गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 8
वैष्णव व्रत (एकादशी) का पालन करना हो तो दशमी को काँसे का पात्र, मांस, मसूर, कोदो, चना, साग, शहद, पराय अन्न, दुबारा भोजन तथा मैथुन- इन दस वस्तुओं को त्याग दे। जुए का खेल, निद्रा, मद्य-पान, दन्तधावन, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध और असत्यभाषण- एकादशी को इन ग्यारह वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिये। काँसे का पात्र, मांस, शहद, तेल, मिथ्याभोजन, पिठ्ठी, साठी का चावल और मसूर आदि का द्वादशी को सेवन न करे। इस विधि से उत्तम एकादशी व्रत का अनुष्ठान करे। गोपियाँ बोलीं- परमबुद्धिमती श्रीराधे ! एकादशी व्रत का समय बताओ। उससे क्या फल होता है, यह भी कहो तथा एकादशी के माहात्म्य का भी यथार्थ रूप से वर्णन करो। श्रीराधा ने कहा- यदि दशमी पचपन घड़ी (दण्ड) तक देखी जाती हो तो वह एकादशी त्याज्य है। फिर तो द्वादशी को ही उपवास करना चाहिये। यदि पलभर भी दशमी से वेध प्राप्त होतो वह सम्पूर्ण एकादशी तिथि त्याग देने योग्य है- ठीक उसी तरह, जैसे मदिरा का की एक बूँद भी पड़ जाये तो गंगा जल से भरा हुआ कलश त्याज्य हो जाता है। यदि एकादशी बढ़कर द्वादशी के दिन भी कुछ काल तक विद्यमान हो तो दूसरे दिनवाली एकादशी ही व्रत के योग्य है। पहली एकादशी को उस व्रत में उपवास नहीं करना चाहिये। व्रजांगनाओं ! अब मैं तुम्हे इस एकादशी-व्रत का फल बता रही हूँ, जिसके श्रवण मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है जो अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराता है, उसको जिस फल की प्राप्ति होती है उसी को एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य उस व्रत के पालन-मात्र से पा लेता है। जो समुद्र और वनों सहित सारी वसुंधरा का दान करता है, उसे प्राप्त होने वाले पुण्य से भी हजार गुना पुण्य के महान व्रत का अनुष्ठान करने से सुलभ हो जाता है, जो पापपंग से भरे हुए संसार-सागर में डेबे है, उनके उद्धार के लिये एकादशी का व्रत ही सर्वोत्तम साधन है। रात्रिकाल में जागरण पूर्वक एकादशी व्रत का पालन करने वाला मनुष्य यदि सैंकड़ों पापों से युक्त हो तो भी यमराज के रौद्र रूप का दर्शन नहीं करता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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