गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 8
जो द्वादशी को तुलसीदल से भक्ति पूर्वक श्रीहरि का पूजन करता है, वह जल से कमल-पत्र की भाँति पाप से लिप्त नहीं होता। सहस्त्रों अश्वमेध तथा सैकड़ों राजसूययज्ञ भी एकादशी के उपवास की सोलहवीं कला के बराबर नहीं हो सकते। एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य मातृकुल की दस, पितृकल की दस तथा पत्नी के कुल की दस पीढियों का उद्धार कर देता है। जैसी शुक्लपक्ष की एकादशी है, वैसी ही कृष्णपक्ष भी है, दोनों का समान फल है। दुधारू गाय जैसी सफेद वैसी काली दोनों का दूध एक-सा ही होता है। गोपियो ! मेरु और मन्दराचल के बराबर बड़े-बड़े सौजन्मों के पाप एक ओर और एक ही एकादशी का व्रत दूसरी ओर हो तो वह उन पर्वतोपम पापों को उसी प्रकार जलाकर भस्म कर देती है, जैसी आग की चिन्गारी रूई के ढेर को दग्ध कर देती है। गोपांगनाओं ! विधिपूर्वक हो या अविधिपूर्वक, यदि द्वादशी को थोडा-सा भी दान कर दिया जो तो वह मेरु पर्वत के समान महान् हो जाता है। जो एकादशी के दिन भगवान विष्णु की कथा सुनता है, वह सात द्वीपों से युक्त पृथ्वी के दान का फल पाता है। यदि मनुष्य शंखों द्वारा तीर्थ में स्नान करके गदाधर देव के दर्शन का महान पुण्य सचित कर ले तो भी वह पुण्य एकादशी के उपवास की सोलहवीं कला की भी समानता नहीं कर सकता है। प्रभास, कुरुक्षेत्र, केदार, बदरिकाश्रम, काशी तथा सूकरक्षेत्र में चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण तथा चार लाख संक्रान्तियों के अवसर पर मनुष्यों द्वारा जो दान दिया गया हो वह, भी एकादशी के उपवास की सोलहवीं कला के बराबर नहीं है। गोपियों ! जैसे नागों में शेष, पक्षियों में गरूड़, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, वृक्षों मे पीपल तथा पत्रों में तुलसी दल सबसे श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में एकादशी तिथि सर्वोत्तम है मनुष्य दस हजार वर्षों तक घोर तपस्या करता है, उसके समान ही फल वह मनुष्य भी पा लेता है, जो एकादशी का व्रत करता है। व्रजांगनाओं ! इस प्रकार मैंने तुम से एकादशियों के फल का वर्णन किया। अब तुम शीघ्र इस व्रत को आरम्भ करो। बताओ, अब और क्या सुनना चाहती हो ? इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘यज्ञसीताओं का उपाख्यान एवं एकादशी माहात्म्य' नामक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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