गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 20
श्रीबहुलाश्वन ने पूछा- प्रभो ! परमानन्दविग्रह साक्षात भगवान श्रीकृष्ण, ने इसके बाद और कौन-कौन सी विचित्र लीलाएं कीं, यह मुझे बताइये। पूर्व के अवतारों द्वारा भी मंगलमयचरित्र सम्पादित हुए हैं। इस श्रीकृष्णावतार के द्वारा इसके बाद और कौन-कौन से पवित्र चरित्र किये गये, यह सब बताइये। श्रीनारदजी ने कहा- राजन ! तुम्हें अनेक साधुवाद हैं, क्योंकि तुमने श्रीहरि के मंगलमय चरित्र के विषय में प्रश्न किया है। वृन्दावन में जो उनकी यशोवर्धक लीलाएं हुई हैं, उनका मैं वर्णन करूंगा। यह गोलोकखण्ड अत्यंत गोपनीय और परम अद्भुत है। गोलोक में रासमंडल में साक्षात श्रीकृष्ण ने निकुंज में राधिका को सुनाया और श्रीराधा ने मुझे इसका ज्ञान प्रदान किया है। फिर मैंने तुमको वह सब सुना दिया। यह गोलोक खण्ड का वृत्तान्त सम्पूर्ण पदार्थों को देने वाला उत्कृष्ट साधन है। यदि ब्राह्मण इसका पाठ करता है तो वह सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ का ज्ञाता होता है। क्षत्रिय इसे सुने तो वह प्रचण्ड पराक्रमी चक्रवर्ती सम्राट होता है, वैश्य सुने तो वह निधिपति हो जाये और शुद्र सुने तो वह संसार के बन्धन से छुटकारा पा जाये। जो इस जगत में फल की कामना से रहित होकर इसका पाठ करता है, वह जीवन्मुक्त हो जाता है। जो सम्यक् भक्तिभाव से युक्त हो नित्य इसका पाठ करता है, वह भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के गोलोकधाम में, जो प्रकृति से परे है, पहुँच जाता है।[1] इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘दुर्वासा के द्वारा भगवान कीमा या का दर्शन तथा श्रीनन्दनन्दनस्तोत्र का वर्णन’ नामक बीसवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इदं गोलोकखण्डं च गुह्यं परममद्भुतम्। श्रीकृष्णेन प्रकथितं गोलोके रासमण्डले ।।
निकुंजे राधिकायै च राधा मह्यं ददाविदम्। मया तुभ्यं श्रावितं च दत्तं सर्वार्थदं परम् ।।
इदं पठति विप्रस्तु सर्वशास्त्रार्थगो भवेत्। श्रुत्वेदं चक्रवर्ती स्यात् क्षत्रियश्चण्डविक्रम: ।।
वैश्यो निधिपतिर्भूयाच्छूद्रो मुच्येत बन्धनात्। निष्फलो योऽपि जगति जीवन्मुक्त: स जायते ।।
यो नित्यं पठते सम्यग् भक्तिभावसमन्वित:। स गच्छेत् कृष्णचन्द्रस्य गोलोकं प्रकृते: परम् ।।-(गर्ग0 गोलोक0 २०। ३६-४०)
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