- राजन ! इस देवकी से तो आपको कभी भय है नहीं। आकाशवाणी ने जो कुछ कहा है, उसके विषय में मेरा विचार सुनिये। मैं इसके गर्भ से उत्पन्न सभी पुत्र आपको दे दूँगा; क्योंकि उन्हीं से आपको भय है। अत: व्यथित न होइये। श्री नारदजी कहते हैं- मिथिलेश ! कंस ने वसुदेव जी के निश्चयपूर्वक कहे गये वचन पर विश्वास कर लिया। अत: उनकी प्रशंसा करके वह उसी क्षण घर को चला गया। इधर वसुदेव जी भी भयभीत हो देवकी के साथ अपने भवन को पधारे। इस प्रकार श्री गर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के अंतर्गत नारद-बहुलाश्व-संवाद में ‘वसुदेव के विवाह का वर्णन’ नामक नवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |