गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 14
कालिय का गरुड़ के भय से बचने के लिये यमुना-जल में निवास का रहस्य राजा बहुलाश्व ने पूछा- ब्रह्मन ! रमणक द्वीप में रहने वाले अन्य सर्पों को छोड़कर केवल कालियनाग को ही गरुड़ से भय क्यों हुआ ? यह सारी बात आप मुझे बताइये । श्री नारद जी ने कहा- राजन ! रमणक द्वीप में नागों का विनाश करने वाले गरुड़ प्रतिदिन जाकर बहुत-से नागों का संहार करते थे। अत: एक दिन भय से व्याकुल हुए वहाँ के सर्पों ने उस द्वीप में पहुँचे हुए क्षुब्ध गरुड़ से इस प्रकार कहा। नाग बोले- हे गुरुत्मन ! तुम्हें नमस्कार है। तुम साक्षात भगवान विष्णु के वाहन हो। जब इस प्रकार हम सर्पों को खाते रहोगे तो हमारा जीवन कैसे सुरक्षित रहेगा। इसलिये प्रत्येक मास में एक बार पृथक-पृथक एक-एक घर से एक सर्प की बलि ले लिया करो। उसके साथ वनस्पति तथा अमृत के समान मधुर अन्न की सेवा भी प्रस्तुत की जायगी। यह सब विधान के अनुसार तुम शीघ्र स्वीकार करो । गरूड़ जी बोले-आप लोग एक-एक घर से एक-एक नाग की बलि प्रतिदिन दिया करें; अन्यथा सर्प के बिना दूसरी वस्तुओं की बलि से मैं कैसे पेट भर सकूँगा? वह तो मेरे लिये पान के बीड़े के तुल्य होगी। नारद जी कहते हैं- राजन ! उनके यों कहने पर सब सर्पों ने आत्मरक्षा के लिये एक-एक करके उन महात्मा गरुड़ के लिये नित्य दिव्य बलि देना आरम्भ किया। नरेश्वर ! जब कालिय के घर से बलि मिलने का अवसर आया, तब उसने गरुड़ को दी जाने वाली बलि की सारी वस्तुएँ बलपूर्वक स्वयं ही भक्षण कर लीं। उस समय प्रचण्ड पराक्रमी गरुड़ बड़े रोष में भरकर आये। आते ही उन्होंने कालिय नाग के ऊपर अपने पंजे से प्रहार किया। गरुड़ के उस पाद-प्रहार से कालिय मूर्च्छित हो गया। फिर उठकर लम्बी साँस लेते और जिह्वाओं से मुँह चाटते हुए नागों में श्रेष्ठ बलवान कालिय ने अपने सौ फण फैलाकर विषैले दाँतों से गरुड़ को वेगपूर्वक डँस लिया। तब दिव्य वाहन गरुड़ ने उसे चोंच में पकड़ कर पृथ्वी पर दे मारा और पाँखों से बारंबार पीटना आरम्भ किया। गरुड़ की चोंच से निकल कर सर्प ने उनके दोनों पंजों को आवेष्टित कर लिया और बारंबार फुंकार करते हुए उनकी पाँखों को खींचना आरम्भ किया। उस समय उनकी पाँख से दो पक्षी उत्पन्न हुए- नीलकण्ठ और मयूर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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