गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 7
श्रीभगवान ने कहा- राजा के कृपा-प्रसाद से तो हमारी पहले से ही बहुत भलाई हो रही है। किंतु इतना ध्यान रखो कि हम लोग बालक है, अत: समान बल वाले बालकों के साथ ही हमारा युद्ध होगा, किसी बलवान के साथ नहीं। इसकी यथोचित्त व्यवस्था होनी चाहिए, यहाँ अधर्म युद्ध कदापि न होने पाये। चाणूर ने कहा- न तो आप बालक हैं और न बलरामजी ही किशोर हैं। आप साक्षात बलवानों में भी बलिष्ठ हैं, क्योंकि सहस्त्र मतवाले हाथियों का बल धारण करने वाले कुवलयापीड़ को आप दोनों ने खिलवाड़ में ही मार डाला। नारदजी कहते हैं- राजन् ! चाणूर की ऐसी बात सुनकर अघमर्दन भगवान श्रीकृष्ण चाणूर के साथ और बलवान बलरामजी मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध करने लगे। वे एक-दूसरे के भुजदण्डों को दोनों भुजाओं से पकड़कर अपनी ओर खींचते और पीछे ढकेलते थे। लोगों के देखते-देखते वे दोनों भाई विजय की इच्छा से लड़ने वाले दो हाथियों की भाँति अपने शत्रुओं से भिड़ गये। साक्षात श्रीहरि चाणूर के शरीर को दोनों हाथों से उठाकर उसके देहभार को उसी प्रकार तौला, जैसे ब्रह्माजी पुण्यात्माओं के पुण्यभार को तौला करते हैं। फिर महावीर चाणूर ने भगवान श्रीहरि को एक ही हाथ से उसी प्रकार लीलापूर्वक उठा लिया, जैसे नागराज शेष भूमण्डल को अपने एक ही फन पर धारण करते हैं। माधव ने अपनी भुजाओं के वेग से चाणूर की गर्दन और कमर में हाथ लगकार उसे उठा लिया और सहसा पृथ्वी पर दे मारा। एक ओर श्रीकृष्ण और चाणूर तथा दूसरी ओर बलराम और मुष्टिक एक दूसरे को हाथों, घुटनों, पैरों, भुजाओं, छातियों, अंगुलियों और मुक्कों से मारने लगे। बलराम और श्रीकृष्ण के मुखों पर परिश्रमजनित पसीने की बूँदे देखकर दया से द्रवित हो उस समय महल की खिड़कियों के पास बैठी हुई राजरानियाँ आपस में कहने लगीं। स्त्रियाँ बोलीं- अहो ! राजा के मौजूद रहते उनके सामने सभा में यह बहुत बडा अधर्म हो रहा है ! कहाँ तो व्रज के समान सुदृढ़ शरीर वाले वे दोनों पहलवान और कहाँ फूल के सदृश सुकुमार बलराम और कृष्ण। अहो ! हम मथुरापुरवासियों कैसा अभाग्य है कि हमें आज इतने दिनों बाद इनका दर्शन भी हुआ तो युद्ध के अवसर पर। वनवासी गोपों का महान् सौभाग्य अत्यन्त धन्यवाद के योग्य है, जिन्हें रास-रस के साथ श्रीकृष्ण-बलराम का दर्शन होता आ रहा है। सखियों ! आश्चर्य की बात तो यह है कि इस दुष्ट-चित्त राजा के रहते हुए कोई भी कुछ कहने को समर्थ नहीं हो सकता। इसलिये हमारे पुण्य के बल से दोनों बन्धु शीघ्र ही अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |